पृथ्वीराज चौहान का जीवन परिचय | PrithviRaj Chauhan ka jivan parichay

महायोद्धा PrithviRaj Chauhan की ये तस्वीर अजमेर के पृथ्वीराज चौहान स्मारक से खिंची गयी है!

पृथ्वीराज महाकाव्य के अनुसार पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1 जून 1163 को गुजरात राज्य के पाठन पत्तन में हुआ था। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इनका जन्म 1168  ई में अजमेर के राजा सोमेश्वर चौहान और माता कर्पूरदेवी के यहां गुजरात में हुआ था।

जन्म1 जून 1163 ई. / 1168  ई.
पिता का नामराजा सोमेश्वर चौहान
माता का नामकर्पूरदेवी
जन्म स्थानगुजरात
मृत्यु1192 ई
PrithviRaj Chauhan ka jivan parichay in hindi

पृथ्वीराज चौहान की शिक्षा एवं कला (PrithviRaj Chauhan in hindi) :-

यह बचपन से ही प्रभावशाली बालक थे उस समय चौहान वंश में 6 भाषाएं बोली जाती थी।

  • संस्कृत भाषा
  • प्राकृत भाषा
  • मागधी भाषा
  • पैशाची भाषा
  • शौरसेनी भाषा
  • अपभ्रंश भाषा

इन सभी भाषाओं पर इनकी अच्छी पकड़ थी। इसके अलावा इन्होने ने मीमांसा, वेदांत, गणित, पुराण, इतिहास, सैन्य विज्ञान और चिकित्सा शास्त्र की पढ़ाई की थी। यह संगीत कला और चित्र बनाने में भी निपुण थे, उनकी रूचि थी। पृथ्वीराज रासो से पता चलता है कि यह शब्दभेदी बाण छोड़ने में भी निपुण थे। शब्दभेदी बाण यानी “किसी आवाज को सुनकर उसी दिशा में तीर चलाना और शिकार करना”। जब यह  मात्र ही 13 वर्ष की आयु के हुए थे तभी उनके पिता जी की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद इनको अजमेर के रायगढ़ के राज सिहासन पर बिठा दिया गया था।

पृथ्वीराज चौहान के बहादुरी के किस्से (PrithviRaj Chauhan ka jivan parichay in hindi) :- 

इनके बहादुरी के किस्से में यह भी किस्सा कि वह एक बार बिना किसी हथियार के एक शेर को मार गिराया था। पृथ्वीराज के बहादुरी के इन किस्सों को सुनकर इनके दादाजी अगंव जो कि दिल्ली के शासक थे। उन्होंने इनको दिल्ली का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। इन्हे दिल्ली के राज सिहासन पर बैठकर किला राय पिथौरा का निर्माण कराया था। 13 वर्ष की आयु में अपनी बहादुरी से उन्होंने गुजरात के पराक्रमी शासक भीमदेव को हरा दिया था। इनकी पहचान इनकी विशाल सेना के लिए भी होती है इतिहासकारों के मत के अनुसार इनकी सेना में 300 हाथी और 3 लाख सैनिक थे इस सेना मे बड़ी मात्रा में घुड़सवार भी थे।

इनकी प्रेम कहानी :-

पृथ्वीराज रासो के अनुसार जब यह 11 वर्ष  के हुए थे तो इनकी पहली बार शादी हुई थी। इनके बाद हर साल 22 साल के होने तक उनकी शादियां होती रही। इसके बाद वे 26 साल के हुए तो उनकी शादी संयोगिता के साथ हुई थी। इन्हीं तथ्यों के अनुसार इनके कुल 12 रानीयाँ थी। पृथ्वीराज रासो में इनकी पांच रानियां :- जम्भावती, इच्थनी, यादवी शर्शिवृता, हंसावती और संयोगिता का ज़िक्र किया जाता है।

पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी :-

संयोगिता कन्नौज के राजा जयचंद की पुत्री थी। कन्नौज की राजकुमारी संयोगिता जब इनको पसंद आई तो उन्हें वे स्वयंवर से उठा लाए थे, और गंधर्व जाकर विवाह कर लिया था।

PrithviRaj Chauhan ओर संयोगिता की मृत्यु एक साथ हुई थ। 

चंद्रवरदाई :-

चंद्रवरदाई और PrithviRaj Chauhan बचपन के मित्र थे। जिन्होंने पृथ्वीराज रासो की रचना की थी। 

पृथ्वीराज चौहान की वीरता का गुणगान या उल्लेख :-

इनका साम्राज्य काफी तीव्र गति से बढ़ रहा था। तभी एक मुस्लिम शासक मोहम्मद गौरी की नजर दिल्ली पर पड़ी और दिल्ली पर मोहम्मद गोरी ने कई बार आक्रमण किए थे। अलग-अलग ग्रंथों और कहानियों में मोहम्मद गौरी और इनके बीच हुए युद्ध को अलग अलग तरीके से बताया गया है।

  • पृथ्वीराज चौहान रासो के अनुसार PrithviRaj Chauhan ने मोहम्मद गौरी को तीन बार पराजित किया था। 
  • हमीर महाकाव्य के अनुसार PrithviRaj Chauhan ने 7 बार मोहम्मद गौरी को पराजित किया था। 
  • प्रबन्धकोष के अनुसार PrithviRaj Chauhan ने 20 बार मोहम्मद गोरी को बंदी बना कर छोड़ दिया था। 
  • सुर्जनचरित महाकाव्य के अनुसार PrithviRaj Chauhan ने 21 बार मोहम्मद गौरी को पराजित किया था।
  • प्रबंधचिंतामणि ग्रंथ के अनुसार PrithviRaj Chauhan ने 23 बार मोहम्मद गौरी को बंदी बनाया था।

कई ग्रंथों में ज्यादातर यह जिक्र मिलता है कि 17 बार मोहम्मद गोरी पराजित हुआ और 18वीं बार यह पराजित हो गए थे।इसे तराइन का प्रथम युद्ध कहा जाता है। प्रथम युद्ध में सन् 1191 ईसवी में मुस्लिम शासक सुल्तान मोहम्मद शहाबुद्दीन गोरी ने बार बार युद्ध करके इनको हराना चाहा परंतु ऐसा नहीं हो पाया था।

इन्होने 17 बार मोहम्मद गौरी को युद्ध में हराया था और दरियादली दिखाते हुए कई बार माफ भी किया था और छोड़ दिया था। परंतु 18 वी बार मोहम्मद गोरी ने PrithviRaj Chauhan को मात दे दी थी, और इनको बंदी बनाकर अपने साथ ले गया था।पृथ्वीराज चौहान और चंद्रवरदाई दोनों को ही बंदी बना लिया गया था, और सजा के तौर पर इनकी आंखें गर्म सेलाखों से फोड़ दी गई थी। इसी स्थिति में इन्होने हार नहीं मानी और वह मोहम्मद गौरी को मात देने के लिए तैयारी करने लगे थे।

अंतिम  पल (अन्य) :-

मोहम्मद गोरी ने चंद्रवरदाई के द्वारा इनकी आखिरी (अंतिम) इच्छा पूछने को कहा क्योंकि चंद्रवरदाई इनके करीब थे। इनमें शब्दभेदी बाण चलाने के गुण भरे पड़े थे। यह जानकारी मोहम्मद गौरी के पास पहुँचायी गई। जिसके बाद उन्होंने कला प्रदर्शन की मंजूरी भी दे दी थी। जहां पर पृथ्वीराज चौहान अपना कला का प्रदर्शन करने वाले थे वहीं पर भी मोहम्मद गोरी भी मौजूद थे। मोहम्मद गौरी को मारने की योजना इन्होने  चंद्रवरदाई के साथ मिलकर पहले से बनाई थी।

वापस आपना बदला लिया  :-

जैसे ही महफ़िल शुरू हुई वैसे ही चंद्रवरदाई ने काव्यात्मक भाषा में एक पंक्ति कही थी।चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण ता ऊपर सुल्तान है मत चुके चौहान।यह दोआ चंद्रवरदाई ने पृथ्वीराज चौहान को इशारा देने के लिए कहा था। दोहा सुनकर जैसे ही मोहम्मद गोरी ने शाबास बोला उसी समय पृथ्वीराज चौहान जो कि शब्दभेदी में निपुण थे, उन्होंने तीर चला दिया था। ओर तीर जाकर सीधा मोहम्मद गोरी को लगा ओर गोरी की मृत्यु हो गयी थी।

इसके बाद ऐसा हुआ कि जब मोहम्मद गोरी मारा गया था उसके बाद इन्होने और चंद्रवरदाई ने दुर्गति से बचने के खातिर एक दूसरे की हत्या कर ली थी। इस प्रकार इन्होने अपने अपमान का बदला ले लिया था। PrithviRaj Chauhan की मृत्यु की खबर जब संयोगिता ने सुनी तो उसने भी अपने प्राण ले लिये।

इसी प्रकार एक शासक, एक वीरयोद्धा, एक दोस्त, एक प्रेमिका चार जने एक साथ चली गई थी।

अफगानिस्तान में समाधि का अपमान :-

अफगानिस्तान के गजनी शहर के बाहरी क्षेत्र में PrithviRaj Chauhan की समाधि आज भी मौजूद हे।यहाँ 800 साल से राजपूत शासक पृथ्वीराज चौहान की समाधी को शैतान बताकर उस पर जुते मारकर अपमानित करते थे। जिसके बाद भारत सरकार ने उनकी अस्थियां भारत मंगवाने का फैसला किया था। क्योंकि अफगानिस्तान और पाकिस्तान के लोगों की नजरों में मोहम्मद गोरी हीरो बना हुआ है जबकि इनको वो अपना दुश्मन मानते हैं क्योंकि इन्होने गोरी की हत्या की थी। इसी वजह के कारण वहां के लोग पृथ्वीराज चौहान की समाधि को अपमानित करते हैं।

तराइन का दूसरा युद्ध :-

1192 ई. में हुआ इस युद्ध में इनकी हार हुई थी तथा इनकी की मृत्यु हो गयी थी।मोहम्मद गोरी ने एक और शक्तिशाली शासक जयचंद्र को 1194 स्पीक को चंदावर के युद्ध में पराजित किया।

  • यह एक सच्चे और दरिया दिल राजपूत शासक थे। जो अपने दुश्मन को 17 बार माफ किया।
  • अपने प्यार को पाने के लिए युद्ध किया और दोस्ती मरते दम तक निभाई थी।
  • चौहान वंश के संस्थापक वासुदेव को माना जाता है।

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3 thoughts on “पृथ्वीराज चौहान का जीवन परिचय | PrithviRaj Chauhan ka jivan parichay”

  1. Rajdeep pandey

    Dhanya ho prithviraj chauhan ye dharti aapko shat shat pranaam karti hain
    Aur aapki dariyadiliko bhi aapne Mohammed Gori ko 17 baar harakar jeevandaan diya dhanya hain aapki dariyadili

    1. अवधेश कुमार

      इसीलिए जिहादियों को नहीं छोड़ना चाहिए

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