Maharaja Surajmal Ka Itihas | महाराजा सूरजमल

यह तस्वीर भरतपूर के वीर योद्धा महाराजा सूरजमल ( Maharaja Surajmal ) की है!

इस पोस्ट में भरतपूर के वीर योद्धा महाराजा सूरजमल “जाटों का प्लेटो” के बारे में बताया गया है! यदि आपको Maharaja Surajmal के बारे में विस्तरित जानकारी चाहिए तो इस पोस्ट को अंत तक जरुर देखे!

महाराजा सूरजमल का जीवन परिचय :-

नाम महाराजा सूरजमल
पिता का नाम महाराजा बदन सिंह
माता का नामरानी देवकी
राज्य अभिषेक 22 मई 1755
मृत्यु25 दिसंबर 1763
Maharaja Surajmal in hindi

Maharaja Surajmal का राज्य अभिषेक 22 मई 1755 डीग (भरतपुर) में हुआ था। विधिवत रूप से 9 जून 1756 ई. को राजा बने थे।

उपनाम :- जाटों का प्लेटो कहा जाता है अफलातून जाट साम्राज्य की आँख भी कहा जाता है।

जाटों की उत्पत्ति :-

17 सदी के  में जब मुगल शासक औरंगजेब का अत्याचार बढ़ने लगा था एवं मथुरा वृंदावन के मंदिरों को तोड़ा जाने लगा तो मथुरा के करीब तिलपथ के वीर गोकुला जाट के नेतृत्व में मुगलों से मुकाबला किया गया था। देश धर्म के लिए जाट साम्राज्य की शुरुआत हुई थी। जाटों ने ही सबसे पहले मुगलों का सामना किया, फिर जाटों को जन-जन का साथ मिलता गया। सत्य और न्याय प्रिय राजा गोकुला को धोखे से घात लगाकर आगरा के किले में मौत के घाट उतार दिया गया था। किन विद्रोह की ज्वाला बढ़ती गई। 

ठाकुर राजाराम जाट :-

वीर गोकुला के बलिदान के बाद ठाकुर राजाराम जाट के नेतृत्व में जाटों ने फिर मिलकर अत्याचार के खिलाफ विरोध किया और आगरा पर अपनी धाक जमाई थी। इतिहासकार मंनुजी ने लिखा हैं कि वीर गोकुला की शहादत का प्रतिशोध लेने के लिए ठाकुर राजाराम जाट ने मुगल शासक अकबर की कब्र खोदकर उसकी हड्डियों को जला दिया था। विद्रोह की चिंगारी ने दिल्ली की सल्तनत को हिला कर रख दिया था। और ठाकुर राजाराम जाट वीरगति को प्राप्त हो गए थे। 

ठाकुर चुड़ामन जाट :-

अन्याय और अत्याचार के खिलाफ ठाकुर राजाराम जाट के अभिमान को उनके भतीजे ठाकुर चुड़ामन जाट ने आगे बढ़ाया और थून की गढी में जाटों का साम्राज्य स्थापित किया। ठाकुर चुड़ामन ने अपनी वीरता और बहादुरी से जाट रियासत को मजबूती प्रदान की, और थून की गढी में मजबूत किले का निर्माण कराया था। इनके दो भतीजे हुए बदन सिंहे और रूप सिंहे। 

राजा बदन सिंह :-

चुड़ामन विरासत के रूप में जाट सरदारी को बदन सिंहे ने संभाला और मजबूत नेतृत्व दिया था। राजा बदन सिंह की बहादुरी से जाट साम्राज्य का तेजी से विस्तार हुआ था। महाराजा सूरजमल का जन्म 13 फरवरी 1707 ई. (माघ शुक्ल विक्रम संवत 1763) कामर में हुआ था। एक ऐसा वीर जनिया जिसने जाट साम्राज्य को विश्वभर में प्रतिष्ठा दिलाई थी। राजा बदन सिंहे कि बहादुरी से मेवाड़ क्षेत्र उनके अधीन आ गया था। इनका साम्राज्य और उपाधि का प्रभाव बढ़ता गया तो उन्होंने स्थाई राजधानी के लिए महात्मा प्रतिम दास की सलाह पर डीग (भरतपुर) को चुना और डीग में ही महलो, बगीचों का निर्माण कराया। डीग में जल महल दुनिया के खूबसूरत महलो में से हैं। इन महलों में राजा बदन सिंह और Maharaja Surajmal का दरबार लगा करता था।  राजा बदन सिंहे के शासन काल में भरतपुर के उत्तरी क्षेत्र में रहने वाले मेवो के उत्पाद से निपटने के लिए युवराज Maharaja Surajmal और ठाकुर सुल्तान सिंह को भेजा और उन्होंने अपनी वीरता और साहस का परिचय देते हुए युद्ध कौशल में सफलता के झंडे गाड़ दिए थे। 

महाराजा सूरजमल :-

सन् 1745 में अहमद शाह अब्दाली ने डीग कुम्हेर के किले को फतह करने की धमकी दी तो Maharaja Surajmal ने अपनी बुद्धिमता और वीरता से अब्दाली को संदेश भेजा और कहा कि अपने आपको दिल्ली सल्तनत का बादशाह कहने वाले एक किसान रियासत से टक्कर ले रहा है। लेकिन यह याद रखना एक किसान के किले को जीत लिया तो कोई बात नहीं मगर आपकी हार हुई तो पूरे देश में दिल्ली सल्तनत की नाक कट जाएगी, रही बात युद्ध की तो हमारी तमाम सरदारी का फैसला है। कि जब तक एक बच्चा भी जिंदा रहेगा तब तक युद्ध लड़ेंगे जाट सरदारी के शौर्य और पराक्रम का ऐसा ही परिणाम आप पहले ही चौमुहा के युद्ध में देख चुके हो। सूरजमल के इसी सातुल्य और वीरता को देखते हुए अब्दाली को झटका लगा था, और अब्दाली ने युवराज सूरजमल से मित्रता करने का फैसला किया। अब्दाली ने महाराजा सूरजमल को निशान, नगाड़े, पंचरंगे झंडे के साथ ब्रिजराज ब्रिजेंद्र सवाई के खिताब से नवाजा था। 

Maharaja Surajmal का महारानी किशोरी देवी से विवाह :-

एक समय महाराजा सूरजमल अपनी विजय यात्रा में से लौट रहे थे तो हरियाणा में होडल के रास्ते से गुजरते समय एक रोचक घटना हुई यहां के रहने वाले चौधरी काशीराम की बेटी किशोरी देवी होडल के चौक में गांव के बच्चों के साथ खेल रही थी। काफिले के सैनिकों ने उन्हें हटने के लिए कहा उस पर बुद्धिमता, साहसी और चतुराई से परिपुर्ण किशोरी ने महाराणा को दूसरे रास्ते से जाने की सलाह दी। उनकी वीरता और साहस को देखकर महाराजा सूरजमल ने किशोरी के पिता और होडल के ग्रामीणों को संदेश दिया। वही होडल की पंचायत पर इन्होने ग्रामीणों की उपस्थिति में किशोरी से विवाह करने का प्रस्ताव रखा। जिस पर ग्रामीणों ने किशोरी देवी की शादी Maharaja Surajmal से संपूर्ण रीति रिवाज से सम्पन्न करवा दी थी। इनके वीरता और विजयी जीवन में महारानी किशोरी देवी की अहम भूमिका है। युद्ध कौशल और रणनीति में महारानी किशोरी देवी ने सूझबूझ और बुद्धिमाता से इनको हमेशा अजय रखा था। होटल में महाराजा सूरजमल ने छतरियाँ, मंदिरों और तालाबों का निर्माण करवाया था। यहाँ हर वर्ष मेला भी लगता है। यहां पर दूर-दूर से लोग आज भी आते हैं। Maharaja Surajmal ने सन 1747 अर्शद खाँन को मारकर कौल के युद्ध में अलीगढ़ जीता और युवावस्था में अपनी धाक जमाई थी।  

ईश्वरी सिंहे का युद्ध में साथ :-

Maharaja Surajmal के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए संपूर्ण देश के राजा महाराजाओं ने उनसे सैनिक सहायता करने के लिए आने लगे थे। 1743 में जयपुर के राणा राजा सवाई जय सिंह की मृत्यु के बाद उनके दोनों पुत्रों ईश्वरी सिंहे और माधव सिंह में सत्ता प्राप्त के लिए संघर्ष हुआ। इस युद्ध में जोधपुर, कोटा, बूंदी रियासतो और मराठा पेशवाओं ने माधो सिंह का साथ दिया था। लेकिन न्याय प्रिय और वचनबद्ध महाराजा सूरजमल ने असली उत्तराधिकारी ईश्वरी सिंह का साथ दिया। उत्तराधिकार के लिए यह युद्ध जयपुर के पास बगरू में हुआ था। इस युद्ध के लिए Maharaja Surajmal मात्र 10 हजार घुड़सवार और 2 हजार पैदल ओर 2 हजार परसेबाज सैनिक लेकर कुँवर से रवाना हुए। जयपुर पहुंचने पर बासबदन पुरा में ईश्वरी सिंहे ने महाराजा सूरजमल का भव्य स्वागत किया था। 

युद्ध का प्रारभ ( Maharaja Surajmal in hindi ) :-

20 अगस्त 1748 को झमाझम बारिश के बीच शुरू हुआ यह युद्ध सैन्य शक्ति के लिहाज से महत्वपूर्ण था। एक तरफ जहाँ सात 7 रियासतों और मराठों की लाखों की सेना थी। तो दूसरी ओर ईश्वरी सिंह के साथ महाराजा सूरजमल की मात्र 15 हजार की सेना थी। माधो सिंह के असंख्य सैनिकों को देखकर ईश्वरी सिंहे कि सेना हताश हो गई थी। लेकिन इनके वीर सैनिकों ने दुश्मनों को धूल चटा दी थी। और Maharaja Surajmal ने सेना की मुख्य कमान संभाल कर ईश्वरी सिंहे की हारती हुई बाजी को जीत में बदल दिया था। इस युद्ध में महाराजा सूरजमल की वीरता को देखकर बड़े-बड़े सूरमाओं की छाती धरा गई। 3 दिन तक चले भीषण युद्ध में आखिर महाराजा सूरजमल ने अपनी वीरता से मोर्चा जीत लिया।  महाराजा सूरजमल ने सिसोदिया, चौहानों, राठौड़ों, मराठों की 7 रियासतों की संयुक्त सेना को एक साथ युद्ध भूमि में परास्त कर अद्भुत इतिहास रचा था, और सफलता के साथ झंडे गाड़ दिए थे। आखिरकार ईश्वर सिंह को जयपुर का राजा बना दिया गया था। इसी के कारण महाराजा सूरजमल की वीरता की पताखा झंडा चारों और फैलने लगा था। 

फरीदाबाद और बल्लभगढ़ पर विजय :-

महाराजा सूरजमल की सेना ने आगरा और मथुरा पर कब्जा करने आ रहे मुगल साम्राज्य के बादशाह अहमद शाह अब्दाली के सेना, सेनापति मीर बख्शी को दावत गंज में घेरकर पराजित कर दिया था। इन्होंने  1 जनवरी 1750 को मीर बख्शी और उसकी असंख्य सेना को हराकर फरीदाबाद और बल्लभगढ़ पर अधिकार कर लिया था। इस युद्ध के बाद महाराजा सूरजमल ने एक प्रस्ताव रखा जिसमें एक शर्त रखी कि मुगल सेना हिंदुओं पर अत्याचार नहीं करेगी और पीपल के पेड़ कोई नहीं कटेगा और धार्मिक स्थलों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा। इस जीत से Maharaja Surajmal की सेना की शक्ति और वीरता का गुणगान पूरे विश्व में होने लगा था। सन् 1753 में महाराजा सूरजमल ने घैनसैरा युद्ध जीता था। 

दिल्ली सल्तनत पर विजय :-

10 मई 1753 को महाराजा सूरजमल का मुकाबला दिल्ली सल्तनत के नवाब गजनी दीन से हुआ था। इस युद्ध में Maharaja Surajmal ने अपने शौर्य और पराक्रम से गजनी दीन को धूल चटा कर दिल्ली सल्तनत को जीत लिया था। महाराजा इनकी सैन्य शक्ति शासकीय कुशलता और रणनीतिक कौशल देशभर में सिरमौर थी। 

अहमद शाह अब्दाली से युद्ध :-

महाराजा सूरजमल का सामना अफगान आक्रमणकारी अहमद शाह अब्दाली से भी हुआ था, अब्दाली महाराजा सूरजमल से धन वसूलना चाहता था। लेकिन Maharaja Surajmal ने अब्दाली की परवाह नहीं की और सैन्य शक्ति के साथ मुकाबले के लिए तैयार हो गए थे। अब्दाली को पत्ता चल गया था कि महाराजा सूरजमल मथुरा पहुंच गए हैं तो अब्दाली ने अपने सैनिकों को मथुरा में मुकाबले के लिए भेजा लेकिन शूरवीर जाटों की वीरता के आगे नहीं टिक पाए थे हालांकि मौका पाकर अब्दाली ने डीग कुवाँर के महलों पर कब्जा करने की नाकामयाब कोशिश की थी। लेकिन इसी दौरान 18 मई 1754 को Maharaja Surajmal ने इन्दोर के बेटे खांडेराव को मारकर यह युद्ध जीत लिया था, और अब्दाली वहां से भाग गया था।

Maharaja Surajmal के द्वारा पानीपत के युद्ध में मराठों का साथ :-

सन् 14 जनवरी 1761 को मराठों और अहमद शाह अब्दाली के बीच हुए पानीपत के तीसरे युद्ध में सदाशिव राव भाऊ के नेतृत्व में मराठा सेना आयी। महाराजा सूरजमल ने उनका भव्य स्वागत किया और दिल्ली तक साथ आए थे। यह मराठों को युद्ध जीतने की रणनीति समझाते हुए सुझाव दिया कि स्थानीय परिस्थितियों से बखूबी वाकिफ होने के कारण युद्ध का नेतृत्व भरतपुर रियासत को दिया जाए। दूसरा Maharaja Surajmal को यह देखकर आश्चर्य था कि मराठा युद्ध में अपने साथ महिलाओं और बच्चों को भी लाए थे। इसेमें उन्होंने सुझाव दिया कि मराठों घशवों की औरतों और बच्चों को युद्ध भूमि से दूर डीग के किले में भेज दिया जाए। तीसरा उस समय सर्दी का मौसम था जो अब्दाली की अफगान सेना के लिए अनुकूल था। लेकिन देशी सैनिकों के लिए पूरी तरह अनुकुल नहीं था। इसमें महाराजा सूरजमल ने सुझाव दिया कि युद्ध गर्मी के समय किया जाए और मौसम की अनुकूलता देखकर आक्रमण किया जाए। लेकिन भाऊ ने युद्ध के सम्बन्ध में महाराजा सूरजमल की सलाह नही मानकर मनमर्जी से काम किया था। इससे महाराजा सूरजमल को ठहस पहुंची थी और वह मराठों से अलग हो गए थे। राजा सूरजमल के सलाह नहीं मानने पर मराठा पेशवो की बुरी तरह हार हुई थी। 

Maharaja Surajmal द्वारा मराठों को शरण :-

ऐसी स्थिति में महाराजा सूरजमल ने मानवता का परिचय देते हुए मराठों को 8 माह तक डीग में शरण दी थी। यह ही नहीं महाराजा सूरजमल और महारानी किशोरी देवी ने हर एक घायल मराठा को एक एक चांदी का सिक्का और वस्त्र तथा राशन सामग्री देकर मराठों को  महाराष्ट्र तक जोड़ने के लिए भरतपुर की सेना भेजी थी। महाराष्ट्र के मालेगांव, नासिक और औरंगाबाद के क्षेत्र के आसपास के गांवों में आज भी Maharaja Surajmal की सेना के सैनिक और जाट समुदाय के लोग निवास करते हैं जो आज भी जाट भविष्य के नाम से प्रसिद्ध है।

आगरा पर विजय ( Maharaja Surajmal in hindi ) :-

12 जून 1761 में सूरजमल ने वीर गोकुला के बलिदान का बदला लेने के लिए आगरा पर चढ़ाई थी उस समय आगरा दिल्ली सल्तनत की दूसरी राजधानी हुआ करता था। महाराजा सूरजमल सैन्य बल के साथ आगरा की ओर बढ़े और 30 दिन के घेरे के बाद आगरा किले पर जाटों का अधिकार हो गया था। आगरा जीतने के बाद महाराजा सूरजमल यमुना क्षेत्र के एकमात्र स्वामी हो गए। आगरा विजय के दौरान Maharaja Surajmal ने ताजमहल को अपने अधीन कर लिया शिव मंदिर बनाने का निर्णय लिया, लेकिन कब्रिस्तान मंदिर नहीं बन सकता वहां पर भूसा भरवाया गया। महाराजा सूरजमल के सुपुत्र महाराजा जवाहर सिंह ने भी आगरा विजय के दौरान आगरा के किले में भूसा भरवा दिया था।

अलीगढ़ को फतह :-

आगरा किले की विजय के बाद महाराजा सूरजमल ने साम्राज्य का विस्तार करते हुआ अलीगढ़ को फतह किया। वहाँ भव्य किले का निर्माण कर इसे नाम दिया रामगढ़, इस रामगढ़ के किले की बनावट भरतपुर के किले के समान ही है। इसके बाद में बलूचो को युद्ध में हराकर सन 1763 को फरुकनगर पर विजय प्राप्त की महायोद्धा होने के अलावा Maharaja Surajmal कुशल प्रशासक दूरदृष्टिता और महानत्म शिल्प निर्माता और पर्यावरण प्रेमी भी थे। महाराजा सूरजमल की पेयजल नीति को वर्तमान में भी भारत सरकार अपना रही है। 

लोहागढ़ का निर्माण :-

1 सप्ताह की पूजा के बाद लोहागढ़ का किला Maharaja Surajmal ने इतनी कुशलता और बुद्धिमत्ता एवं रणकौशल से निर्माण करवाया था। मिट्टी से बने इस किले को कोई नहीं भेद पाया था। लोहागढ़ की दीवारें 100 फीट ऊंची और 30 फीट मोटी है। किलें में 8 बुर्ज है जिस पर बड़ी-बड़ी तोहफे लगी हुई है। Maharaja Surajmal ने युद्ध कौशल के लिए लाखा टोफ तो बनवाई थी। जिसकी मारक क्षमता डीग भरतपुर से लेकर दिल्ली के लाल किले तक की थी। जब लाखा तोफ का आपका पहला परीक्षण किया गया था। तो उसकी मारग क्षमता को देखकर मुगल, मराठा, पेशवा, रोहिल्ला और राजा महाराजाओं की रूह कांफ गई थी। जिसके कारण किसी ने भी भरतपुर की तरफ आंख उठाकर नहीं देखा था। इस किले को आज तक कोई नहीं जीत पाया था 

Maharaja Surajmal के द्वारा अंग्रेजी लॉर्ड का सामना :-

1805 में अंग्रेजी लॉर्ड लक जनवरी से अप्रैल तक 4 महीने  तक इस किलें के चारों ओर घेरा डालकर पढ़ा रहा था। लेकिन इससे भेद नहीं पाया, और अंग्रेजों की हार जैसी भरतपुर में हुई वैसी हार कही और नहीं हुई थी। डीग और भरतपुर के बीच किलें बनाए थे। इसके अलावा उन्होंने मथुरा और वृंदावन में भी छतरियाँ और तालाबों आदि का निर्माण करवाया था। यह सब उस समय की वस्तुकला के  उत्कृष्ट नमूना है। डीग के जल महल एवं बागीचे आज भी उत्कृष्ट वस्तुकला के प्रमाण है

Maharaja Surajmal के द्वारा दिल्ली पर विजय :-

सूरजमल दिल्ली पर विजय पाने के लिए भरतपुर में अपने कुलदेवी मां चामुंडा देवी की आराधना के बाद दिल्ली में सूरज पर्वत पर शिव मंदिर बनाकर युद्ध का ऐलान कर दिया था इनके आह्वान से दिल्ली सल्तनत क़े शासक की रूह कांप गई और हड़बड़ाहट में उसने Maharaja Surajmal को रोकने का प्रयास किया। महाराजा सूरजमल की बढ़ती सैन्य शक्ति के आगे निजिमुदौला टिक नहीं पाया और आखिर 24 दिसंबर 1763 को महाराजा सूरजमल ने दिल्ली जीत कर एक बार फिर हिंदुस्तान के अजेय महायोद्धा बनने का इतिहास रचा था।

Maharaja Surajmal की मृत्यु :-

लेकिन विजय के दूसरे दिन बाद हिडन नदी के किनारे Maharaja Surajmal घोड़े पर सवार होकर घूम रेह थे। कि अचानक दुश्मनों ने धोखे से पीठ पर गोली मार दी। हिन्दुस्तान का यह शेर आमने सामने के मुकाबले में कभी नहीं हारा लेकिन पीढ पीछे के वार की वजह से भारत भूमि के अजेय महायोद्धा Maharaja Surajmal वीरगति को प्राप्त हो गए थे। 25 दिसंबर 1763 को हिंदुस्तान का सूरज दुनिया को अलविदा कह गया था। महाराजा सूरजमल देश और धर्म की रक्षा का संदेश अमर कर गए थे। महाराजा सूरजमल की अंतष्टी कृष्ण जी की पवित्र भूमि-गोवर्धन में हुई थी। वहां पर बाद में कुसुम सरोवर ताल और शानदार छतरी का निर्माण करवाया गया था जो वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है Maharaja Surajmal ने अपने जीवन काल में 110 से ज्यादा युद्ध जीते थे। यह देश और हिंदू धर्म के रक्षक के रूप में विश्वविख्यात हुए। इसलिए उनके सम्मान में दिल्ली के बिरला मंदिर में उनकी प्रतिमा आज भी देश की रक्षा और धर्म का अमर संदेश दे रही है।

कुसुम सरोवर :-

कुसुम वन कुसुमा सखी की कुंज और रास क्रीडा के समय श्रीकृष्ण द्वारा राधाजी की वेणी गुंथी जाने के स्थल के रूप में प्रसिद्ध हैं कुसुम वन क्षेत्र में स्थित कुसुम सरोवर प्राचीन सरोवर है। इस  सरोवर के प्राचीन कच्चे कुंड को ओरछा नरेश राजा वीर सिंह जूदेव ने सन 1818 में पक्का करवाया था। और सन 1723 में भरतपुर के Maharaja Surajmal ने इसे कलात्मक स्वरूप प्रदान किया  था।

महाराजा जवाहर सिंह :-

महाराजा सूरजमल के पुत्र महाराजा जवाहर सिंह ने सन 1768 में यहां अनेक छतरियों का निर्माण कराया था। पिता के बलिदान के बाद वीरता और अजय के महायोद्धा की परंपरा को उनेक सुपुत्र महाराजा जवाहर सिंह ने भी निभाया था। महारानी किशोरी देवी ने अपने बेटे महाराजा जवाहर देने को कहा कि तुम्हारे पिता की पगड़ी दिल्ली के दरबार में ठोकरें खा रही है और तुम शांति से बैठे हो।

शब्दा मारया मर गया

शब्दा छोड़या राज

जो नर शब्द पहचान गया

वां का सरग्या काज ।

महाराजा जवाहर सिंह के द्वारा दिल्ली पर विजय :-

महाराजा जवाहर सिंह, महारानी किशोरी देवी के शब्द सुनकर दिल्ली पर चढ़ाई कर दि, और घमाशान युद्ध के बाद इतिहासिक विजय प्राप्त की दिल्ली विजय की अमर निशानी के रूप में महाराजा जवाहर सिंह  दिल्ली के लाल किले से अष्ट धातु के दरवाजे लाकर लोहागढ़ के किले में लगा दिए अलाउद्दीन खिलजी ने पद्मिनी नहीं मिलने पर चितौड़ से यह अष्ट धातु के दरवाजे उखाड़ कर दिल्ली ले गया था। इस विजय के बाद माता किशोरी देवी ने पुष्कर में शाही स्नान की इच्छा प्रकट की तो महाराजा जवाहर सिंह ने पुष्कर में भरतपुर का जाट घाट बनाया था। और राजमाता किशोरी देवी ने शाही स्नान किया। दिल्ली के ऐतिहासिक विजय के उपलक्ष में महाराजा भरतपुर में जवाहर ब्रिज का निर्माण करवाया। यहां भरतपुर सम्राज्य के महाराजाओं ने गौरवशाली वंशावली अंकित की।

भरतपुर राजवंश :-

इस राजवंश पर भगवान शिव और कुलदेवी माता चामुंडा देवी की हमेशा एसी कृपा दृष्टि बनी रही कि यहां राजवंश के लिए किसी भी शासक को पुत्र गोद लेने की जरूरत नहीं पड़ी।

  • महाराजा बदन सिंह (1723-1756)
  • Maharaja Surajmal (1707-1763)
  •   ”   ”      सवाई जवाहर सिंह (1764-1768)
  • राजा रतन सिंह (1768-1769)
  • महाराजा केहरी सिंह (1769-1776)
  • महाराजा रणजीत सिंह (1776-1805)
  •    ”   ”      रणधीर सिंह (1805-1823)
  • महाराजा बलदेव सिंह (1823-1824)
  • महाराजा बलवंत सिंह (1826-1853)
  •    ”   ”     जसवंत सिंह (1853-1893)
  • महाराजा रामसिंह (1893-1900)
  •    ”     ”   कृष्ण सिंह (1900-1929)
  • महाराजा विजेंद्रसिंह (1939-1948)
  • महाराजा विश्वेंद्र सिंह 1948 से निरंतर और 15 वीं पीढ़ी से निरंतर युवराज अनिरुद्ध सिंह ने राज किया था।
  • 1731 में मेवात क्षेत्र के ((((दावर))) जंग को हराया था।

FAQ About Maharaja Surajmal :

  1. महाराजा सूरजमल की गोत्र क्या थी?

    Maharaja Surajmal सिनसिनवार गोत्र के महाराजा थे।

  2. महाराजा सूरजमल का इतिहास क्या है?

    नामMaharaja Surajmal
    पिता का नाम – महाराजा बदन सिंह
    माता का नाम – रानी देवकी
    राज्य अभिषेक – 22 मई 1755
    मृत्यु – 25 दिसंबर 1763

  3. महाराजा सूरजमल का जन्म कब हुआ था?

    13 फरवरी 1707

  4. महाराजा सूरजमल की मृत्यु कैसे हुई?

    दिल्ली विजय के दूसरे दिन बाद हिडन नदी के किनारे महाराजा सूरजमल घोड़े पर सवार होकर घूम रेह थे। कि अचानक दुश्मनों ने धोखे से पीठ पर गोली मार दी। हिन्दुस्तान का यह शेर आमने सामने के मुकाबले में कभी नहीं हारा लेकिन पीढ पीछे के वार की वजह से 25 दिसंबर 1763 को भारत भूमि के अजेय महायोद्धा महाराजा सूरजमल वीरगति को प्राप्त हो गए थे।

  5. सूरजमल किसका पुत्र था?

    Maharaja Surajmal राजा बदन सिंह के पुत्र थे।

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