Maharana Udaisingh – महाराणा उदयसिंह

यह तस्वीर महायोद्धा Maharana Udaisingh की है!

महाराणा उदयसिंह द्वितीय Maharana Udaisingh एक मेवाड़ के महाराणा थे और उदयपुर शहर के स्थापक थे जो वर्तमान में राजस्थान राज्य है। उदयसिंह मेवाड़ के शासक राणा सांगा (संग्राम सिंह) के चौथे पुत्र थे जबकि इनकी माता का नाम बूंदी की रानी, रानी कर्णावती था। ये मेवाड़ साम्राज्य के ५३वें शासक थे।

Maharana UdaiSingh का जीवन परिचय

  • जन्म :- इनका जन्म 14 अगस्त 1522 ईस्वी में चित्तौड़गढ़ दुर्ग में हुआ था।
  • पिता जी का नाम :- महाराणा सांगा
  • माता जी का नाम :- हाडी रानी कर्मावती।
  • धाय मां :- पन्नाधाय।

पन्नाधाय द्वारा महाराणा उदय सिंह के प्राणों की रक्षा :-

सन् 1536 ईं दासी पुत्र बनवीर ने विक्रमादित्य की हत्या कर दी थी, परंतु उसी समय महाराणा उदयसिंह द्वितीय के प्राणों की रक्षा पन्नाधाय अपने पुत्र चंदन की बलि देकर करती है।और उदय सिंह को चित्तौड़गढ़ दुर्ग से कुंभलगढ़ दुर्ग में भेज देती है। इसी प्रकार महाराणा उदय सिंह के प्राण की रक्षा कर लेती हैं। उसी दौरान कुंभलगढ़ में महाराणा उदय सिंह को चितौड़गढ़ का उत्तराधिकारी मानने से मना कर देते हैं।क्योंकि Maharana Udaisingh ने पन्नाधाय के पुत्र चंदन की पोशाक पहन रखी थी। उसी समय पाली के अखेराज सोनगरा राणा उदयसिंह के साथ भोजन करके लोगों को यकीन दिलाया कि यही राजकुमार हैं। और सन 1537 में राजा स्वीकार कर लिया जाता है।

Maharana Udaisingh का राज्य अभिषेक :-

1537 में कुंभलगढ दूर्ग़ में महाराणा उदय सिंह का राज्याभिषेक हुआ था। इस राज्य अभिषेक में मेवाड़ के राजा महाराजा भी शामिल हुए थे। उसमें से एक मालदेव भी थे। जो जोधपुर के शासक थे।

महाराणा उदयसिंह के द्वारा बनवीर की हत्या :-

Maharana Udaisingh द्वितीय के द्वारा सन् 1540 में जोधपुर के शासक मालदेव के सहयोग से मावली (उदयपुर) में बनवीर को मार देते हैं। बनवीर की हत्या के बाद मेवाड़ का चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर महाराणा उदय सिंह ने कब्जा कर लिया था। राणा उदय सिंह को अपना पैतृक गढ़ 1540 में प्राप्त हो जाता है। महाराणा उदय सिंह महादेव के सहयोग से प्रसन्न हो जाते हैं और मालदेव को अपना प्रिय हाथी बसंतराय भेटस्वरूप देते हैं।

राणा उदय सिंह का विवाह :-

Maharana Udaisingh का विवाह जवन्ताबाई से होता है। जवन्ताबाई पाली के 13 अखेराज की पुत्री थी। विवाह के बाद 9 मई 1540 में चैत्र शुक्ल को बादल महल में शिरोमणि महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था। जवन्ता बाई महाराणा उदय सिंह की पहली महारानी महारानी थी। जवन्ताबाई के अलावा और महाराणा उदय सिंह के 22 रानियाँ थी। महाराणा उदय सिंह के 17 पुत्र और 5 पुत्रियां थी।

शेरशाह सूरी द्वारा चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर आक्रमण :-

शेरशाह सूरी ने सन 1534 ईस्वी को चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर आक्रमण कर देता है, परंतु Maharana Udaisingh शेरशाह सूरी को चित्तौड़गढ़ दुर्ग बिना किसी युद्ध के सौप देते हैं। इसके बाद शेरशाह सूरी ने सम्सख्वास्खाँ को चित्तौड़गढ़ दुर्ग का प्रशासक बना देते हैं तथा चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर शासन करने लग जाते हैं। महाराणा उदय सिंह मेवाड़ का प्रथम शासक था जिन्होंने अफगानी शासन की अधीनता स्वीकार की थी। इसके अलावा महाराणा उदयसिंह, छापामार और गोरिल्ला युद्ध की कला में निपुण था। इस कला में महाराणा उदय सिंह मेवाड़ के प्रथम शासक थे। इसी युद्ध कला के कारण महाराणा उदय सिंह ने शेरशाह सूरी की मृत्यु के बाद फिर से चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर अधिकार कर लिया था।

Maharana UdaiSingh द्वारा जयमल राठौड़ को शरण :-

1562 ईस्वी में अकबर ने मेड़ता, नागौर के शासक जयमल राठौड़ पर आक्रमण कर दिया था। तो महाराणा उदय सिंह ने जयमल राठौड़ को अपने दुर्ग में शरण दी थी। इसी कारण से सन 1567 में अकबर ने मांडलगढ़ भीलवाड़ा के रास्ते चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण कर दिया था। इस कारण से महाराणा उदय सिंह उदयपुर की गोगुंदा की पहाड़ियों में भाग जाता है तथा अकबर ने महाराणा उदय सिंह का पीछा करने के लिए हैसन कुली खां को भेज देते हैं। Maharana Udaisingh चित्तौड़गढ़ का शासन जयमल राठौड़ और फतेह सिंह को सौंप देता है।

चित्तौड़गढ़ का तीसरा युद्ध :-

25 फरवरी 1568ईं.में चित्तौड़गढ़ चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण कर देता है। उस समय जयमल राठौड़ चित्तौड़गढ़ दुर्ग की मरम्मत कर रहे होते हैं। अकबर ने अपनी बंदूक (संग्राम) से जयमल राठौड़ के पेर पर गोली मार देते हैं। उसके बाद जयमल राठौड़ बुरी तरह से घायल हो जाता है। घायल अवस्था में उनके भतीजे वीर कल्ला ने अपने कंधों पर उठा लिया था। तब अकबर को जयमल राठौड़ के चार हाथ देखते हैं। इसी कारण से वीर कला को चार हाथो वाला लोक देवता भी कहते हैं। जयमल राठौड़, फतेह सिंह सिसोदिया और वीर कल्ला अकबर की सेना से वीरता पूर्ण तरीके से युद्ध करते हैं।

अकबर ने उनकी वीरता को देखकर आगरा में जयमल राठौड़ और फतेह सिंह की गजारुढ मूर्तियां लगाई थी। बाद में बीकानेर के शासक जयसिंह ने इन मूर्तियों को जूनागढ़ के किले में लगवा दी थी। इसके बाद फूल कंवर व अन्य रानियों ने जोहर कर लिया था तथा जयमल राठौड़, फतेह सिंह सिसोदिया तथा वीर कल्ला ने केसरिया धारण कर लिया था। इसे चित्तौड़गढ़ दुर्ग का तीसरा साका कहा जाता था। इसके बाद वीर कला की रानी कृष्णा कंवर ने वीर कला प्रधान पीठ रेनेला नें (चित्तौड़गढ़ )में जोहर कर लिया था।

महाराणा उदय सिंह द्वारा नई राजधानी का चयन :-

चित्तौड़गढ़ दुर्ग अपने हाथों से निकलने के बाद महाराणा उदय सिंह ने अपनी दूसरी राजधानी गोगुंदा (उदयपुर) को बना लेते हैं। सन्1567ईं. में महाराणा उदय सिंह ने उदयपुर की स्थापना की थी तथा इसको अपनी राजधानी बनाई थी। इसके अलावा Maharana Udaisingh ने उदयपुर में उदयपुर झील का निर्माण करवाया था तथा उदयपुर में सिटी पैलेस के अंदर राज महल का निर्माण करवाया था। इस राज महल में महाराणा प्रताप का भाला भी मौजूद है।

Maharana Udaisingh की मृत्यु :-

महाराणा उदयसिंह अपनी उम्र के अंतिम पड़ाव में बीमार हो जाते हैं तथा 28 फरवरी 1572 में होली के दिन Maharana Udaisingh की मृत्यु हो जाती हैं।

अन्य टॉपिक :

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top