लोहागढ़ दुर्ग की पूरी जानकारी Lohagarh Fort

लोहागढ़ दुर्ग की पूरी जानकारी Lohagarh Fort

 ऐसे तो राजस्थान में कई दुर्ग और किले स्थित है पर लोहागढ़ दुर्ग  की बात ही कुछ ओर है  ! नमस्कार दोस्तों आज हम राजस्थान के भरतपुर जिले में स्थित लोहागढ़ दुर्ग के इतिहास के बारे जानेगे !

लोहागढ़ दुर्ग भरतपुर का इतिहास History of Lohagarh Fort Bharatpur In Hindi

लोहागढ़ दुर्ग सबसे अंतिम दुर्ग है इसका निर्माण महाराजा सूरजमल ने करवाया ! भरतपुर के महाराजा रणजीत सिंह द्वारा अंग्रेजों के शत्रु जसवंत राव होल्कर को शरण देने के कारण अंग्रेजों ने सेनापति लेक के नेतृत्व में भरतपुर लोहागढ़ दुर्ग को जनवरी, 1805 में आकर घेर लिया ! उन्होंने अप्रैल, 1805 तक पाँच बार भरतपुर दुर्ग पर असफल आक्रमण किया ! और विवश होकर अंग्रेजों को रणजीत सिंह से संधि करनी पड़ी और किले का घेरा 17 अप्रैल, 1805 ई. को उठा लिया गया !

तभी से राजस्थान के लोकगीतों में ये शब्द आने लग गए !

“गोरा हट जा रे राज भरतपुर को”

लोहागढ़ दुर्ग का परिचय Introduction to Lohagarh Fort In Hindi

  • पूरा नाम – लोहागढ़ दुर्ग भरतपुर ( Lohagarh Fort )
  • निर्माण कब हुआ  –  19 फरवरी 1733 ई. में
  • निर्माता – लोहागढ़ दुर्ग के निर्माता महाराजा सूरजमल है
  • लोहागढ़ दुर्ग दुर्गों भूमि दुर्ग, पारिख दुर्ग तथा पारिध दुर्ग है ! यह पारिख श्रेणी में शामिल है !
  • स्थान – भरतपुर ( राजस्थान , भारत )

(1) लोहागढ़ दुर्ग भरतपुर के चारों ओर दो विशाल दीवारें बनी हुई हैं ! इस दोनों दीवारों के मध्य इतना अंतर है कि उस पर दो ट्रक आराम से आ सकती है ! इन दोनों दीवारों के मध्य चिकनी काली मिट्टी भरी हुई है ! जिससे तोप के गोले भी उस मिट्टी में धंस कर रूक जाते थे ! या वेट गोले किले के ऊपर से बाहर चले जाते थे जिससे किले का भीतरी भाग सुरक्षित रहता था !

(2) इस दुर्ग के चारों ओर सात हाथी को ताल जितनी गहराई की एक परिख (खाई) है ! जिसमें रूपारेल और बाण गंगा नदियों के जल को रोककर मोती झील (भरतपुर की लाइफ लाइन) का निर्माण किया गया ! उस मोती झील के भर जाने पर सुजान गंगा नामक नहर से इस खाई को पानी से भरा जाता था !

इस प्रकार जलराशि से परिपूर्ण चौड़ी और गहन परिखा तथा मिट्टी का विशाल परकोटा भरतपुर दुर्ग को एक विलक्षण सुरक्षा कवच प्रदान किये हैं ! इसीलिए भरतपुर दुर्ग के बारे में यह उक्ति लोक में प्रसिद्ध है !

!!दुर्ग भरतपुर अडग जिमि, हिमगिरि की चट्टान !!

!!सूरजमल रे तेज को, अब हि लौ करत बखान !!

भरतपुर दुर्ग में दर्शनीय स्थल Attractions in Bharatpur Durg In Hindi

लोहागढ़ दुर्ग के दरवाजो के नाम – दुर्ग का उत्तरी प्रवेश द्वार अष्ट धातु दरवाजा और दक्षिणी प्रवेश द्वार लोहिया दरवाजा कहलाता है !
दुर्ग के बुर्जे – दुर्ग की 8 विशाल बुर्जे हैं
बुर्जे के नाम –  गोकुला बुर्ज, कालिका बुर्ज, बागरवाली बुजवमो’, जवाहर बुर्ज, फतेह बुर्ज, ख सिनसिनी बुर्ज, भैंसावाली बुर्ज ,नवल सिंह बुर्ज है  !

  • जवाहर बुर्ज –

इसका निर्माण महाराजा जवाहर सिंह ने सन्1735 में दिल्ली विजय की याद में करवाया ! उस समय भरतपुर राजवंश के शासकों का गद्दी पर बैठने का संस्कार इसी बुर्ज पर किया जाता था !

  • फतेहबुर्ज- इसका निर्माण ब्रिटिश सेना की करारी पराजय को चिरस्थाई बनाने हेतु 1806 ई. में महाराजा रणजीत सिंह ने करवाया था !

लोहागढ़ दुर्ग भरतपुर के बारे में अंग्रेज सेनापति चार्ल्स नेटवॉक ने गवर्नर जनरल को लिखा था ! “ब्रितानी फौजों की प्रतिष्ठा भरतपुर के घेरे में दब गई ! अष्ट धातु किंवाड़-इस किंवाड़ को महाराजा जवाहर सिंह ने 1765 ई. में मुगल शाही खजाने को लूटने के साथ ऐतिहासिक लाल किले से उतारकर लाये थे ! यह दरवाजा वो ही था जिसे अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ से उताकर दिल्ली में स्थित झीरी के किले पर लगवाया ! वहाँ से उतारकर शाहजहाँनेलाल किले पर लगवाया ! वहाँ से उतारकर जवाहरसिंह ने भरतपुर दुर्ग में लगवाया !

  • राजेश्वरी माता मंदिर –  भरतपुर के जाट वंश की कुल देवी है !

दुर्ग के बारे में about the fort In Hindi

  • कचहरी कलां –

इस भवन का उपयोग ‘दीवान-ए-आम’ के रूप में होता था ! यहीं पर सन् 1948 ई. में सरदार वल्लभ भाई पटेल की अध्यक्षता में बैठक हुई ! जिसके तहत् भरतपुर, धौलपुर, करौली और अलवर का एकीकरण करके ‘मत्स्य प्रदेश के गठन का निर्माण किया गया !

दुर्ग के प्रसिद्ध दोहा
!! यह भरतपुर दुर्ग, दुस्सह दुर्जय भयंकर
जहै जट्टन के छोहरा, दिए सुभट्टन पछाड
8 फिरंगी 9 गौरा, लडै जाट के दो छोरा
ये दो छोरा थे- दुर्जनलाल और माधोसिंह !!

लोहागढ़ दुर्ग भरतपुर के आक्रमण Invasion of Lohagarh Fort Bharatpur In Hindi

सन् 1805 ई. में अंग्रेजी सेना ने लॉर्ड लेक के नेतृत्व में लोहागढ़ दुर्ग पर आक्रमण किया  4 माह के जबरदस्त आक्रमण के बाद भी अंग्रेज सेना दुर्ग को नहीं जीत पाई ! उसके बादअंग्रेजों को महाराजा रणजीत सिंह से संधि करनी पड़ी थी ! 17.4   1805 को अंग्रेजी सेना ने दुर्ग से घेरा हटा लिया !  इस हार से अंग्रेज अफसरों का मनोबल गिर गया ! अंग्रेजों ने अपनी इस हार का बदला तब लिया जब महाराजा रणजीतसिंह की मृत्यु हो गई  उसके बाद भरतपुर राजघराने की आंतरिक लड़ाई का लाभ उठाकर ! अंग्रेजी सेना ने महाराजा दुर्जन राव के शासन में लॉर्ड कोम्बरमेयर के नेतृत्व में 25 दिसम्बर, 1825 को विशाल सेना के साथ इस दुर्ग पर आक्रमण कर दिया ! और 18 जनवरी, 1826 को लोहागढ़ दुर्ग को अपने अधिकार में ले लिया !


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