माधोराजपुरा का किला जयपुर – Madhorajpura durg

माधोराजपुरा का किला जयपुर - Madhorajpura durg
नमस्कार दोस्तों आज हम राजस्थान के जयपुर में स्थित माधोराजपुरा का किला के बारे में पूरी जानकारी देंगे –

माधोराजपुरा किले का परिचय Madhorajpura durg  –

माधोराजपुरा का किला (स्थल दुर्ग), जयपुर

  • नाम – माधोराजपुरा किला या दुर्ग
  • निर्माण – महाराजा सवाई माधोसिंह प्रथम ने
  • तहसील – फागी
  • जिला – जयपुर
  • राज्य – राजस्थान ( भारत )
  • श्रेणी- स्थल दुर्ग

माधोराजपुरा किले का निर्माण – Madhorajpura fort

जयपुर में माधोराजपुरा का किला यह किला एक स्थल दुर्ग है ! जिसके चारों ओर लगभग 20 फीट चौड़ी और 30 फीट गहरी परिखा है। माधोराजपुरा किला जयपुर से लगभग 59 किमी. दक्षिण में दृदू से लालसोट जाने वाली सड़क पर फागी से लगभग 9 कि.मी. पूर्व के किले के चारों तरफ ! नहर के अलावा दोहरा परकोटा है !
माधोराजपुरा का किला का निर्माण जयपुर के महाराजा सवाई माधोसिंह प्रथम ने मण्ड विजय के उपलक्ष्य में करवाया था ! जयपुर की तर्ज पर बसे माधोराजपुरा व किले पर जोधपुर के महाराजा मानसिंह की पुत्री ! और जयपुर के महाराजा जगतसिंह की महारानी का बरसों तक अधिकार रहा ! जिस पर फिर बाद में लदाणा के भारत सिंह नरूका के द्वारा अधिकार कर लिया गया ! महाराजा जयसिंह तृतीय की धाय मां रूपा बढ़ारण को इसी किले में ही बंदी रखा गया था !

माधोराजपुरा की बनावट (The texture of Madhorajpura) –

माधोराजपुरा कस्बा एक निर्धारित प्लान को ध्यान में रखते हुए बसाया हुआ है ! इसमें राजकीय आवास के रूप में एक विशाल किले का निर्माण भी किया गया है ! जिसके चारों ओर मुख्य परकोटे के नीचे की और गहरी खाई बनी हुई है ! किले के सामने चौड़ा सीधा बाजार बनाया गया है ! बाजार को 2 भागों में बांटते हुए बीच में चोपड़नुमा कटला का निर्माण भी किया हुआ है ! जिसके बीच में एक विशाल चौक और २ विशाल मंदिर हैं जो में पूर्व में स्थापत्य कला के अनुसार बहुत ही मनोहर हैं ! मुख्य बाजारों से पूरे कस्बे के चारों ओर के छोरों पर सीधे और चौड़े रास्ते भी बनाये गये हैं, जो सीधे बाजारों से आकर मिलते हैं ! जयपुर की तरह ही माधोराजपुरा का निर्माण किया गया है !
इसके अलावा यहाँ प्रत्येक जाति समूहों के लिए अलग- अलग ब्लाक काटे गये हैं ! जहाँ पर सभी पक्के मकानों और विशाल हवेलियों में अलग- अलग जाति के लोग बसे हुए हैं ! गाँव के चारों ओर चार कच्चे दरवाजों के साथ ही चारों ओर विशाल परकोटो का निर्माण किया गया हैं जिसके नीचे गहरी खाई बनी है ! लेकिन अब ये अब जीर्ण-शीर्ण हो चुके हैं फिर भी बहुत अच्छी तरह से देखे जा सकते हैं !

अनेक रियासतों को झुकाने वाला पिंडारी –

माधोराजपुरा का किला में अनेक रियासतों को शुकाने वाले अमीर खां पिंडारी जैसे योद्धा को भी नरुकों की ताकत के सामने माधोराजपुरा के किले पर झुकना पड़ा था ! हुआ यूं कि अमीर खां ने नरुकों की जागीर में फागी के पास लदाणा व लावा के सामंतों पर हमला कर दिया था ! भारतसिंह लदाना व कामदार शंभू धाभाई अमीर खां की दो बेगमों व बच्चों को उठाकर माधोराजपुरा के किले में ले आए थे !
इस किले पर अमीर खां ने अपनी बड़ी सेना के साथ हमला कर किले पर एक साल तक घेरा डाले रखा था ! आखिर में अमीर खां ने 21 नवम्बर, 1816 को सुलह कर घेरा छोड़ा ! खास बात यह भी रही कि अमीर खां की दोनों बेगमों को लावा व लदाना के नरुका राजपूतों ने बहन बनाकर किले में रखा था !

राजसिंह डाकू एवं माधोराजपुरा का किला (Raj Singh Daku and Madhorajpura Fort) –

ऐसा कहा जाता है कि दो सदी पहले पास ही के एक छोटे से गाँव में राजसिंह नाम का एक व्यक्ति रहता था ! यह वीर क्षत्रिय और एक बहादुर व्यक्ति था ! परंतु आजीविका के उपयुक्त साधन न होने के कारणवंश लूटपाट करता था ! इसकी इस करतूत के कारण जयपुर राज्य के तत्कालीक शासक महाराजा माधोसिंह बहुत ही चिंतित थे ! एक बार अवसर देखकर उन्होंने अपने दरबार में राजसिंह को बुलाया और ऐसा निन्दित कार्य और लूटपाट न करने के लिए समझाया था ! इसके बाद राजसिंह ही ऐसे घृणित कार्य को न करना स्वीकार कर लिया !
परंतु अपनी आजीविका की मजबूरी महाराजा माधोसिंह को जाहिर की थी ! महाराज माधोसिंह ने ग्राम झिराना की रियासत से काटकर एक गाँव राजसिंह को जागीर में दिया, जिसका नाम दोनों शासकों के नाम के आधार पर माधोराजपुरा रख दिया गया ! यहाँ पर बसने के लिए आसपास के कुशल व्यापारियों, कृषकों, कारीगरों, पंडितों सभी को आमंत्रित किया ! उन्हें भूमि और अन्य सहयोग देकर इस गांव में बसाया गया ! इन लोगों ने सुविधा का लाभ उठाकर यहाँ पर अपने आवास और बहुत अच्छे बाजार बनाये !
व्यापारियों में कुशल व्यापारी, कुशल पंडित, कुशल कारीगरों के समूह आज भी इस गांव में निवास करते हैं ! इस क्षेत्र में अपना रुतबा बनाए रखते हैं ! एक और यह भी विशेषता है की इस कस्बे की बसावट में लाई गई कला यह है ! की इसे प्रसिद्ध गुलाबी नगरी जयपुर की तर्ज पर बसाना ! यह है माधोराजपुरा का किला अगर आप कभी जयपुर जाये तो इस दुर्ग को जरुर देखे !

जयपुर शहर के बारे में जाने –

माधोराजपुरा का किला  को जानने के बाद इसके शहर को जान लेते है जयपुर शहर का पूर्व नाम जयनगर था भारत का पेरिस’, ‘दूसरा वृन्दावन’ और ‘गुलाबीनगर’ (Pinkcity) के नाम से ! प्रसिद्ध जयपुर नगर का निर्माण महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा 18 नवम्बर, सन् 1727 को प्रख्यात बंगाली ! वास्तुशिल्पी विद्याधर भट्टाचार्य के निर्देशन में नौ वर्गों
(चौकड़ियों 9 Squares) एवं 90° कोण सिद्धान्त पर करवाया गया !
ये नौ चौकड़ियाँ थीं- चौकड़ी सरहद (इसमें महल व शासकीय भवन थे), चौकड़ी रामचन्द्रजी, चौकड़ी गंगापोल, चौकड़ी तोपखाना हिजूरी, चौकड़ी घाट दरवाजा, चौकड़ी विश्वेश्वरजी, चौकड़ी मोदीखाना, चौकड़ी तोपखाना देश एवं चौकड़ी पुरानी बस्ती !
  • जयपुर नरेश सवाई रामसिंह द्वितीय

जयपुर नरेश सवाई रामसिंह द्वितीय (1835-80) ने जयपुर की सभी इमारतों पर ! सन् 1876 में इंग्लैण्ड के प्रिंस अलबर्ट एडवर्ड (बाद में सम्राट एडवर्ड सप्तम) के जयपुर आगमन पर गुलाबी रंग करवाया ! तभी से जयपुर ‘गुलाबी नगर’ (Pink City) कहलाने लगा जयपुर की दीवारों पर लगा गेरुआ रंग कानोता के पास ईंट के भट्टों से लाया गया !
गेरू रंग के लिए इंग्लिश डिक्शनरी में शब्द ना होने के कारण प्रिंस ने पहली बार शहर को देखकर पिंक सिटी शब्द का उपयोग किया। बिशप हैबर ने इस नगर के बारे में कहा था ! कि नगर का परकोटा मास्को के क्रेमलिन नगर के समान है ! 6 जुलाई, 2019 को ‘जयपुर शहर परकोटे’ (Jaipur Walled City) को यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया है ! जो शहर की इस विश्व विरासत सूची में शामिल होने वाली तीसरी विरासत है ! इससे पूर्व जंतर-मंतर एवं आमेर दुर्ग को इस सूची में शामिल किया जा चुका है !
  •  क्षेत्रफल : 11143 वर्ग कि.मी.
  • जयपुर जिले के दक्षिण में टोंक, दक्षिण पश्चिम में अजमेर, पश्चिम में नागौर व सीकर, उत्तर में हरियाणा का महेन्द्रगढ़ जिला तथा पूर्व में अलवर व दौसा जिले स्थित है !

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