बयाना दुर्ग – Bayana durg

बयाना दुर्ग - Bayana durg

राजस्थान राज्य भरतपुर जिले से 48 किलोमीटर दूर है बयाना का विसाल दुर्ग जो देखने में बहुत ही अद्भुत है ! बयाना दुर्ग Bayana durg मानी (दमदमा) पहाड़ी पर स्थित है ! करौली के यादव राजवंश के महाराजा विजयपाल ने अपनी राजधानी मथुरा को असुरक्षित जानकर ! इस दुर्ग को मानी (दमदमा) पहाड़ी पर 1040 ई. (11वीं सदी) के लगभग बनवाया था और इसे अपनी राजधानी बनाया था !

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बयाना दुर्ग विजयमंदिरगढ़ का परिचय Introduction of Bayana Fort Vijaymandirgarh

  • नाम – बयाना दुर्ग विजयमंदिरगढ़ ( बयाना दुर्ग को बाणासुर किला भी कहते हैं )
  • निर्माण करवाया – महाराजा विजयपाल ने निर्माण करवाया
  • निर्माण हुआ – 1040 ई. (11वीं सदी) में
  • स्थान – भरतपुर से 48 किलोमीटर दूरी पर स्थित मानी (दमदमा) पहाड़ी पर है
  • राज्य – राजस्थान ( भारत )

बयाना दुर्ग विजयमंदिरगढ़ का इतिहास बयाना किला (History of Bayana Durg)-

बयाना दुर्ग विजयमंदिरगढ़ का इतिहास हजारों साल पुराना है ! इसे दुर्ग को बाणासुर की नगरी भी कहा जाता है बयाना के रास्ते पर तलाकनी मस्जिद स्थित हैं ! पौराणिक कथाओं में ऐसा कहा गया है कि ! 1527 ईस्वी में राणा सांगा से युद्ध में मिली भयंकर पहली हार से लज्जित होकर बाबर ने शराब नहीं पीने का संकल्प ले लिया ! तथा सोने-चांदी से बनाए हुए शराब के प्याले और जश्न में काम आने वाले बर्तन तुड़वा दिए ! और साथ ही पूरी सेना को धर्म का उपदेश देकर युद्ध के लिए जागृत किया ! इस युद्ध के बाद ही भारत में मुगल साम्राज्य का उदय हुआ !
  • भीमलाट
भीमलाट जिसे विजय स्तंभ कहा जाता है इस स्तंभ पर मालवा संवत 428 तथा सन 371-72 उत्कीर्ण है ! राजा विष्णु वर्धन द्वारा पुंडरीक यज्ञ के समापन पर इस प्रस्तर स्तंभ का निर्माण करवाया था ! यह स्तंभ लाल बलुए पत्थर का बना एकाश्मक स्तंभ है जो 13.6 फुट लंबा तथा 9.2 फुट चौड़ा चबूतरे पर खड़ा है ! स्तंभ की कुल लंबाई 26.5 फुट के लगभग है जिसमें पहला 22.8 फुट का भाग अष्टकोणीय है ! और उसके बाद का पूरा का पूरा तनुकार होता जाता है ! स्तंभ के शिखर पर निकली धातुशलाका से भी यही स्पष्ट होता है ! कि इसके शीर्ष पर अवश्य ही कुछ रहा होगा यहां पर लेख भी लगा है !

बयाना दुर्ग विजयमंदिरगढ़ का महत्व Bayana durg

बयाना दुर्ग निधि के ताम्र कलश से कुछ राजवंशों के साथ – साथ मुख्यत गुप्तकाल के सिक्कों के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण मिले हे ! जिनके अध्ययन द्वारा , वंशावली, लाक्षणिक,कालक्रम निर्धारीकरण इत्यादि प्रश्नों का समाधान सम्भव हो हुआ है ! गुप्तकाल के सिक्कों की विविधता को कई भागों में वर्गीकृत किया हुआ है ! गजारूढ़,सिंहनिहन्ता, सिंघासनारूढ़ चंद्रगुप्त द्वितीय,वीणावादक आदि इनके प्रकार हैं ! ताम्रकलश के साथ लगी हुई सिक्कों की प्रतिछवि गुप्तवंश के सिक्कों में संरचना, ! अभिलेख,अलंकरण,प्रतीक और चिन्ह के साथ – साथ सिक्कों के अद्वितीय सौंदर्य का परिचय देती है !
इसमें गुप्तकाल के सिक्कों की तकनीक और प्रतीकात्मकता स्पष्ट रूप से नजर आती है ! इनमें सबसे ज्यादा सिक्के चन्द्रगुप्त द्वितीय के ही हैं। इन सिक्कों से गुप्तवंशीय कुमारगुप्त द्वितीय के इतिहास पर एक नया प्रकाश पड़ता है ! और यह भी अनुमान भी लगाया जाता है कि लगभग 540ईस्वी के आस-पास हूणों के आक्रमण के समय में इस खज़ाने को ज़मीन में गाड़ दिया था ! और यहाँ से स्कन्दगुप्त का एक सिक्का ही मिला है !

बयाना किले का निर्माण Bayana Fort construction

गुप्तकाल के साक्ष्य इस किले से मिलने पर यह निर्धारित होता है कि यह भले ही छोटा हे पर इस किले का अस्तित्व उस समय पर था ! और बाद के प्रतिहार शासकों के स्थानीय प्रशासकों के समय पर यह राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र भी बना रहा था ! मथुरा के यदुवंशी शासकों ने बयाना दुर्ग विजयमंदिरगढ़ पर शासन कर लिया था ! राजा विजयपाल द्वारा इस किले का भव्य निर्माण करवाया गया था  !
  • महाराज विजयपाल और बयाना का किला
बयाना दुर्ग विजयमंदिरगढ़ इस किले का निर्माण महाराज विजयपाल ने 1040 ई. में करवाया था ! विजयपाल मथुरा के यादव वंशीय जादौन राजपूत थे जिन्होंने अपनी राजधानी बयाना में ही बनाई ! गजनी की ओर से होने वाले आक्रमणों से जान और माल की सुरक्षा दिनो दिन कम होती ही जा रही थी ! इस लिए विजयपाल ने मथुरा के मैदान पर बनी अपनी पुरानी राजधानी छोड़कर ! पूर्वी राजस्थान की मानी नाम की पहाड़ी के शिखर के भाग पर बयाना किले निर्माण करवाया और यहां पर चले आए थे !

तवनपाल और उसके उत्तराधिकारी

विजयपाल का पुत्र तवनपाल 1093- 1158 इस वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था ! 66वर्ष के लम्बे शासनकाल के दौरान उसने बयाना दुर्ग विजयमंदिरगढ़ से 22 कि.मी. की दूरी पर तवनगढ़ का किला (त्रिभुवन गिरी) बनवाया ! तवनपाल ने पुनः शक्ति अर्जित कर बयाना के किले को मुस्लिम शासकों से वापस छीन लिया था ! और तवनपाल ने अपने राज्य का विस्तार करते हुए शक्ति बढ़ाई और डाँग, गुड़गांव, अलवर,धौलपुर, मथुरा,भरतपुर, ! आगरा और ग्वालियर के विशाल क्षेत्र को जीतकर अपने राज्य का विस्तार किया ! इस विशाल क्षेत्र पर उसकी सत्ता उसके विरुद्ध “परम भट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर” से भी सिद्ध यही होती है !

धर्मपाल और हरपाल बयाना

राजा तवनपाल के बाद आए अगले दो शासक धर्मपाल और हरपाल अपना पैतृक अधिकार स्थिर रखने में सफल नहीं हो सके ! कुछ पारवारिक झगड़ों और अपने सामंतों के साथ मतभेद होने के कारण ! वंश धर्मपाल धोल्डेरा (धौलपुर) के स्थान पर किला बना कर रहने लग गया था ! और हरपाल बयाना और ताहनगढ़ का शासक बन गया था ! धर्मपाल के पुत्र कुंवरपाल ने हरपाल को मार कर ताहनगढ़ और बयाना भी छीन लिया कुंवरपाल ने सन् 1195ई. तक राज्य किया ! सन् 1196ईस्वी में मोहम्मद गौरी ने बयाना और ताहनगढ़ पर आक्रमण कर दिया था यह घमासान युद्ध हुआ ! जिसमें राजा कुंवरपाल की हार हो गई थी और दोनों किलों पर मोहम्मद गौरी का राज हो गया था !
कुंवरपाल बहुत समय तक डाँग की पहाड़ियों में भटकता फिरता रहा और ! चम्बल नदी के पार सबलगढ़ के जंगलों में यादववाटी क्षेत्र बना कर बयाना को पुनः प्राप्त करने का प्रयास कर रहा था ! कुछ वक्त बाद में बहाउदीन तुगरिल की बयाना किले में ही अचानक मौत हो गयी और ! इस अवसर को देख कर फिर यदुवंशियों ने कुंवरपाल के नेतृत्व में 1204 -1211 ई. के बीच में बयाना का राज्य अपने अधिन कर लिया था ! इसके बाद में एक बार फिर इल्तुतमिश ने बयाना पर आक्रमण कर दिया ! जिसमें यदुवंशी राजपूतों की फिर करारी हार हुई और बयाना दुर्ग विजयमंदिरगढ़ तथा ताहनगढ़ पर मुस्लिम शासकों का वापस अधिकार हो गया था !

Bayana Fort Battle बयाना का युद्ध

बयाना का युद्ध मेवाड़ के महाराणा सांगा और बाबर के बीच फरवरी 1527 ई. में लड़ा गया था ! यह युद्ध खानवा के प्रसिद्ध युद्ध से कुछ सप्ताह ही पहले लड़ा गया था ! 1526 ई. में पानीपत के पहले युद्ध में दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराकर ! बाबर ने भारत में मुगल सत्ता की नींव रख दी थी ! शुरू में राणा सांगा को लगा था कि बाबर भारत में लूटपाट के उद्देश्य से आया है और जल्द ही वापस लौट जाएगा ! पर अप्रैल 1526 ईस्वी में पानीपत का युद्ध जीतते ही बाबर ने अपने बड़े पुत्र हुमायूं को आगरा पर अधिकार करने रवाना कर दिया ! इससे भारतीय शासकों को लगने लगा कि बाबर भारत में रहकर राज्य करने आया है !
बाबर ने मेवात, ग्वालियर,बयाना, रापरी, धौलपुर आदि स्थानों के किलेदारों की अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए ससैन्य संदेश भेजे ! लोदी सत्ता के पतन के बाद इनमें से अधिकांश किलेदार स्वतंत्र रूप से ही अपना काम कर रहे थे ! दुर्ग बयाना के अफगान किलेदार निजाम खां ने बाबर की अधीनता स्वीकार आसानी से कर ली ! लेकिन मेवात के सूबेदार हसन खां मेवाती ने बाबर की अधीनता स्वीकार करने से बिल्कुल मना  ही करर दिया !

राणा सांगा और बाबर के मध्य युद्ध बयाना दुर्ग

अब बयाना का किला राजस्थान का पूर्वी प्रवेश द्वार था ! इस किले के मुगल अधिकार में जाते ही राणा सांगा ने बाबर से युद्ध करने का पूर्ण निश्चय किया ! राणा सांगा ने सेना लेकर आक्रमण कर दिया और बाबर भी सेना लेकर आगे बढ़ गया ! फरवरी 1527 ईस्वी में दोनों सेनाओं के बीच भयंकर बयाना में एक भयंकर युद्ध लड़ा गया ! इस युद्ध में बाबर की सेना बुरी तरह से पराजित हुई और ! भाग छुटी और बयाना दुर्ग विजयमंदिरगढ़ पर राणा सांगा का पूर्ण रूप से अधिकार हो गया ! पर क्या करे यह भी विजय स्थाई नहीं रह सकी कुछ ही दिनों के बाद मार्च 1527 ईस्वी में खानवा के मैदान में बाबर और राणा सांगा के मध्य ! एक और भयंकर निर्णायक युद्ध हुआ था, जिसमें अबकी बार किस्मत ने बाबर का साथ दिया और इस तरह से बयाना का किला मुगलों के अधीन हो गया था !

महमूद अली की बयाना में नियुक्ति –

एक अभिलेख बाबर के समय का (934 हिजरी या 1527 ई.) जिससे ! इस वर्ष में बाबर का बयाना दुर्ग विजयमंदिरगढ़ पर पूर्णत अधिकार सूचित होता है ! बाबर के हाथ में यह प्रदेश राणा संग्राम सिंह के खानवा के युद्ध (1527 ई.) में पराजित होने पर ही आया होगा ! और बाबर ने बयाना क्षेत्र की सूबेदारी अपने सेनापति महमूद अली को सौंप दी थी ! महमूद अली का महल भीतरवाड़ी के अंदर अब भग्नावस्था में मौजूद है ! लोक परम्परा में एक नाम अजब सिंह भांवरा का भी मिलता है ! यह व्यक्ति जाति से ब्राह्मण था जो की महमूद अली के मंत्री के पद पर नियुक्त किया हुआ था ! भांवरा के नाम से बयाना में भांवरा गली भी प्रसिद्ध है ! इस गली में अजब सिंह के बनवाए हुए गिदोरिया कूप,चौका महल तथा अनासागर बाबड़ी जो की आज भी वर्तमान में हैं !

शेरशाह के बेटो का संघर्ष और बयाना दुर्ग विजयमंदिरगढ़ Bayana Fort in hindi

शेरशाह सूरी ने चौसा और बिलग्राम के युद्धों (1539-40 ईस्वी) में हुमायूं को हराकर दिल्ली राज्य पर अधिकार कर लिया था ! तब उसने बयाना दुर्ग विजयमंदिरगढ़ का क्षेत्र अपने बड़े पुत्र आदिलशाह को जागीर में दे दिया ! और शेरशाह की मृत्यु के बाद उसका दूसरा बेटा जलाल इस्लामशाह के नाम से गद्दी पर बैठा था ! वह शेरशाह का बड़ा पुत्र आदिलशाह जो बयाना की जागीर का स्वामी था उसने उसका विरोध किया ! इन दोनों भाइयों के बीच आगरा के पास एक युद्ध (1546 ई.) लड़ा गया जिसमें आदिलशाह की हार हुई ! और उसे बयाना की जागीर छोड़कर भागना पड़ा ! इधर बयाना दुर्ग विजयमंदिरगढ़ की जागीर अब हिंडौन के अधीन थी और हिंडौन का गवर्नर गाज़ी खां को बनाया था ! गाज़ी खां शेरशाह सूरी का ही रिश्तेदार था ! वे शेरशाह के छोटे भाई निजाम खां की सबसे छोटी बेटी गाज़ी खां के बेटे इब्राहीम खां सूर की पत्नी थी !

इब्राहीम खां सूर का उत्थान और बयाना का किल Bayana durg in hindi

इस से आगे समझने के लिए यह जरूरी है कि उस समय की विकेन्द्रीकृत सत्ता और ! शेरशाह के अयोग्य उत्तराधिकारियों के बारे में थोड़ी चर्चा की जाए ! शेरशाह सूरी के उत्तराधिकारी इस्लामशाह ने निरन्तर विद्रोहों को दबाने और खुद को सुरक्षित रखने के लिए ! राजधानी को ग्वालियर स्थानांतरित बना लिया था ! 1553 ई. में इस्लामशाह की मृत्यु हो गई और उसका 12 वर्षीय पुत्र फिरोजशाह सूरी गद्दी पर बैठ गया ! पर उसी वर्ष शेरशाह के छोटे भाई निजाम खां के पुत्र अदील ने उसको मार दीया ! और खुद मुहम्मद शाह आदिल के नाम से सुल्तान बन गया था !
इतिहास प्रसिद्ध वीर हेमू इसी आदिलशाह का सेनापति था बयाना से यह कहानी कुछ इस तरह जुड़ी होती है ! कि हिंडौन के गवर्नर गाज़ी खां के बेटे और मुहम्मद शाह आदिल के बहनोई इब्राहीम खां सूर ने बयाना आकर विद्रोह कर दिया और ! दिल्ली के साथ साथ साम्राज्य के उत्तरी भाग पर भी अधिकार कर लिया था ! मुहम्मद शाह आदिल पूर्व की तरफ के राज्य पर ही टिका रह गया ! इस इब्राहीम खां सूर और हेमू के बीच की लड़ाइयां बयाना क्षेत्र में लड़ी गईं थी ! जो इस क्षेत्र के इतिहास के अध्ययन की दृष्टि से बहुत ही अतिमहत्त्वपूर्ण हैं !

बयाना के किले पर हेमू का घेराव –

मुहम्मद शाह आदिल के निर्देश पर हेमू इब्राहीम ख़ाँ सूर के विरुद्ध सेना लेकर आगे बढ़ा गया ! इब्राहीम उस समय अपनी सेना के साथ कालपी में था ! हेमू को कालपी की ओर आगे बढ़ता देख कर इब्राहीम डर कर वहां से भाग गया और अपने पिता के पास बयाना चला गया ! दोनो पिता-पुत्र ने अपनी सेना के साथ खुद को बयाना दुर्ग विजयमंदिरगढ़ में सुरक्षित कर लिया ! और हेमू ने अपनी विशाल सेना के साथ बयाना के किले पर घेरा डाल कर वही डेरा डाल दिया ! एक बार कोसिस करके इब्राहीम बयाना के किले से बाहर निकला और ! खानवा के मैदान में इसकी हेमू की सेना से तगड़ी मुठभेड़ हुई ! यहां से हार एक भागा इब्राहीम एक बार फिर बयाना के किले में जाकर छुप गया !
उस समय देश में भयंकर ही अकाल पड़ा था और अन्न पानी का बड़ा संकट था हेमू के पास अन्न-राशन इत्यादि का पर्याप्त भंडार था ! जबकि बयाना के किले में छुपी इब्राहीम की सेना भूख से मरने की हालत में थी ! उस समय के प्रसिद्ध इतिहासकार अलबदायूंनी जिसने ‘मंतखाबउल तवारीख़’ नाम की एक पुस्तक लिखी है ! यह पुस्तक ‘तारीख़े बदायूंनी’ के नाम से भी जानी जाती है ने इस किले के घेराव का पूरा वर्णन किया है ! दिलचस्प बात यह भी है कि इस अलबदायूंनी का जन्म स्थान भी यही बयाना नगर में ही है !

बयाना के किले की घेरा बंदी

बदायूंनी लिखता है कि ‘उसने जब बयाना के किले को घेर रखा था ! तो खुदा के बन्दे रोटी के लिए तड़प रहे थे तथा एक-दूसरे की जान लेने लग गए थे ! लोग जौ के एक एक दाने के लिए तरस रहे थे ! लाखों लोग भुखमरी का शिकार हो गए थे ! ऐसे समय में हेमू के पास पांच सौ हाथियों का ही भोजन, चावल, तेल और चीनी था !
फिर 1542 ई. में जब इस घेरे से तंग आकर इब्राहीम घुटने टेकने ही वाला था ! की तभी हेमू को मुहम्मद शाह आदिल ने वापस पूर्व दिशा में बुलाने का आदेश भेज दिया था ! दरअसल वहां आदिल को बंगाल के शासक मुहम्मद खां सूर से खतरा बढ़ रहा था ! वे हेमू ने तीन माह से चल रहे घेरे को उठाया और ! पीछे लौट गया हेमू जब पीछे हटा तो इब्राहीम ने हिम्मत करके उसके पीछे से आक्रमण बोल दिया ! आगरा से 6 कोस दूर मंडावर के पास एक भयंकर ही युद्ध हुआ जिसमें एक बार फिर इब्राहीम को मुंह की खानी पड़ी !

आइन-ए-अकबरी और बयाना दुर्ग

अकबर के राज्य में यह प्रदेश शांत रहा यहां के उद्योग-धंधे भी फुल उन्नत हुए ! यह बयाना क्षेत्र उस दौर में नील की खेती के लिए दुनिया में अपनी एक अलग ही पहचान बना चुका था ! अबुल फजल द्वारा लिखित पुस्तक ‘आइन-ए-अकबरी’ के अनुसार तो बयाना दुर्ग विजयमंदिरगढ़  में सर्वश्रेष्ठ किस्म की नील का उत्पादन होता था ! जबकि घटिया किस्म की नील का उत्पादन खुर्जा एवं दोआब,कोइल (अलीगढ़) में होता था ! सर जदुनाथ सरकार ऐसा लिखते हैं कि बयाना की नील भारत के अन्य क्षेत्रों की नील से 50 प्रतिशत अधिक मूल्य पर बिक जाती थी ! यहाँ से नील इराक होते हुए इटली भेजी जाती थी !
उस दौर में बयाना का इतना महत्त्व हो गया था कि मथुरा जैसा परगना भी बयाना सरकार के अधीन आता था ! 1564 ई. के एक फरमान से यह ज्ञात हुआ की मथुरा परगने पर नियुक्त शिक़दर (सब रेवेन्यू कलेक्टर) का नाम बनारसीदास था ! वहीं उस समय बयाना सरकार का करोड़ी (रेवेन्यू कलेक्टर) राय मथुरादास नाम का भी व्यक्ति था ! अकबर ने 1593 ई. में सरकार दफ्तर के स्थान पर दस्तूर सर्किल की व्यवस्था भी बनाई ! तब शुरुआत में मथुरा का परगना बयाना के दस्तूर सर्किल के ही अंतर्गत ही था ! बाद में मथुरा परगना आगरा सर्किल के अंर्तगत कर दिया गया था !

जाट शासन के अंतर्गत बयाना दुर्ग विजयमंदिरगढ़

17 वी सदी के आखिरी वर्षों में सम्पूर्ण काथेड़ क्षेत्र मुगलों से मुक्त होकर स्थानीय जाट शासकों के हाथ में आ गया था ! 180 वी शताब्दी में यहां मजबूती से सिनसिनवार जाट शासकों की सत्ता स्थापित हो गई थी ! उस दौर में बयाना में सुरक्षा, शांति,और उद्योग इत्यादि में वृद्धि हुई ! पर यहां का राजनीतिक महत्त्व जाता ही रहा ! मुगलों के समय में सारे क्षेत्र का मुख्य राजस्व दफ्तर का केंद्र बयाना दुर्ग विजयमंदिरगढ़ अब महज एक जिला सदर मुकाम की भूमिका में आ गया था ! क्षेत्र की राजनीति के संचालन के केंद्र के रूप में डीग नगर उभर कर आया था !
और धीरे -धीरे कुम्हेर और भरतपुर नगरों का भी बहुत विकास हुआ था ! रियासत काल के बाद आजाद भारत में यह भरतपुर जिले की एक प्रमुख तहसील हैं ! पर दुर्भाग्य यह रहा कि इसका इतिहास अब भी अंधकार में है स्थानीय लोग तो अब भी इस बयाना नगर के उस इतिहास से बिल्कुल ही अपरिचित हैं ! जिसे इब्नबतूता और जियाउद्दीन बरनी जैसे लेखकों ने अपनी पुस्तकों में विस्तार पूर्ण से लिखा है !

बयाना का ऊषा मन्दिर –

बयाना को बाणासुर की नगरी भी कहा जाता है क्योंकि, बाणासुर की बेटी ऊषा ! और भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र अनिरुद्ध का प्रेमाख्यान श्रीमद भागवत 10.62 और अन्य पुराणों में भी वर्णित है ! इस स्थान का पुराना नाम ‘बाणपुर’ कहा जाता है ! इसके अलावा इसके अन्य नाम ‘श्रीप्रथ’ या ‘श्रीपुर’ ‘वाराणसी’भी उपलब्ध हैं ! यहां पर एक प्रसिद्ध ऊषा मंदिर भी स्थित है जहां से 956 ई. का एक अभिलेख ही प्राप्त हुआ था ! और इस अभिलेख के अनुसार तो फक्का वंश के राजा लक्ष्मण सैन की रानी चित्रलेखा ने सम्राट महीपाल के शासन काल में ! ऊषा मंदिर का निर्माण करवाया था इल्तुतमिश के काल में यहां पर एक मस्जिद भी बनवाई थी जिसको ऊषा मस्जिद भी कहते हैं !

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