तारागढ़ दुर्ग अजमेर की पूरी जानकारी Taragarh Fort Ajmer

तारागढ़ दुर्ग अजमेर की पूरी जानकारी Taragarh Fort Ajmer

नमस्कार दोस्तों आज हम राजस्थान के अजमेर जिले में स्थित तारागढ़ दुर्ग अजमेर के बारे में जानेगे 

तारागढ़ दुर्ग का परिचय Introduction to Taragarh Fort in Hindi

  • पूरा नाम – तारागढ़ दुर्ग अजमेर (इस दुर्ग को ‘दूसरा जिब्राल्टर’ नाम दिया गया हैँ )
  • दुर्ग का निर्माण किसने करवाया – अजयपाल ने
  • कब हुआ निर्माण – 7वीं सदी में स्थान – अजमेर (राजस्थान, भारत )
  • दरवाजे – 7 दुर्ग के दरवाजो के नाम – भवानी पोल, हाथी पोल, विजयपोल, लक्ष्मीपोल, फूटा दरवाजा, अरकोट दरवाजा तथा बड़ा दरवाजा है !

दुर्ग के बुर्जे – 14

बुर्जो के नाम – जानूनायक की बुर्ज, पीपली बुर्ज, इब्राहीम शहीद की बुर्ज, खिड़की बुर्ज, फतेह बुर्ज, घूघट, गूगड़ी, दोराई बुर्ज, बंदारा बुर्ज, इमली बुर्ज, फूटी बुर्ज, नक्कारची की बुर्ज, श्रृंगार चंवरी बुर्ज, आर-पार का अत्ता, सैयद बुर्ज एवं हुसैन बुर्ज है !

तारागढ़ दुर्ग अजमेर का इतिहास – History of Taragarh Fort Ajmer in hindi

तारागढ़ दुर्ग अजमेर इतिहासकारो के अनुसार (भारत का प्रथम गिरि पद)  ! अजमेर के तारागढ़ दुर्ग का निर्माण अजयपाल चौहान द्वारा 7वीं शताब्दी में करवाया गया ! जिसका बाद में 1113 ई. में अजयराज ने विस्तार कर चौहानों की राजधानी सांभर से अजमेर को बनाई गई ! और कई इतिहासकारों के अनुसार अजयमेरू दुर्ग का निर्माण अजयराज चौहान ने 11वीं शताब्दी (1113 ई.) में करवाया  ! और इसी के नाम पर इसे ‘अजयमेरू दुर्ग’ कहते हैं !

इस दुर्ग में छोटे बड़े कुल नौ दरवाजे 14 विशाल बुर्ज व पानी के पाँच कुंड बने हुए हैं !
तारागढ़ दुर्गअजमेर अरावली पर्वतमाला के मध्य में स्थित होने के कारण इसे ‘अरावली का अरमान’ कहते हैं ! यह दुर्ग राजपूताने व राजस्थान के मध्य में स्थित होने के कारण इसे ‘राजस्थान का हृदय’ और ‘राजपूताने की कुञ्जी कहते हैं ! मेवाड़ के पृथ्वीराज सिसोदिया ने 1505 ई. में इस दुर्ग के कुछ भाग का निर्माण करवाकर अपनी पत्नी ताराबाई के नाम पर इसका नाम तारागढ़ कर दिया ! यह दुर्ग ‘बिठली नामक पहाड़ी’ पर बना हुआ है और इस गढ़ को बिठली दुर्ग भी कहते हैं !

तारागढ़ दुर्ग अजमेर ‘पूर्व का जिब्राल्टर’ – Taragarh Fort Ajmer ‘East of Gibraltar

दूसरा मत तारागढ़ दुर्ग अजमेर का यह भी है, कि 17वीं शताब्दी (1644 से 1656 ई.) में मुगल बादशाह शाहजहाँ के सेनाध्यक्ष विट्ठलदास गौड़ ने इस दुर्ग का पुर्ननिर्माण कराया ! इसलिए यह गढ़ बीठली कहलाया ! दुर्ग के निर्माण से प्रभावित होकर बिशप हैबर ने इसे ‘पूर्व का जिब्राल्टर’ कहा था ! राजस्थान में सर्वाधिक स्थानीय आक्रमण इसी दुर्ग पर हुए ! इसी दुर्ग में मुगल बादशाह शाहजहाँ के बड़े पुत्र दाराशिकोह का जन्म हुआ तथा धौलपुर युद्ध में औरंगजेब से परास्त होकर दाराशिकोह ने यहाँ शरण ली ! यह दुर्ग गिरि दुर्ग की श्रेणी में आता है !

  • मीरान साहब की दरगाह अजमेर – Miran Sahib’s Dargah Ajmer

तारागढ़ दुर्ग अजमेर में मीरान साहब की दरगाह है यह दरगाह किले के प्रथम गवर्नर मीर सैय्यद हुसैन खिंगसवार की है ! जिन्होंने 1202 ई. में किले की रक्षार्थ अपने प्राणों की आहुति दी थी ! इसी मीरान साहब की दरगाह में इनके सबसे प्रिय घोड़े की मजार पूरे हिंदुस्तान (उत्तर भारत) में केवल अजमेर में ही है ! ऐसा माना जाता है कि इस मजार पर दाल चढ़ाने वालों की मनोकामना पूरी होती है !

तारागढ़ दुर्ग अजमेर में स्थित

तारागढ़ दुर्ग अजमेर  में रूठी रानी (उमादे) की छतरी और पृथ्वीराज स्मारक, तारागढ़ पहाड़ी के ठीक नीचे एक प्राचीन गुफा शीशाखान है ! जो गर्मियों में बिल्कुल ठंडी और शीत ऋतु में गर्म रहती है ! यह गुफा फायसागर के निकट चामुंडा माता के मंदिर की पहाड़ियों तक जाती
है ! जिसके विषय में जनश्रुति है कि अंतिम हिंदु सम्राट पृथ्वीराज चौहान इस रास्ते से उक्त देवी मंदिर में दर्शन हेतु जाया करते थे !


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