तारागढ़ किला बूंदी Taragarh Fort Bundi

तारागढ़ किला बूंदी Taragarh Fort Bundi

नमस्कार दोस्तों आज हम राजस्थान राज्य के बूंदी जिले में स्थित तारागढ़ किला बूंदी के इतिहास के बारे में जानेगे 

तारागढ़ किले का इतिहास Taragarh Fort History In Hindi

तारागढ़ किला बूंदी का निर्माण देवीसिंह हाड़ा के प्रपौत्र राव बरसिंह ने सन् 1352 ई. में मेवाड़, मालवा व गुजरात के शासकों के हमले से बचने के लिए तारागढ़ किला बूंदी का निर्माण करवाया था ! यहाँ पर प्राचीन काल में मीणा सरदार बूदा का शासन था और उसी के नाम पर इस नगर का नाम पड़ा ! और यह किला ‘बूंदी का किला’ कहलाया ! ऊँचे पर्वत पर स्थित होने के कारण इसे धरती से देखने पर यह आकाश के तारे के समान दिखाई देने के कारण इसका नाम तारागढ़ पड़ा ! इतिहास के अनुसार इस गढ़ के राज खजाने की सुरक्षा विश्वस्त पठान परिवार करता था ! संयोगवश जब महाराजा बहादुर सिंह द्वितीय विश्वयुद्ध में व्यस्त थे !

उसी समय पठान परिवार के अंतिम सदस्य की मौत हो गई ! जब बहादुर सिंह वापिस लौटे तो उन्होंने खजाने के लिए यहाँ खुदाई भी करवाई किंतु उनके कुछ हाथ नहीं लगा ! परंतु उन्हें इस दुर्ग में गुप्त सुरंगे मिली और इस दुर्ग को ‘तिलस्मी किला’ भी कहते हैं !

बूंदी का किला तारागढ़ का परिचय – Introduction of Bundi Fort Taragarh

  • नाम – तारागढ़ किला बूंदी ( तारागढ़ फोर्ट )
  • निर्माण करवाया  –  राव बरसिंह ने
  • निर्माण कब हुआ था  – 1352 ई. में करवाया था
  • स्थान – बूंदी जिला – राजस्थान ( भारत )
  • इस किले में शक्तिशाली तोप का नाम गर्भ गुंजन तोप है !

गर्भ गुंजन तोप –

तारागढ़ किला बूंदी का एक नक्शा वर्तमान में सिटी पैलेस ( जयपुर) के संग्रहालय में रखा हुआ है ! रतनसिंह ने इसी दुर्ग में शाहजहाँ को शरण दी ! तारागढ़ दुर्ग के परकोटे में केवल एक भीम बुर्ज है जिसे चौबुर्ज भी कहते हैं ! उसका निर्माण 16वीं शताब्दी में शक्तिशाली तोप ‘गर्भ गुंजन’ को रखने के लिए किया गया था ! कहते हैं, कि इस तोप की आवाज इतनी तेज थी कि तोपचियों को पलीता लगाने के बाद पानी में कूदना पड़ता था ! ताकि उन्हें भयंकर आवाज सुनाई न पड़े ! बूंदी का किला हाड़ौती अंचल का सबसे पुराना दुर्ग है !

मराठों ने सर्वप्रथम बूंदी रियासत पर आक्रमण किया ! अंग्रेज उपन्यासकार रूडयार्ड किपलिंग 19वीं शताब्दी में बूंदी आए और यहाँ स्थित सुखमहल में ठहरकर अपनी पुस्तक लिखी ! और तारागढ़ के बारे में कहा कि “यह दुर्ग मानव द्वारा नहीं बल्कि प्रेतों द्वारा बनाया लगता है ! कर्नल जेम्स टॉड ने रजवाड़ों के राजप्रसादों में बूंदी के राजमहलों के सौंदर्य को सर्वश्रेष्ठ बताया है !

बूंदी दुर्ग में स्थित दर्शनीय –

  • तारागढ़ किला बूंदी  स्थलरंग विलास महल (चित्रशाला) –

स्थलरंग विलास महल इसका निर्माण उम्मेद सिंह के द्वारा (1739-1770 ई. के मध्य में) चित्रशाला के रूप में करवाया गया ! जहाँ वर्तमान में यहाँ बूंदी चित्रकला का संग्रहालय है ! चित्रशाला में रागमाला, शिकार और राधाकृष्ण रासलीला के अनेक चित्र बने हैं ! यहाँ भित्ति चित्रों का मोहक खजाना और चित्रांकन में मुगलकालीन नज़ाकत, नक़ासत और सुनहरी रंग की अपनी चटख है !

  • रानीजी की बावड़ी –

इसका निर्माण राव राजा अनिरूद्धसिंह जी की रानी नाथावत जी ने 1699 ई. में करवाया।जो 15 मीटर चौड़ी व
510 मीटर लंबी है। ऐसी बावड़ी पूरे देश में ही नहीं अपितु एशिया भर में नहीं है।

  • रतन दौलत दरीखाना –

तारागढ़ किला बूंदी रतन दौलत दरीखाना पर बूंदी नरेशों का राजतिलक होता था ! कर्नल जेम्स टॉड ने इसी भवन में अव्यस्क राजा रामसिंहको सिंहासन पर बैठाया था !

  • जीवरक्खा महल, रतनमहल, फूल महल, बादल महल, 84 खंभों की छतरी, दीवान-ए-आम, नौबतखाना, दूधा महल आदि इस दुर्ग के अन्य दर्शनीय स्थल हैं !

तारागढ़ किला बूंदी के आक्रमण – Taragarh kila Bundi

इतिहासकारो के अनुसार महाराणा क्षेत्रसिंह बूंदी विजय करने के प्रयास में मारे गए थे! उनके पुत्र महाराणा लाखा ने बूंदी विजय की प्रतिज्ञा की थी ! लेकिन काफी प्रयासों के बावजूद भी बूँदी पर अधिकार न कर सके तो उन्होंने मिट्टी का नकली दुर्ग बनवाकर उसे ध्वस्त कर !अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण की लेकिन नकली दुर्ग की र
क्षा के लिए भी हाडा चौहानों ने अपने प्राण की बाजी लगा दी !

  • तारागढ़ किला बूंदी पर कभी मेवाड़ शासकों का तो कभी मालवा के सुल्तानों का अधिकार रहा था ! मालवा के सुल्तान  ने तारागढ़ दुर्ग पर आक्रमण कर दुर्ग पर अधिकार कर लिया  !
  • उसके बाद तारागढ़ बूंदी में महमूद खिलजी ने अधिकार कर लिया !
  • महाराणा कुंभा ने भी बूँदी दुर्ग पर अधिकार किया था

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