लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri)

लाल बहादुर शास्त्री (जन्म: 2 अक्टूबर 1904 मुगलसराय (वाराणसी) : मृत्यु: 11 जनवरी 1966 ताशकंद, सोवियत संघ रूस), भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे। वह 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्यु तक लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमन्त्री रहे। इस प्रमुख पद पर उनका कार्यकाल अद्वितीय रहा। शास्त्री जी ने काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि प्राप्त की।

जीवन परिचय :-

जन्म :-

श्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी से 7 मील दूर एक छोटे से रेलवे टाउन, मुगलसराय में हुआ था।

पिताजी का नाम:-

इनके पिता जी का नाम मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव था। यह एक स्कूल में शिक्षक थे। इन्हें मुंशी जी भी कहा जाता था। बाद में उन्होंने राजस्व विभाग में लिपिक की नौकरी कर ली थी।

माता जी का नाम:-

लाल बहादुर शास्त्री जी की माता जी का नाम राम दुलारी श्रीवास्तव था।

लाल बहादुर शास्त्री का विवाह :-

इनका विवाह सन 1928 में मिर्जापुर निवासी गणेश प्रसाद की पुत्री ललिता से हुआ था। शास्त्री जी के छह संताने हुई थी। दो पुत्रियां कुसुम व सुमन और चार पुत्र हरि कृष्ण, अनिल, सुनील व अशोक थे। परिवार में सबसे छोटे होने के कारण शास्त्री जी को परिवार के सभी सदस्यों उन्हे नन्हे कहकर पुकारते थे। जब शास्त्री जी 18 महीने के हुए तब उनके पिताजी का निधन हो गया था। शास्त्री जी को लेकर माता राम दुलारी श्रीवास्तव अपने पिता हजारी लाल के घर मिर्जापुर चली गई थी। कुछ समय बाद शास्त्री जी के नाना जी का निधन हो गया था।

प्रारंभिक शिक्षा :-

शास्त्री जी की प्रारंभिक शिक्षा उनके ननिहाल मिर्जापुर में हुई थी। उसके बाद की शिक्षा हरिश्चंद्र हाई स्कूल और काशी विद्यापीठ से प्राप्त की थी। काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि मिलते ही उन्होंने अपने नाम के साथ जन्म से चला आ रहा जाति सूचक शब्द श्रीवास्तव हमेशा के लिए हटा दिया था और अपने नाम के आगे शास्त्री लगा दिया था। इसके बाद शास्त्री से लाल बहादुर नाम भी पड़ गया था।

लाल बहादुर शास्त्री के प्रमुख नारे :-

9 अगस्त 1942 के दिन शास्त्री जी ने इलाहाबाद पहुंचकर मरो नहीं मारो,का नारा दिया था जिसने एक क्रांति को पूरे देश में प्रचंड कर दिया था।

इसके अलावा शास्त्री जी ने 21 अक्टूबर 1965 को इलाहाबाद के उरवा गांव में एक सभा को संबोधित करते हुए जय जवान जय किसान, का नारा दिया था।

लाल बहादुर शास्त्री जी का सादगीपूर्ण जीवन:-

शास्त्री जी सच्चे गांधीवादी थे। इन्होंने अपना सारा जीवन सादगी से बिताया था और उसे गरीबों की सेवा में लगाया था। भारतीय स्वाधीनता संग्राम में सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में तथा आंदोलनों में अपनी सक्रिय भागीदारी निभाई थी और इसके परिणाम स्वरूप उन्हें कई बार जेल में भी रहना पड़ा था। शास्त्रीजी जिन स्वाधीनता संग्राम मे तथा आंदोलनों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनमें 1921 का असहयोग आंदोलन,1930 दांडी मार्च, 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन प्रमुख थे।

भारत के प्रधानमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल:-

27 मई 1964 को प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का निधन हो गया था। नेहरू जी की मृत्यु के बाद गुलजारीलाल नंदा को कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाया गया था, किंतु उसके बाद कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के. कामराज के सामने सबसे बड़ी समस्या थी कि नेहरू जी के समान व्यक्तित्व वाले व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाया जाए। सभी राजनेताओं ने विचार-विमर्श करने के बाद यह तय किया कि लाल बहादुर शास्त्री जी को प्रधानमंत्री बना दिया जाए। 9 जून 1964 को श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री के रूप में प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी।

देश के प्रधानमंत्री बनने के बाद शास्त्री जी के महत्वपूर्ण कार्य:-

प्रधानमंत्री बनने के बाद शास्त्री जी ने सर्वप्रथम देश में बढ़ रही अनाज एवं आवश्यक वस्तुओं की कीमतों पर लगाम लगाने की कोशिश की थी। देश में खाद्यान्न संकट उत्पन्न होने पर शास्त्री जी ने देशवासियों से यह आह्वान किया कि देश का हर एक व्यक्ति सप्ताह में 1 दिन उपवास रखे। इनके कार्यकाल के दौरान 1965 ईस्वी को पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया था। शास्त्री जी ने बड़ी ही दृढ़ इच्छाशक्ति से देश की सेना को युद्ध के लिए तैयार किया था। शास्त्री जी ने सेना को दुश्मन से निपटने के लिए उचित निर्णय लेने हेतु पूर्ण स्वतंत्रता दी थी। अपने नेता का संपूर्ण समर्थन पाकर सैनिकों ने दुश्मनों को हरा दिया था।

26 सितंबर 1965 को दिल्ली के रामलीला मैदान में एक सभा को संबोधित करते हुए शास्त्री जी ने कहा, अयूब खान ने यह ऐलान किया था कि वे दिल्ली तक चहल कदमी करते हुए पहुंच जाएंगे तो बहुत बड़े आदमी है। मैंने सोचा उन्हें दिल्ली तक पैदल चलने की तकलीफ क्यों दी जाए। हम भी लाहौर की तरफ बढ़ कर उनका इस्तकबाल कर लेते हैं

सोवियत संघ द्वारा भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध ठीक करने की योजना :-

सोवियत संघ ने भारत और पाकिस्तान के बीच समझौता कराने की योजना बनाई थी। सोवियत संघ ने इन शांति वार्ता के लिए 4 जनवरी 1966 की तारीख निर्धारित की थी। 4 जनवरी 1966 को पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान एवं भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के बीच रूस की मध्यस्थता के बीच वार्ता शुरू हुई थी। समझौते के अनुसार भारत को जीतें हुए 710 वर्ग किलोमीटर की जमीन को वापस पाक को देनी पड़ेगी और अपनी अपनी सेनाओं को पहले की स्थिति में वापस जाना पड़गा। शास्त्री किसी भी हालत में इस शर्त को मानने को तैयार नहीं थे। किंतु अंतरराष्ट्रीय दबाव में शास्त्री जी को 11 जनवरी 1966 को ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर करने पड़े थे। समझौते के बाद शास्त्री जी ने कहा था कि समझौता तो हो गया लेकिन पाकिस्तान को उसकी जमीन भारत का कोई दूसरा प्रधानमंत्री लौटाएगा।

अन्य पदों पर शास्त्री जी के कार्य:-

गोविंद बल्लभ पंत के मंत्रिमंडल में उन्हें पुलिस एवं परिवहन मंत्रालय का प्रभार सौंपा गया था। परिवहन मंत्री के रूप में शास्त्री जी ने उन्होंने प्रथम महिला कंडक्टर की नियुक्ति की थी। 1951 में जवारलाल नेहरू द्वारा अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव के पद पर नियुक्त किया गया था।

लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु :-

ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर करने के महज कुछ घंटों के पश्चात लाल बहादुर शास्त्री की सोवियत संघ के ताशकंद में रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई थी। उनकी मृत्यु हद्दय की गति के रुक जाने के कारण हुई थी।

देश के प्रति लाल बहादुर शास्त्री का समर्पण :-

उनके बताए हुए आदर्शों पर चलकर ही भ्रष्टाचार मुक्त देश की कल्पना को साकार किया जा सकता है। सादा जीवन उच्च विचार की धारणा से परिपूर्ण उनका जीवन चरित्र सभी के लिए अनुकरणीय है। लाल बहादुर शास्त्री देश के सच्चे सपूत थे। इन्होंने अपना संपूर्ण जीवन देश भक्ति के लिए समर्पित कर दिया। वह एक साधारण परिवार में जन्मे शास्त्री जी का जीवन असहयोग आंदोलन से शुरू हुआ था और स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री के रूप में समाप्त हुआ था। देश के लिए उनके समर्पण भाव को राष्ट्र कभी भुला नहीं सकता ।

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