Bhagat Singh को महात्मा गांधी ने फांसी से क्यों नहीं बचाया

महात्मा गांधी ने भगत सिंह को फांसी से क्यों नहीं बचाया

हेलो दोस्तों आज हम भारतीय स्वतंत्रता के क्रान्तिकारी भगत सिंह के बारे में जानेगे की Bhagat Singh को  महात्मा गांधी ने फांसी से क्यों नहीं बचाया ! यह एक किसान परिवार से थे जिन्होंने अपनी मात्रभूमि के लिए अपने प्राण दे दिए |

पूरा नामसरदार भगत सिंह
जन्म28 सितम्बर 1907
पिता का नामसरदार किशन सिंह
माता का नामविद्यावती कौर
फांसी23 मार्च 1931
Bhagat Singh Parichay in Hindi

महात्मा गांधी ने भगत सिंह को फांसी से क्यों नहीं बचाया Mahatma Gandhi ne Bhagat Singh ko fansi se kyon nahin bachaya

भगत सिंह आदर्श क्रांतिकारी के तौर पर चर्चित हिंसक रास्ते पर चलकर आजादी पाने के समर्थक थे भगतसिंह 1907 में उनका जन्म हुआ ! जब 38 साल के लोक सेवक मोहनदास करमचंद गांधी ! दक्षिण अफ्रीका अफ्रीका में इस अहिंसक तरीके से संघर्ष करने का प्रयास कर रहे थे ! सत्याग्रह के अनुभव के साथ महात्मा गांधी साल 1915 में भारत आए ! और देखते ही देखते हो भारत के राजनीतिक पटल पर छा गए !

  • Bhagat Singh ने हिंसक क्रांति रास्ता चुना Bhagat Singh ne hinsak Kranti rasta chuna

वहीं जब जागृत हो रहे भगत सिंह हिंसक क्रांति रास्ता चुना लेकिन इन दोनों के बीच कई चीजें समान थी ! जिनमें देश के सम्माननीय गरीबों के हितों का अहमियत देना भी शामिल था आजादी का उनका ख्याल सिर्फ राजनीतिक नहीं था दोनों चाहते थे ! कि देश की जनता शोषण की बेड़ियों से मुक्त हो और इसी दिशा में उनका प्रयास रहे दोनों में एक चीज विरोधाभासी थी ! लेकिन इसके बावजूद दोनों में कुछ समानताएं भी थी Bhagat Singh नास्तिक थे और गांधीजी आस्तिक थे ! लेकिन धर्म के नाम पर फैलाई जा रही नफरत के दोनों ही खिलाफ थे !

साल 1928 में साइमन कमीशन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में वरिष्ठ कांग्रेसी नेता लाला लाजपत राय को पुलिस की लाठियों ने घायल कर दिया ! इसके कुछ दिन बाद ही उन्होंने दम तोड़ दिया लाला जी के जीवन के अंतिम सालों की राजनीति से भगतसिंह सहमत नहीं थे ! और उन्होंने उनका खुला विरोध भी किया ! लेकिन अंग्रेज पुलिस अधिकारियों की लाठियों से घायल हुए लाला लाजपत राय की हालत को देखकर Bhagat Singh को बहुत गुस्सा आया !

  • बदला

भगत सिंह ने इसका बदला लेने के लिए अपने साथियों के साथ मिलकर पुलिस सुप्रीम स्टैंड स्कॉट की हत्या करने की योजना बनाई ! परन्तु एक साथी की गलती की वजह से इस कोर्ट की जगह 21 साल के पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या हो गई ! इस मामले में Bhagat Singh पुलिस की गिरफ्त में नहीं आ सके ! लेकिन कुछ समय के बाद उन्होंने असेंबली सभा में बम फेंका !

उस समय सभा में सरदार पटेल के भाई बिठ्ल पटेल पहले भारतीय अध्यक्ष के तौर पर सभा की कार्यवाही का संचालन कर रहे थे ! भगत सिंह जनहानि नहीं करना चाहते थे लेकिन वह पहले ही अंग्रेज सरकार के कानों तक देश की सच्चाई की गूंज पहुंचाना चाहते थे ! बम फेंकने के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त भाग सकते थे !

  • भगतसिंह की गिरफ्तारी Bhagat Singh ki girftari

लेकिन उन्होंने अपनी गिरफ्तारी दी गिरफ्तारी के बाद Bhagat Singh के पास उस वक्त समय उनकी रिवाल्वर भी थी ! कुछ समय बाद यह सिद्ध हुआ कि पुलिस अफसर सांडर्स की हत्या में यही रिवाल्वर काम में ली गई थी ! इसलिए असेंबली सभा में बम फेंकने के मामले में पकड़े गए ! भगत सिंह को सांडर्स की हत्या को गंभीर आरोप में अभियुक्त बना कर फांसी दे दी गई !

1930 अंग्रेज सरकार के बीच में संघर्ष 1930 angrej Sarkar ke bich Mein Sangharsh Bhagat Singh

साल 1930 में दांडी कुच के बीच में और अंग्रेज सरकार के बीच में संघर्ष जोरों पर था ! इस बीच भारत की राज्य व्यवस्था में सुधार पर चर्चा के लिए ब्रिटेन सरकार ने अलग-अलग नेताओं को गोलमेज सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए लंदन बुलाया ! इससे पहले गोल में सम्मेलन में महात्मा गांधी जी और अंग्रेजों ने हिस्सा नहीं लिया ! और यह सम्मेलन बेनतीजा रहा ! दूसरे सम्मेलन में ब्रिटेन की सरकार ने पहले सम्मेलन जैसे बचने के लिए ! संघर्ष की जगह बातचीत के रास्ते पर चलने का फैसला किया !

17 फरवरी 1931 से अरविंद और गांधीजी के बीच बातचीत शुरू हुई इसके बाद 5 मार्च 1931 को दोनों के बीच समझौता हुआ था ! इस समझौते में इस तरीके से संघर्ष के दौरान पकड़े गए सभी कैदियों को छोड़ने की बात तय हुई ! मगर राज की हत्या के मामले में फांसी की सजा पाने वाले Bhagat Singh को माफी नहीं मिल पाई ! यहीं से विवाद शुरू हुआ ! इस दौरान इस सवाल उठने लगा कि जिस समय Bhagat Singh और उनके साथियों को सजा दी जा रही थी ! तब ब्रिटेन सरकार के साथ समझौता कैसे किया जा सकता है ! इस मसले से जुड़े सवालों के साथ हिंदुस्तान में अलग-अलग जगहों पर पर्चे बांटे जाने लगे साम्यवादी इस समझौते से नाराज थे !

और वह सार्वजनिक सभाओं में गांधीजी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने लग गए ! ऐसे में 23 मार्च 1921 के दिन Bhagat Singh सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा दे दी गई ! इसके बाद तो लोगों में आक्रोश की लहर दौड़ गई ! लेकिन यह आक्रोश सिर्फ अंग्रेजों नहीं बल्कि गांधीजी के खिलाफ भी था ! क्योंकि उन्होंने इस बात का आग्रह नहीं किया कि Bhagat Singh की फांसी कि माफ नहीं की तो समझौता नहीं होगा !

महात्मा गांधी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन गांधी मुर्दाबाद गांधी गो बैक जैसे नारों से किया गया

चाहे स्मार्ट 1931 को कराची में कांग्रेस का अधिवेशन शुरू हुआ ! जिसमें पहली और आखरी बार सरदार पटेल कांग्रेसमें अध्यक्ष बने ! 25 मार्च को जब गांधीजी इस अधिवेशन में हिस्सा लेने के लिए वहां पहुंचे !  तो उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया गया उनका स्वागत काले कपड़े से बने फूल और गांधी मुर्दाबाद गांधी गो बैक जैसे नारों से किया गया ! इस विरोध को गांधी जी ने उनकी गहरी व्यथा और उससे उबरने वाले गुस्से से हल्का प्रदर्शन बताया ! इन लोगों ने बहुत ही गौरवशाली शैली में अपनी गुस्सा दिखाया है !

अखबारों के रिपोर्ट के अनुसार 25 मार्च को दोपहर में कई लोग उस जगह पहुंच गए जहां पर गांधी ठहरे हुए थे ! रिपोर्टरों के अनुसार यह लोग चिल्लाने लगे कि कहां है खूनी तभी जवाहरलाल नेहरू मिले जो इन लोगों को कोई तंबू में ले गए ! इसके बाद 3 घंटे तक बातचीत करके इन लोगों को समझाया गया ! और लेकिन शाम को यह लोग फिर विरोध करने लग गए !

कांग्रेश के अंदर सुभाष चंद्र बोस समेत कई लोगों ने गांधी जी और इस जीवन के समझौते का विरोध किया ! वह मानते थे कि अंग्रेज सरकार अगर Bhagat Singh की फांसी की सजा को माफ नहीं कर सकते ! तो समझौता करने की कोई जरूरत नहीं हालांकि कांग्रेसी वर्किंग कम्युनिटी पूरी तरह से गांधी जी के साथ थी !

महात्मा गांधी ने Bhagat Singh की फांसी मुद्दे पर प्रतिक्रियाएं Mahatma Gandhi ne Bhagat Singh ki fansi mudde per pratikriya

गांधी जी ने इस मुद्दे पर प्रतिक्रियाएं भी दी है गांधी जी कहते हैं कि Bhagat Singh की बहादुरी के लिए हमारे मन में सम्मान करता है ! लेकिन मुझे ऐसा तरीका चाहिए जिसमें खुद को न्योछावर करते हुए आप दूसरों को नुकसान ना पहुंचाएं ! वह कहते हैं कि सरकार गंभीर रूप से उकसा रही है ! लेकिन समझौते की शर्तों में फांसी रोकना शामिल नहीं था !

इसलिए इससे पीछे हटना ठीक नहीं गांधीजी अपनी किताब स्वराज में लिखते हैं की मौत की सजा नहीं दी जानी चाहिए ! वह कहते हैं भगत सिंह और उनके साथियों के साथ बात करने का मौका मिला होता तो ! मैं उनसे कहता उनका चुनाव हुआ रास्ता गलत और असफल है | ईश्वर को साक्षी रखकर मैं जाहिर करना चाहता हूं कि हिंसा के मार्ग पर चलकर स्वराज नहीं मिल सकता सिर्फ मुश्किलें मिल सकती है ! मैं जितने तरीकों से वॉइस रायों को समझा सकता था ! मैंने कोशिश की मेरे पास समझाने की जितनी सक्ति थी इस्तेमाल की और मैंने वायसराय को एक पत्र लिखा !

जिसमें मैंने अपनी पूरी आत्मा उड़ेल दी Bhagat Singh के पुजारी नहीं थे लेकिन हिसा को धर्म नहीं मानते थे ! इन वीरों ने मौत के डर को भी जीत लिया था ! उनकी वीरता को नमन है लेकिन उनकी कृति का अनुकरण नहीं किया जा सकता था ! उनके इस कृत्य से देश का फायदा हुआ !  ऐसा मैं नहीं कह सकता खून करके शोहरत हासिल करने की प्रथा अगर शुरू हो गई ! तो लोग एक दूसरे का कत्ल करके न्याय तलाशने लगेंगे !

Bhagat Singh की फांसी की सजा माफ करने के लिए गांधीजी की लिखी चिट्ठी के बारे में

भगत सिंह की फांसी की सजा माफ करने के लिए गांधीजी ने वायसराय पर पूरी तरह दबाव बनाया हो ! इस तरह के सबूत शोधकर्ताओं को नहीं मिले हैं फांसी के दिन सुबह गांधी जी ने जो भावपूर्ण चिट्ठी वॉइस राय को लिखी थी ! वह दबाव बनाने के लिए थी लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी ! इस विषय पर मौजूद रिसर्च के आधार पर यह कहा जा सकता है ! कि फांसी के दिन से पहले गांधीजी और वायसराय के बीच जो चर्चा हुई ! उसमें Bhagat Singh की फांसी के मुद्दे को गांधीजी ने गैर जरूरी समझा !

इसलिए गांधी जी ने यह दोबारा वायसराय को अपनी पूरी शक्ति लगाकर समझाने का दावा सही नहीं जान पड़ता !

लोगों के विरोध की लहर को देखते हुए गांधी जी ने अपने खिलाफ विरोध और निंदा को अपने ऊपर लेते हुए ! अपने विचार लोगों के सामने रखे Bhagat Singh की बहादुरी को मानते हुए उन्होंने उनके मार्ग का स्पष्ट शब्दों में विरोध किया ! और गैरकानूनी बताया एक नेता के तौर पर गांधीजी की नैतिक हिम्मत याद रखने लायक है ! इस पूरे मुद्दे पर अगर गांधीजी के बर्ताव को देख कर रखा जाए तो उनका पक्ष सम्मान समझा जा सकता है !

फांसी माफी की अर्जी देने के लिए तैयार नहीं थे भगतसिंह Fancy mafi arji dene ke liye taiyar nahin the Bhagat Singh

Bhagat Singh खुद अपनी सजा माफी की अर्जी देने के लिए तैयार नहीं थे जब उनके पिता ने इसके लिए अर्जी लगाई तो ! उन्होंने बेहद कड़े शब्दों में पत्थर लिखकर इसका जवाब दिया गांधीजी उनकी सजा माफ नहीं करा सके ! इसे लेकर गांधी जी से Bhagat Singh की नाराजगी से जुड़े साक्ष्य नहीं मिले हैं लेकिन भगत सिंह के स्वभाव को देखते हुए लगता नहीं है ! कि उन्हें यह बात जोड़ती रही होगी ! कि उनकी सजा माफी नहीं कराई गई सांप्रदायिकता और राष्ट्रवाद मिलावट की जड़ें इतनी पुरानी है !

इससे जाहिर होता है ! कि भगत सिंह की फांसी के बाद अनिवार्य शोक मनाने की वजह से कानपुर में सांप्रदायिक दंगे हुए ! जिन्हें रोकने जा रहे गणेश,शंकर विद्यार्थी की मौत हो गई अब सवाल यह है ! कि भगत सिंह की सजा के मुद्दे पर गांधी जी की निंदा भगत सिंह के प्रति प्रेम की वजह से होती है !

यह तर्क भी जरुर पदे

गांधीजी के खिलाफ द्वेष के कारण Bhagat Singh के नाम को केवल प्रतीक बनाकर इस्तेमाल करने वाले इसका उपयोग ! मुख्यतः महात्मा गांधी का विरोध करने के लिए करते रहे या फिर नारेबाजी करने वाले कहते हैं ! कि भगत सिंह वामपंथी नास्तिक बौद्धिक और सांप्रदायिकता विरोधी थे ! भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेंबली हॉल में बम फेंका था तब मशहूर लेखक खुशवंत सिंह के पिता सर शोभा सिंह वहां मौजूद थे !

इसके बाद के सालों में कुशल सिंह को नीचा दिखाने के लिए दक्षिणपंथी ताकतों ने यह भी कोशिश की ! कि खुशवंत सिंह के पिता की गवाही के कारण ही Bhagat Singh को फांसी हुई ! हकीकत में भगत सिंह को असेंबली सभा में बम फेंकने के लिए नहीं ! बल्कि सांडर्स की हत्या के मामले में फांसी की सजा सुनाई गई थी ! और उस मामले में शोभा सिंह गवाह नहीं थे सबसे अजीब बात यह है ! कि Bhagat Singh फांसी में सबसे अहम भूमिका सरकारी गवाह बने कई क्रांतिकारी साथियों की थी !

जिनमें से एक जगह कपाल की एक गलती के कारण स्कॉट के बदले सांडर्स की मौत हुई थी ! इतने सालों में भगत सिंह की फांसी के नाम पर गांधीजी की निंदा की गई थी ! लेकिन भगत सिंह के खिलाफ गवाही देने वाले क्रांतिकारी साथियों की कभी निंदा नहीं होती थी ! क्योंकि इससे राजनीतिक फायदा ही होता है !

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2 thoughts on “Bhagat Singh को महात्मा गांधी ने फांसी से क्यों नहीं बचाया”

  1. यह गांधी जी के किसी चमचे के द्वारा उनकी तरफ से लीपापोती है। गांधी भयानक मुस्लिम कम्यूनल थे। उनके दिल में मुसलमानों के अलावा किसीके लिए भी कोई साफ्टकार्नर नहीं था। भगतसिंह जी की जगह पर कोई मुसलमान होता तो वे जरूर उसकी फांसी का विरोध करते। स्वामी श्रद्धानंद जी के मुस्लिम हत्यारे की फांसी का उन्होंने विरोध किया था।

  2. Brijendra nath tiwari

    पहली बात यह कि भगत सिंह हिंसा वादी नहीं थे। चूंकि वे क्रांति चाहते थे और क्रांति बलिदान मांगती है इसलिए वे हर स्तर पर बलिदान देने को तैयार हुए।
    वे उच्च कोटि के लेखक व अहिंसा वादी क्रांतिकारी थे। उन्होंने पूरे जीवनकाल में सांडर्स के अलावा किसी की हत्या का प्रयास नहीं किया। जबकि वे ऐसा कर सकते थे।
    दूसरी बात यह कि उनकी फांसी सन 1931 में हुई थी, न कि 1921 में।
    तीसरी बात यह कि महात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन वापस लेने के पूर्व भगत सिंह गांधी के अनुयायी थे परन्तु इसके बाद वे अपना अलग मार्ग सुनिश्चित किए और कालांतर में हिंदुस्तान सोस्लिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन संगठन बना कर व्यापक संघर्ष किए जिसमें जेल जीवन की लम्बी भूख हड़ताल शामिल रही, जिससे कि ब्रिटिश हुकूमत को चिन्ता हो उठी और भगत सिंह की लोकप्रियता गांधी को पार कर गई।
    चौथी बात यह कि भगत सिंह स्वयं अपनी फांसी न तो रुकवाना चाहते थे न ही किसी तरह की कोई शर्त या माफी मांगने के लिए तैयार थे ऐसे में गांधी से उनको खुद कोई मदद नहीं चाहिए थी तो हम क्यों उम्मीद करें।
    और गांधी अगर इसके खिलाफ उतर ही आते तो भी अंग्रेज इस मामले में उनकी सुनने वाले नहीं थे।
    पांचवी बात यह कि भगत सिंह गांधी से वैचारिक मतभेद होने के बावजूद उनका सम्मान करते थे तो इसलिए क्योंकि आजादी के लिए जनता में सर्वाधिक जन जागरूकता का प्रचार प्रसार अगर किसी ने किया था तो वे गांधी थे।

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