स्वामी दयानंद सरस्वती – Swami Dayanand Saraswati in hindi

स्वामी दयानंद सरस्वती - Swami Dayanand Saraswati

स्वामी दयानंद सरस्वती ( Swami Dayanand Saraswati ) (12 जनवरी, 1824 – 30 अक्टूबर, 1883 ) 19वीं सदी के महान समाज सुधारक, आर्य समाज के संस्थापक तथा समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका कथा इनक़ी जीवनी?

स्वामी दयानंद सरस्वती का जीवन परिचय Dayananda Saraswati information

जन्म :-12 जनवरी 1824 ईस्वी
बचपन का नाममूलशंकर
पिता का नामकरशनजी लालजी तिवारी
माता का नामअमृत बाई
मृत्यु30 अक्टूबर 1883
नोट : यहाँ स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के बारे में संशिप्त जानकारी दी गयी है।

जन्म :-

स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म 12 जनवरी 1824 ईस्वी में हुआ था। इनका जन्म गुजरात के मोरवी नामक स्थान पर हुआ था।

नाम :-

स्वामी दयानंद सरस्वती का बचपन का नाम मूलशंकर था। इन्हें बचपन से ही सांसारिक जीवन से कोई लगाव नहीं था।

पिता का नाम :-

इनके पिता का नाम करशनजी लालजी तिवारी था। तथा माता का नाम अमृत बाई था।

स्वामी दयानंद सरस्वती का प्रारंभिक शिक्षा Dayananda Saraswati hindi

Swami Dayanand Saraswatiकी प्रारंभिक शिक्षा उनके घर पर ही हुई थी। इनके चाचा जी ने स्वामी जी को संस्कृत की वर्णों उच्चारण शिक्षा, यजुर्वेद के अध्ययन की शिक्षा दी थी। इसके बाद स्वामी जी ने कहा कि मैं और वेदों का अध्धयन करना चाहता हूं । मैं सच्चे ईश्वर की प्राप्ति करना चाहता हूं। इस कारण से 1946 में इन्होंने अपना घर- बार छोड़ दिया था और 25 वर्ष तक ज्ञान अर्जित करने तथा अपने गुरु की सेवा करने में बिताए थे।

  • स्वामी दयानंद सरस्वती का घर छोड़ने का मुख्य कारण :-

जब इनके पिता जी इनके विवाह की तैयारियां कर रहे थे। तो स्वामी दयानंद सरस्वती घर से भाग गए थे। क्योंकि Swami Dayanand Saraswati का सांसारिक जीवन से कोई लगाव नहीं था। वह सच्चे ईश्वर को प्राप्त करना चाहते थे। इसलिए स्वामी जी ने गृह त्याग कर दिया था।

  • 19वीं सदी में समाज में फैली कुरीतियों का विरोध :-

19 वी सदी के दौरान भारत में हर तरफ पाखंड और मूर्ति पूजा का बोलबाला था। उस समय स्वामी जी ने  विरोध की आवाज उठाई थी। स्वामी जी ने बाल विवाह का विरोध किया था। तथा विधवा पुनर्विवाह का भी आह्वान किया था। इन्होंने भारत में फैली कुरीतियों को दूर करने के लिए सन् 1876 में हरिद्वार के कुंभ मेले में पाखंड खंडनी नामक पताका फहराकर पोंगा पंथियों को चुनौती दी थी। उन्होंने फिर से वेद की स्थापना की थी। इन्होंने एक ऐसे समाज की स्थापना की थी। जिसके लिए विचार, सुधारवादी और प्रगतिशील थे। जिसे उन्होंने आर्य समाज के नाम से पुकारा था।

स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा समाज में स्त्रियों की स्थिति में सुधार लाने में महत्वपूर्ण भूमिका :-

स्वामी जी शुरुआत से विधवा विवाह तथा बाल विवाह जैसे सामाजिक कुप्रथाओं को खत्म करना चाहते थे । स्वामी जी ने अपने संपूर्ण जीवन काल में सामाजिक कुरीतियो और अंधविश्वासों के प्रति लोगों को जागृत किया था। स्वामी जी ने समाज में स्त्रियों को उच्च स्थान दिलाने का भी प्रयास किया था। स्वामी जी का मानना था कि समाज में स्त्रियों के समान अधिकार होने चाहिए। स्वामी जी ने कहा की स्त्रियों को पुरुषों के समान वेदों का अध्ययन करने का अधिकार बराबर होना चाहिए। इन्होंने स्त्रियों की स्थिति को सुधारने के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया था। स्वामी जी ने स्त्रियों की शिक्षा के लिए भी जनता को जागृत किया था।

  • दयानंद सरस्वती की मुख्य रचना Dayananda Saraswati ki mukhy rachna :

स्वामी जी ने सत्यार्थ प्रकाश ( कालजयी ग्रंथ ) ऋग्वेद भूमिका आदि अनेक ग्रंथ लिखे थे। इन्होंने वेदों का भाष्य भी लिखा था। इस ग्रंथ में स्वामी दयानंद सरस्वती ने देश में प्रचलित अंधविश्वास, रूढिवादिता, आडम्बरों तथा अमानवीय आचरणों का पुरजोर विरोध किया था। Swami Dayanand Saraswati जी ने समाज में व्याप्त जाति, आस्था और वर्ग आधारित सामाजिक भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इन्होंने आर्य (सर्वश्रेष्ठ) बनने के लिए प्रेरित किया था।

  • दयानंद सरस्वती द्वारा आर्य समाज की स्थापना :-

Swami Dayanand Saraswati ने 10 अप्रैल 1875 को आर्य समाज की स्थापना की थी। इस समाज का मुख्य उद्देश्य देश में व्याप्त रुढियो, कुरीतियो, आडम्बरो, पाखण्डो से मुक्त समाज की स्थापना करना था। आर्य समाज के जरिए इन्होंने समाज सुधार का कार्य भी किया था। इसके बाद देशभर में इसकी शाखाएं खुल गई थी।

स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा हिंदुओं के लिए धर्म परिवर्तन का कार्य :-

Swami Dayanand Saraswati जी ने वेदों का प्रचार-प्रसार करने के लिए पूरे देश का दौरा किया था। और लोगों को वेदों के बारे में जागृत किया था। स्वामी जी ने धर्म परिवर्तन कर लोगों को फिर से हिंदू बनने की प्रेरणा दी थी। इसके लिए स्वामी जी ने शुद्धि आंदोलन चलाया था।

  • आर्य समाज की शाखाएं :-

Swami Dayanand Saraswati जी ने जिस आर्य समाज की स्थापना की थी। आज उसके लगभग 10,000 इकाइयां पूरी दुनिया में कल्याणकारी गतिविधियां चला रही है । तथा लोगों को शिक्षा दे रही है । आर्य समाज ने देशभर में वेदों तथा धार्मिक ग्रंथों कि शिक्षा के लिए कई संस्थानों का गठन भी किया था।

शिक्षा के लिए स्कूल की स्थापना Dayananda Saraswati jayanti

1 जून, 1886 में लाहौर में स्वामी दयानंद सरस्वती के अनुयायी लाला हंसराज ने दयानंद एंग्लो वैदिक स्कूल (डीएवी) की स्थापना की थी। इस स्कूल का मुख्य उद्देश्य लोगों को अच्छी शिक्षा देना तथा वेदों, धार्मिक ग्रंथों के बारे में लोगों को जागृत करना। समाज में फैली कुप्रथा को खत्म करना तथा जातिवाद को खत्म करना। लोगों में समानता का अधिकार दिलाने के लिए स्कूल की स्थापना की गई थी।

  • दयानंद सरस्वती द्वारा रचित सत्यार्थ ग्रंथ :-

सत्यार्थ प्रकाश के माध्यम से स्वामी जी ने अंधविश्वास, कुरीतिया, मूर्ति पूजा, अवतारवाद, बहुदेववाद, श्रद्धा,तीर्थाटन, पर प्रहार किया था।

  • सत्यार्थ ग्रंथ दो भागों में विभक्त है :

पूर्वाधे और उत्तरार्ध। पूर्वाधे में 10 और उत्तरार्ध में 4 यानी कुल 14 अध्याय हैं। इन सभी अध्यायो को समुल्लास कहा जाता है।

  1. पहले समुल्लास में ईश्वर के ओकार नाम की व्याख्या की गई है।
  2. दूसरे में संतानों की शिक्षा।
  3. तीसरे में ब्रह्माचार्य, पठन- पाठन, ग्रंथों के नाम और पढ़ने पढ़ाने की विधि बताई गई है।
  4. चौथे में विवाह और गृहाश्रम का व्यवहार।
  5. पांचवें में वानप्रस्थ और सन्यास ग्रंथ की विधि बताई गई है।
  6. छठे में राजधर्म। जन्म सट्टा मेरा
  7. सातवें में विदेश्वर विषय।
  8. आठवें में जगत की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय के बारे में जानकारी।
  9. नोवे में विद्या, अविद्या, बंध और मोक्ष के व्याख्या की गई है।
  10. दशवे में आचार, अनाचार और खाद्य और अखाद्य पदार्थों के बारे में बताया गया है।
  11. ग्यारवे में आर्यावर्त मत, मतान्तर का मण्डन- खंडन किया गया है।
  12. बारवे में चारवाक,बौद्ध, और जैन मत के बारे में बताया गया है।
  13. तेरवे और चौदहवें समुल्लास में ईसाई और मुसलमानों के मत जानकारी गई है।

Dayananda Saraswati जी की मृत्यु

स्वामी दयानंद सरस्वती के विरोधी ने सन् 1883 में दूध में कांच पीसकर पिला दिया था। इस कारण से 30 अक्टूबर 1883 को अजमेर में इनका निधन हो गया था।

People Also Ask About Dayananda Saraswati :
  1. स्वामी दयानंद जी का देहावसान कब हुआ?

    30 अक्टूबर 1983

  2. स्वामी दयानंद का जन्म किस परिवार में हुआ था?

    स्वामी दयानन्द जी का जन्म 12 जनवरी, 1824 को करशनजी लालजी तिवारी के घर तिवारी परिवार मे हुआ था।

  3. Dayananda Saraswati ने किसकी स्थापना की?

    दयानंद सरस्वती ने 10 अप्रैल 1875 को आर्य समाज की स्थापना की थी।

  4. स्वामी दयानंद का जन्म कहां हुआ था?

    इनका जन्म गुजरात के मोरवी नामक स्थान पर हुआ था।

  5. स्वामी दयानंद सरस्वती का प्रमुख नारा?

    वेदों की ओर लौटो।

  6. स्वामी दयानंद सरस्वती के गुरु?

    Swami Dayanand Saraswati ने पंजाब से भागकर मथुरा में शरण ली थी। मथुरा में स्वामी विरजानंद जी के पास रहकर वेद आदि आर्य ग्रंथों की शिक्षा प्राप्त की थी। गुरु दक्षिणा के रूप में स्वामी विरजानंद जी ने Swami Dayanand Saraswati जी से वचन मंगा की वे आजीवन वेद आदि सच्ची विधाओं का प्रचार प्रसार करेंगे। Swami Dayanand Saraswati जी ने इस प्रण को अपने अंतिम पड़ाव तक निभाया था। Swami Dayanand Saraswati जी का कहना था कि विदेशी शासन किसी भी रूप में स्वीकार करने योग्य नहीं है। स्वामी जी महान समाज सुधार के साथ-साथ सच्चे राष्ट्रभक्त भी थे। इनके समाज सुधार के संबंध में गांधी जी ने भी उनके कई कार्यक्रमों में भाग लिया था। Swami Dayanand Saraswati जी ने 1857 के क्रांतिकारी संग्राम में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

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