highlight of Sonargarh Durg
दुर्ग का नाम | सोनारगढ़ दुर्ग |
स्थान | जैसलमेर |
निर्माण | 1155 ई. |
निर्माण करता | रावल जैसल भाटी |
सोनारगढ़ दुर्ग को सोनारगढ भी कहते हैं सोनारगढ़ दुर्ग का निर्माण 1155 ई. में रावल जैसल भाटी ने करवाया था ! जैसल के पुत्र और उत्तराधिकारी शालिवाहन द्वितीय के द्वारा जैसलमेर दुर्ग का सम्पूर्ण निर्माण पूर्ण करवाया गया ! इसकी ऊंचाई 250 फीट है! इस दुर्ग के चारों ओर विशाल मरुस्थल फैला हुआ है !
इस कारण यह दुर्ग ‘धान्वन दुर्ग (मरु दुग) की श्रेणी में आता है ! और इस दुर्ग के बारे में कहावत प्रचलित है ! कि यहां पत्थर के पैर और लोहे का शरीर और काठ एक के ऊपर एक पत्थर रख रख कर बनाया गया है ! जो इसकी स्थापत्य कला की एक प्रमुख विशिष्टता है ! जब सुबह-शाम सूर्य की किरणें दुर्ग में स्थित लक्ष्मीनारायण पर पड़ती है यह वाकई में सोने के समान चमकता है ! यह गहरे पीले रंग के बड़े-बड़े पत्थरों से निर्मित है ! 99 बुर्जो वाला यह सोनारगढ़ किला मरुभूमि का महत्त्वपूर्ण किला माना जाता हैँ!
सोनारगढ़ दुर्ग जैसलमेर का इतिहास Sonargarh Durg ka itihaas
- निर्माण करवाया – सोनारगढ़ दुर्ग का निर्माण 1155 ई. में रावल जैसल भाटी ने करवाया था ! जैसल के पुत्र और उत्तराधिकारी शालिवाहन द्वितीय के द्वारा जैसलमेर दुर्ग का सम्पूर्ण निर्माण पूर्ण करवाया गया था !
- श्रेणी – जैसलमेर दुर्ग धान्वन श्रेणी में शामिल है !
- स्थित – सोनार गढ़ दूर्ग राजस्थान राज्य के जैसलमेर जिले में स्थित है !
- आकृति – जैसलमेर दुर्ग त्रिकूटाकृति का है। जैसलमेर दुर्ग अंगड़ाई लेते सिंह और तैरते हुए जहाज के समान दिखाई देता है !
- उपनाम नाम – सोनारगढ़ एवं सोनगढ़ का किला (सोनार का किला)
- उत्तरी पश्चिमी सीमा का प्रहरी स्वर्ण गिरी है
हवा पोल को पार करने के लिए इस के घोड़े पर सवार होकर ही पहुंचा जा सकता है ! सोनारगढ़ दुर्ग में कई महल, मंदिर एवं आवासीय भवन बने हुए हैं ! दुर्ग तक पहुँचने के लिये अक्षय पोल, सूरजपोल, गणेश पोल व मंदिर दर्शनीय है ! इसे 1437 ई. में महारावल वैरीसाल के शासन काल में बनवाया गया था ! और इस मंदिर में स्थापित लक्ष्मीनाथ की मूर्ति मेड़ता से लायी गयी थी ! यहाँ ‘ढाई साके हुए राव लूणकरण के समय (1550 ई.) में यहाँ अर्द्धसाका’ हुआ !
यहाँ केसरिया तो धारण किया लेकिन जौहर न हो पाया था ! दुर्ग के भीतर बने भव्य महलों में महारावल अखेसिंह द्वारा निर्मित सर्वोत्तम विलास (शीश महल), मूलराज द्वितीय के बनवाये हुए ! रंगमहल और मोतीमहल जवाहर विलास महल पत्थर के बारीक काम और जालियों की कटाई के लिए प्रसिद्ध हैं ! बादल महल अपने प्राकृतिक परिवेश के लिए उल्लेखनीय है ! जैसल कुआं किले के भीतर पेयजल का प्राचीन स्रोत है !
जैसलमेर दुर्ग के अन्दर बने प्राचीन और भव्य जैन मंदिर कला के प्रमुख नमूने हैं Sonargarh Durg in hindi
सोनारगढ़ दुर्ग इसमें पार्श्वनाथ, संभवनाथ और ऋषभदेव मंदिर अपने शिल्प के कारण आबू के दिलवाड़ा जैन मंदिरों से प्रतिस्पर्द्धा करते मालूम होते हैं ! जैसलमेर दुर्ग की कदाचित सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें हस्तलिखित ग्रंथों का एक दुर्लभ भण्डार है ! इनमें अनेक ग्रंथ भण्डार’ कहलाता है ! वर्तमान में राजस्थान में दो दुर्ग ही ऐसे हैं जिनमें बड़ी संख्या में लोग निवास करते (लिविंग फोर्ट) हैं ! उनमें से एक चित्तौड़ का दुर्ग है तथा दूसरा सोनारगढ़ दुर्ग है !
दुर से देखने पर यह किला पहाड़ी पर लंगर डाले एक जहाज का आभास कराता है ! दुर्ग के चारों ओर घघरानुमा परकोटा बना हुआ है, जिसे ‘कमरकोट’ तथा ‘पाडा’ कहा जाता है ! इस दुर्ग को बनाने में चूने का प्रयोग बिल्कुल भी नहीं किया गया और इन कारीगरों ने बड़े पीले पत्थरों को रखकर आपस में जोड़कर खड़ा कर दिया !
- अक्षय पोल दुर्ग का प्रमुख प्रवेश द्वार हैं !
इसके बाद सूरजपोल, भूतापोल (गणेशपोल) हवा पोल (रंगपोल) से दुर्ग में पहुँचा जाता है !
- जैसलू कुआँ :
पौराणिक मान्यता के अनुसार द्वारकाधीश (कृष्ण भगवान) अपने सखा अर्जुन के साथ घूमते-घूमते सोनारगढ़ दुर्ग आए ! तथा अर्जुन को कहा कि कलयुग में मेरे वंशज यहाँ राज करेंगे ! उनकी सुविधा के लिए सुदर्शन चक्र से एक कुएँ का निर्माण किया ! जो वर्तमान में जैसलू कुएँ के रूप में विख्यात है ! सर्वोत्तम विलास-इस महल का निर्माण महारावल अखैसिंह द्वारा करवाया गया जिसे ‘शीश महल’ भी कहते हैं ! रंगमहल व मोतीमहल-इसका निर्माण मूलराज द्वितीय’ द्वारा करवाया गया ! जो भव्य जालियों, झरोखों तथा पुष्पलताओं के सजीव और सुंदर अलंकरण के कारण दर्शनीय है !
- बादल विलास :
सोनारगढ़ दुर्ग इस महल का निर्माण सन् 1884 ई. में ‘सिलावटो’ ने दुर्ग के पश्चिमी द्वार अमर सागर पोल के निकट करवाया ! सिलावटों ने इस महल को महारावल वैरिशाल सिंह को भेंट कर दिया ! यह पाँच मंजिला महल है जिसकी नीचे की चार मंजिलें वर्गाकार तथा ऊपर की अंतिम मंजिल गुम्बदाकार गोल है ! इस महल पर ब्रिटेन की वास्तुकला की छाप दिखाई देती है !
इस दुर्ग के-गजमहल, जवाहर विलास महल आदि अन्य इतिहासतक्षण महल हैं! आदिनाथ जैन मंदिर-इस दुर्ग में स्थित यह सबसे प्राचीन
जैन मंदिर है ! जिसका निर्माण 12वीं शताब्दी में किया गया अन्य जैन मंदिर 15वीं शताब्दी के आसपास बने हैं !
सोनारगढ़ दुर्ग के दर्शनीय स्थल Sonargarh Durg ka pahla saka
- लक्ष्मीनारायण मंदिर –
भगवान विष्णु के इस मंदिर का निर्माण प्रतिहार शैली में सन् 1437 ई. में ‘महारावल बैरीशाल (वेरिसिंह)’ के शासनकाल में करवाया गया ! इस मंदिर में स्थापित लक्ष्मीनाथ जी की मूर्ति मेड़ता से लायी गई थी ! कहा जाता है कि यह मूर्ति स्वतः ही भूमि से प्रकट हुई थी ! जैसलमेर के महारावल श्रीलक्ष्मी नारायणजी को जैसलमेर का शासक मानते थे व स्वयं को उनका दीवान मानते थे !
- स्वांगिया देवी का मंदिर
यह भाटी शासकों की कुलदेवी है यह मन्दिर आईनाथ के मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है ! जिनभद्र सूरी ग्रंथ भंडार- यहाँ पर प्राचीनतम जैन पांडूलिपी (ताड़ के पत्तों पर लिखी गई ) हस्तलिखित ग्रंथों का एक दुर्लभ व सबसे बड़ा भंडार है ! जिसके लेखक जिनभद्र सूरी थे !
उन्हीं के नाम पर इसका नाम जिनभद्र सूरी ग्रंथ भंडार पड़ा !
जैसलमेर के ढ़ाई साके Jaisalmer ke Dhai sake
- जैसलमेर दुर्ग का पहला साका सन् 1299 (1332) ई. में हुआ Jaisalmer Durg ka pahla saka
यह साका अलाउद्दीन खिलजी के द्वारा जैसलमेर दुर्ग पर आक्रमण किया गया था ! और सोनारगढ़ दुर्ग में भाटी शासक रावल मूलराज’, ‘कुंवर रतनसी’ के नेतृत्व में राजपूत क्षत्रियों ने केसरिया किया ! तथा राजपूत वीरांगनाओ ने जौहर किया !
- जैसमेर दुर्ग का दूसरा साका सन् 1357 ई. में हुआ Jaisalmer ka dusra saka
जब फीरोजशाह तुगलक द्वारा सोनारगढ़ दुर्गपर आक्रमण कर दिया गया ! इसमें भाटी शासक रावल दूदा, त्रिलोकसिंह व अन्य भाटी सरदारों और योद्धाओं ने शत्रु सेना से लड़ते हुए वीरगति पाई एवं दुर्गस्थ वीरांगनाओं ने जौहर किया !
- जैसलमेर सोनार गढ़ दुर्ग का तीसरा अर्द्ध साका सन 1550 इसवी में हुआ था Jaisalmer ka ardh shakha
यह अर्ध साका माना जाता है क्योंकि इसमें राजपूत पुरुषों द्वारा केसरिया तो किया गया परंतु राजपूत महिलाओं द्वारा जौहर नहीं किया गया! इस कारण इसे आधा साका ही माना जाता है! यह पुरी घटना विक्रम संवत् 1697 (1550 ई.) की है! कंधार का अमीर अली जिच्युत होकर राव लूणकरण के यहाँ शरण ली! अमीर अली ने षड्यंत्र रचकर राव लूणकरणसर से अनुरोध किया! कि उसकी बेगमें रानियों और राजपरिवार की अन्य महिलाओं से मिलना चाहती है!
अमीर अली ने स्त्रियों के वेश में अपने सैनिक किले के भीतर भेजने का प्रयास किया परंतु उनका भेद खुल गया! तो भाटी वीर योद्धाओं और अमीर अली के सैनिकों के बिच बहुत घमासान युद्ध हुआ था! जिसमें भाटियों की जीत हुई थी परन्तु राव लूणकरण वीरगति को प्राप्त हो गये!
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People Also Ask About Sonargarh Durg
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Sonargarh Durg का निर्माण कब हुआ?
1155 ई.
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जैसलमेर में प्रथम साका कब हुआ?
जैसलमेर में प्रथम साका 1294 ई. में हुआ
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जैसलमेर के किले के परकोटे में कितने बुर्ज हैं?
99 बुर्जो वाला यह सोनारगढ़ किला मरुभूमि का महत्त्वपूर्ण किला माना जाता हैँ!