रानी लक्ष्मी बाई का जीवन परिचय | Rani Lakshmi Bai Biography in hindi

जन्ममणिकर्णिका तांबे
19 नवम्बर 1828
वाराणसी, भारत
निधन17-18th जून 1858 (उम्र 29)
कोटा की सराय, ग्वालियर, भारत
जीवनसंगीझाँसी नरेश महाराज गंगाधर राव नेवालकर
संतानदामोदर राव, आनंद राव (गोद लिया)
घरानानेवालकर
पितामोरोपंत तांबे
माताभागीरथी सापरे
Rani Lakshmi Bai Biography in hindi

आज हम आपको इस  पोस्ट में रानी लक्ष्मी बाई की सम्पूर्ण जीवनी के बारे में बतायंगे –

रानी लक्ष्मी बाई का जीवन परिचय (Rani Lakshmi Bai ka jivan parichay in hindi) :-

जन्म :- रानी लक्ष्मी बाई का जन्म वाराणसी के अस्सी घाट में 19 नवंबर 1828 में हुआ था।
नाम :- उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था। लेकिन प्यार से उन्हें मन्नू का जाता था।
पिता जी का नाम :- मोरोपंत तांबे था। मराठी थे और मराठा बाजीराव द्वितिय की सेवा में थे।
माता जी का नाम :- भागीरथी बाई था। भागीरथी बाई एक सुसंस्कृत, बुद्धिमान और धर्मनिष्ठ महिला थी।

इनकी मृत्यु जब मनू दो,तीन वर्ष की थी तब मृत्यु हो गई थी।

मां की मृत्यु के बाद :-

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मनु अपने पिताजी के साथ बिठूर आ गई थी। यहीं पर मनु ने मल्लविद्या,घुङसवारी और शस्त्र विद्या सीख गई थी। क्योंकि घर में मनु की देखभाल के लिए कोई नहीं था, इसलिए उनके पिताजी अपने साथ बाजीराव द्वितीय के दरबार में ले जाते थे। जहां चंचल और सुंदर मनु ने सबका मन मोह लिया था। पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में उनके बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षक आते थे। मन्नू भी उन बच्चों के साथ पढ़ती थी।

7 साल की कम उम्र में ही रानी लक्ष्मी बाई ने घुङ सवारी सीख ली थी। इसके साथ ही उन्होंने अस्त्र शस्त्र चलाना और घुङसवारी करना अपना प्रिय खेल बना लिया था। इसके साथ ही तलवारबाजी और धनुर्विद्या में लड़कों से भी ज्यादा निपुण थी इसलिए कम उम्र में ही मनु अस्त्र शस्त्र चलाने में पारंगत हो गई थी।

रानी लक्ष्मी बाई की डाकटिकट पर तस्वीर
रानी लक्ष्मी बाई की डाकटिकट पर तस्वीर

विवाह (Rani Lakshmi Bai in hindi):-

कुछ समय बाद सन् 1842 में मनु का विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ कर दिया गया था। शादी के बाद मन्नू (मणिकर्णिका) रानी लक्ष्मी बाई के नाम से जानी जाने लगी। इस तरह काशी की कन्या झांसी की Rani Lakshmi Bai बन गई थी। यहां पर रानी लक्ष्मी बाई को पर्दे में रहना पड़ता था। उच्च विचारों वाली लक्ष्मी बाई को अच्छा नहीं लगा था। उन्होंने किले के अंदर ही अस्त्र शस्त्र चलाना और घुङसवारी करना आरंभ कर दिया था। झांसी में लक्ष्मी बाई ने एक स्त्रियों की सेना भी तैयार की थी। राजा गंगाधर राव अपनी पत्नी की योग्यताओं से बहुत प्रश्न्न थे।

रानी लक्ष्मी बाई हाथ से बनाई हुई तस्वीर
रानी लक्ष्मी बाई हाथ से बनाई हुई तस्वीर

पुत्र का जन्म (Rani Lakshmi Bai itihas):-

सन 1857 में रानी लक्ष्मी बाई ने एक पुत्र को जन्म दिया था। संपूर्ण झांसी आनंदित हो उठा, उत्सव मनाया गया था, परंतु यह खुशी अल्पकालिक समय के लिए थी। कुछ महीने बाद इनका पुत्र गंभीर रूप से बीमार हो गया था। इसके कारण इसका निधन हो गया था। झांसी शोक के समुद्र में डूब गई थी तथा रानी लक्ष्मी बाई को भारी मात्रा में आगात पहुंचा था।

फिर 1853 में बाल गंगाधर राव का स्वास्थ्य बिगड़ने के कारण से झांसी की जनता ने पुत्र गोद लेने के लिए कहा था। अपने ही परिवार के 5 साल के बच्चे को गोद ले लिया था। और उनका नाम दामोदर राव रखा था और उसे अपना दत्तक पुत्र बताया था।

राजा गंगाधर राव का निधन :-

पुत्र गोद लेने के दूसरे दिन ही 21 नवंबर 1853 में गंभीर बीमारी के चलते राजा गंगाधर राव का निधन हो गया था। रानी लक्ष्मी बाई ने अपने दत्तक पुत्र के साथ राजकाज संभालने का फैसला किया था, लेकिन अंग्रेजी शासक झांसी पर कब्जा करना चाहते थे। अंग्रेजों ने नागपुर,तजावर, सतारा से मराठों की सेनाओं को समाप्त कर दिया था तथा इन क्षेत्रों को ब्रिटिश कंपनी का हिस्सा बना लिया था। इसके बाद इनकी नजर झांसी पर पड़ी थी। गंगाधर राव की मौत के बाद झांसी को भी खत्म करने के लिए लॉर्ड डल्हौजी ने योजना बनाई थी। उस समय अंग्रेजों की नीति थी कि जिस राजा के उत्तराधिकारी नहीं होंगे उस राज्य को अपने राज्य में मिला लिया जाएगा।

रानी लक्ष्मी बाई की युद्ध लड़ते हुए की तस्वीर
रानी लक्ष्मी बाई की युद्ध लड़ते हुए की तस्वीर

अंग्रेजों की हङप की नीति (Rani Lakshmi Bai itihas in hindi):-

अंग्रेजों ने अपनी हङप नीति के अनुसार दामोदर राव को झांसी का उत्तराधिकारी मानने पर मना कर दिया था। झांसी क्षेत्र को अपने क्षेत्र में विलय करने का आदेश दे दिया था। आदेश के मुताबिक झांसी का शासन मेजर इलिश के अधीन कर दिया गया था। सन 13 मार्च 1854 को लक्ष्मी बाई को आदेश मिला था। जिस पर रानी लक्ष्मी बाई का जवाब था कि मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी।

लक्ष्मी बाई ने अंग्रेजों से बातचीत से मामले को सुलझाने की कोशिश की लेकिन बात नहीं बनी तो रानी लक्ष्मी बाई ने कानपुर के राजा बदन सिंह को पत्र लिखकर अपनी इच्छा जाहिर की थी। रानी लक्ष्मी बाई ने लिखा था कि विदेशियों के गुलामी में रहना अच्छा नहीं है। उन से लड़ना बेहतर है। हम युध्द की तैयारी कर रहे हैं। लक्ष्मी बाई का मानना था कि झांसी रियासत पर उनका हक है और उन्हें अपने हक के लिए लड़ना पड़ेगा। उस समय भारत के लगभग संपूर्ण भू-भाग पर अंग्रेजो का कब्जा था और झांसी को भी अपने अधिकार मे करना चाहते थे।

झांसी के किले की किलाबंदी :-

अंग्रेजो को लगा कि रानी लक्ष्मी बाई स्त्री है और प्रतीशोध नहीं करेगी। लेकिन Rani Lakshmi Bai के कदम से अंग्रेज तिलमिला उठे थे। Rani Lakshmi Bai ने युद्ध के लिए संपूर्ण तैयारी की थी। रानी लक्ष्मी बाई ने अपने किले की प्राचीर पर तोपे रख वाई थी। लक्ष्मी बाई ने अपने महल में जो भी सोने-चांदी के जेवरात थे, उनको तोप के गोले बनाने को दे दिए थे।

Rani Lakshmi Bai के किले पर जो तोपे थी। उनमें कड़क बिजली, भवानी शंकर,धन गर्जन,और नालदार प्रमुख तौपे थी। रानी लक्ष्मी बाई ने किले की मजबूत किलाबंदी की थी। Rani Lakshmi Bai के कौशल को देखकर अंग्रेज सेनापति चकित रह गए थे। अंग्रेजों ने किले को चारों तरफ से घेर कर चारों ओर से आक्रमण किया था। अंग्रेज आठ दिन तक लगातार गोली बरसाते, लेकिन किला जीतने में सफल नहीं हुए थे। अंग्रेज सेनापति ह्यूरोज को लगा कि सैन्य बल से किला नहीं जीत सकते हैं। इसलिए उन्होंने कूटनीति का प्रयोग किया और झांसी के ही एक विश्वासघाती सरदार को मिला लिया था।

जिसने किले का दक्षिणी द्वार खोल दिया था तथा अंग्रेजी सेना किले के अंदर घुस गई थी। घोड़े पर सवार लक्ष्मी बाई के दाहिने हाथ में नंगी तलवार लिए पीठ पर अपने पुत्र को बांधे हुए Rani Lakshmi Bai ने रणचंडी का रूप धारण कर लिया था और शत्रु का संघार किया था। झांसी की रानी पर अंग्रेज सैनिकों ने हमला कर दिया था। उस समय वहां पर हर हर महादेव एवं जय भवानी के उद्घोष से पूरी रणभूमि गूंज उठी थी।

रानी लक्ष्मी बाई की हाथ से बनाई हुई फोटो
रानी लक्ष्मी बाई की हाथ से बनाई हुई फोटो

कालपी में शरण :-

लेकिन झांसी की सेना अंग्रेजों की सेना के मुकाबले कम थी। रानी लक्ष्मी बाई अंग्रेजो से गिर गई थी और विश्वासपात्रो की सलाह पर रानी लक्ष्मी बाई कालपी की ओर चल पड़ी थी। लगातार 24 घंटे और 102 किलोमीटर तक सफर तय करने के बाद लक्ष्मी बाई कालपी पहुंची थी। कालपी के पेशवाऔ ने स्थिति का आकलन कर लक्ष्मीबाई की सहायता करने का निर्णय लिया था।

Rani Lakshmi Bai को जरूरत के मुताबिक अपनी सेना और हथियार देने का फैसला किया था। ह्यूरोज ने हमला कर दिया था। इस आक्रमण का सामना झांसी की रानी ने पूरी दृढ़ता से किया था। झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के इस आक्रमण से ब्रिटिश सेना घबरा गई थी, लेकिन दुर्भाग्यवश ह्यूरोज ने कालपी पर अधिकार कर लिया था।

जब कालपी अपने हाथों से निकल गई तब रानी लक्ष्मी बाई ने तात्या टोपे के सहयोग से सिंधिया की राजधानी ग्वालियर पर हमला बोला, जो अपनी कम्पनी के साथ वफादार था। रानी लक्ष्मी बाई ने युद्ध कर सिंधिया की सेना को हरा दिया था। Rani Lakshmi Bai और उनके सहयोगियों ने नाना साहब को पैशवा घोषित कर दिया था और महाराष्ट्र की तरफ से धावा बोलने की योजना बनाई थी ताकि मराठा भी इस विद्रोह की ज्वाला में शामिल सके।

ह्यूरोज द्वारा लक्ष्मी बाई के विजय रथ को रोकने की योजना :-

ह्यूरोज और उनकी फौज ने रानी लक्ष्मी बाई के विजय रथ को रोकने के लिए पुरजोर कोशिश की थी और गवालियर पर फिर से कब्जा कर लिया था। अंग्रेजी सेना संपूर्ण शक्ति से Rani Lakshmi Bai का पीछा करती रही थी। इसके बाद आखिरकार ग्वालियर में 18 जून 1858 को आखिरी बार अंग्रेजों और रानी लक्ष्मीबाई का सामना हुआ था।

रानी लक्ष्मी बाई ने अपनी वीरता का परिचय देते हुए Rani Lakshmi Bai और उनकी प्रजा ने प्रतीज्ञा ली की अंतिम सांस तक किले की रक्षा करेंगे। Rani Lakshmi Bai अकेले ही अपने पिठ के पीछे दामोदर राव को कस कर बांध कर घोड़े पर सवार हो गई थी। रानी के कौशल से अंग्रेज सेना चकित हो गई थी। उन्होंने घोड़े की लगाम अपने दांतों में थामी और दोनों हाथों से तलवार चलाते हुए आगे बढ़ना शुरू करदिया था।

रानी लक्ष्मी बाई की मृत्यु :-

रानी ने अपना घोड़ा दौड़ाया और दुर्भाग्य से बीच में एक नाला आ गया था। घोड़ा नाला पार नहीं कर सका था। तभी अंग्रेज घुङसवार आ गए थे। एक ने Rani Lakshmi Bai के सिर पर प्रहार किया जिससे उनके सिर का दाहिना भाग कट गया था।

उसी समय दूसरे सैनिक ने संगीन से उनके हद्दय पर वार कर दिया। तब भी लक्ष्मीबाई ने तलवार चलाना बंद नहीं किया था। आखिरकार रानी गिर पड़ी थी। रानी के वफादार गुलमोहम्मद राम-राम देशमुख आखिरी वक्त तक रानी के साथ रहे थे। उन्होंने Rani Lakshmi Bai के रक्त से रंजित शरीर को नजदीक ही बाबा गंगादास की कुटिया में ले गए थे। यहां पर महान क्रांतिकारी वीरांगना ने अपनी अंतिम सांस ली।

FAQ’s

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