नमस्कार दोस्तों आज हम राजस्थान के लोक देवता पाबूजी राठौड़ के जीवन के बारे में जानेगे
लोक देवता पाबूजी राठौड़ Lok Devta Pabuji Rathore
- वीर पाबूजी महाराज
- पाबूजी राठौड़ का का जन्म – 1239 ई.(विक्रम संवत् 1296)
- गांव -कोलू/ कोलूमंड (जोधपुर) में
- राजवंश -राठौड़ में हुआ
- पिता का नाम -‘धांधलजी राठौड़’
- माता का नाम- ‘कमला दे’
- भाई का नाम -बूडोजी
- बहने – सोनल बाई और पेमल बाई
- पत्नी का नाम – फूलमदे (अमरकोट के सोढ़ा राजा सूरजमल की बेटी)
- पाबूजी की घोड़ी – केसर कालमी
- पांच साथी – सरदार चांदोजी , सावंतजी, डेमाजी, हरमल जी राइका, सलजी सोलंकी, !
पाबूजी राठौड़ को ऊँटों का देवता और गौरक्षक देवता, प्लेग रक्षक देवता, हाड़-फाड़ देवता, लक्ष्मण जी का अवतार, मेहर जाति के मुसलमान ‘पीर’ आदि नामों से जाना ही जाता है ! रेबारी/राइका (ऊँटों की पशुपालक जाति) जाति के अराध्य देव पाबूजी राठौड़ हैं इसी कारण ऊँट बीमार होने पर भोपे पाबूजी की फड़ (सबसे लोकप्रिय फड़) बांचतें हैं ! पुस्तक ‘पाबू प्रकाश’ में पाबूजी के जीवन चरित्र का संपूर्ण उल्लेख हुआ है ! पाबूजी राठौड़ की फड़ को बाँचते समय रावणहत्था वाद्य यंत्र का उपयोग किया जाता है ! तो पाबूजी के ‘पवाड़े’ गाते समय ‘माठ वाद्य यंत्र का उपयोग किया जाता है !
पाबूजी राठौड़ की जीवन कथा Life Story of Pabuji Rathore
पाबूजी राठौड़ की घोडी ‘केसर कालमी‘ देवल चारणी से मांग कर लाई गई थी ! और देवल चारणी ने घोड़ी के देने के बदले पाबूजी से यह वचन लिया था ! कि वह उनकी गायों की रक्षा करेगें लेकिन फिर पाबूजी ने इस बात पर कहा कि उन्हें कैसे पता चलेगा ! कि तुम्हारी गायों पर संकट आ पड़ा है ! इस पर देवल चारणी ने कहा कि जब भी मेरी घोड़ी हिनहिनाएँ तो समझ लेना की मेरी गायों पर संकट आ गया है ! और आप रक्षा के लिए जहा भी हो कुछ भी कर रहे हो कितना भी महत्त्वपूर्ण काम हो ! आपको जैसे तैसे ही जल्दी से जल्दी चले आना ! इस कारण पाबूजी राठौड़ से पहले इनके बहनोई जिंदराव खींची ने इस घोड़ी को देवल चारणी से मांग ली थी !
परंतु देवल चारणी ने यह घोड़ी जिंदराव खींची को ना देकर पाबूजी को दी ! इसी बात से क्रोधित थे और देवल चारणी से बदले के अवसर की फिराक में थे !
पाबू जी राठौड़ विवाह के साढ़े तीन फेरे लेने के बाद गायों की रक्षा करते वीरगति
इसी वजह से जब पाबूजी विवाह के लिए फेरे में बैठे ही थे तभी देवल चारणी की घोड़ी ‘केसर कालमी’ ‘जोर जोर से हिनहिनाई ! जिससे पाबूजी राठौड़ समझ गये कि चारणी की गायों पर संकट आ गया है और ! वे विवाह के साढ़े तीन फेरे लेने के बाद ही गायों की रक्षा करने पहुँचे ! अपने बहनोई जायल नागौर के शासक जींदराव खींची से युद्ध लड़ते हुए ! 1276 ई. में देंचू गाँव जोधपुर में 24 वर्ष की आयु में वीरगति को प्राप्त हुए !
इसकी कारण वंश पाबूजी के अनुयायी आज भी विवाह के अवसर पर साढ़े तीन फेरे ही लेते हैं !
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मारवाड़ में सर्वप्रथम ऊँट लाने का श्रेय पाबूजी राठौड़ को जाता है पाबूजी का प्रतीक चिह्न ‘भाला लिए हुए ! अश्वारोही’ है पाबूजी के सहयोगी ‘चाँदा डेमा व हरमल’, पाबूजी के उपासकों के द्वारा पाबूजी की स्मृति में ‘थाली नृत्य’ करते हैं ! पाबूजी बाईं ओर झुकी पाग (पगड़ी) प्रसिद्ध है ! जिनका मंदिर कोलूमंड (फलौदी-जोधपुर) में है यहाँ हरवर्ष चैत्र अमावस्या को मेला लगता है ! मुगल कालीन पाटन के शासक मिर्जा खाँ नाम के जो बड़ी संख्या पर गौ हत्या में शामिल रहा ! उनके विरुद्ध पाबूजी ने युद्ध किया तथा गौ हत्या को रूकवाई !
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