खुदीराम बोस – Khudiram Bose

खुदीराम बोस - Khudiram Bose

इस पोस्ट में हम आपको खुदीराम बोस की सम्पूर्ण जीवनी के बारें मेंं बताएंगे – 

खुदीराम बोस भारतीय स्वाधीनता के लिये मात्र 18 साल की उम्र में भारतवर्ष की स्वतंत्रता के लिए फाँसी पर चढ़ गये। लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि खुदीराम से पूर्व 17 जनवरी 1872 को 68 कूकाओं के सार्वजनिक नरसंहार के समय 13 वर्ष का एक बालक भी शहीद हुआ था। उपलब्ध तथ्यानुसार उस बालक को, जिसका नंबर 50वाँ था, जैसे ही तोप के सामने लाया गया, उसने लुधियाना के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर कावन की दाढी कसकर पकड ली और तब तक नहीं छोड़ी जब तक उसके दोनों हाथ तलवार से काट नहीं दिये गए बाद में उसे उसी तलवार से मौत के घाट उतार दिया गया था।

खुदीराम बोस
मात्र 18 साल की उम्र में भारतवर्ष की स्वतंत्रता के लिए फाँसी पर चढ़ गये।
जन्म 3 दिसंबर 1879 में पश्चिम बंगाल
पिता का नाम त्रैलोक्य नाथ जी बॉस
माता का नाम लक्ष्मी प्रिया
निधन 11 अगस्त 1908

 

अनुक्रम

खुदीराम बोस का जीवन परिचय :-

  • जन्म :- खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1879 में पश्चिम बंगाल के मदीना पुर जिले के बहुवनी गांव में हुआ था।
  • पिता जी का नाम :- त्रैलोक्य नाथ जी बॉस था। यह अपने क्षेत्र की रियासत में तहसीलदार थे।
  • माता जी का नाम :- लक्ष्मी प्रिया था।

बचपन की देश के प्रति उनकी विचारधारा :-

बोस में बचपन से ही देश प्रेम की भावना उत्पन्न हो गई थी। इस समय बाल गंगाधर तिलक को 4 पेज का संपादकीय लिखने के कारण जेल में डाल दिया गया था। इस बात का पता चलने पर उन्होंने बदला लेने की योजना बनाई थी।

नाम पढ़ने की घटना :-

बोस के लिए ज्योतिषियों ने कहा था कि इनकी कम में ही मृत्यु हो जाएगी। इस कारण से उनकी बड़ी बहन ने तीन मुट्ठी चावल,देकर खुदीराम बोस को खरीद लिया था। क्योंकि यह एक तरह की प्रथा थी जिससे बच्चे की उम्र बढ़ जाती थी।

खुदीराम बोस के माता पिता की मृत्यु :-

बोस की 6 वर्ष की आयु में ही उनके माता पिता की मृत्यु हो गई थी। उनकी बड़ी बहन की शादी हो चुकी थी। उनको अपने पास ही रखा था। तम्मुलक शहर में हिमिकटन स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा हुई थी। खुदीराम बोस की उम्र 12 वर्ष की हो गई थी। इनका पढ़ाई में मन नहीं लगता था। उनके अंदर एक विशेष क्रांतिकारी के गुण थे। वह स्कूल में बहुत ही कष्ट को सहन करने के लिए जाने जाते थे। स्कूल टाइम में निडर थे। वे खेलते खेलते जंगल में चले जाते थे तथा जंगल में सांप को पकड़ लेते थे और सांप के साथ खेलते थे। तथा जंगल में वाफिस छोड़ देते थे।

दयालुतापूर्ण जीवन :-

बोस बचपन से ही बड़े दयालु प्रवृत्ति के थे। जब 6 वर्ष की उम्र में इनके माता-पिता का निधन हो गया था। तो उनके माता पिता को उनकी शादी में वहां के रियासत के राजा ने एक कंबल दान स्वरूप दी थी। खुदीराम बोस के घर के पास एक भिखारी रहता था। उस भिखारी को जब उन्होंने ठिठुरते देखा तो है कीमती कंबल उसे भिखारी को दे दी थी। जब उनकी दीदी ने देखा तो कहा कि इसको मत दो। कोई और वस्तु दे दो।

तो खुदीराम बोस ने कहा, मैं यह कम्बल भिखारी को ही दूंगा। इस समय तम्लूक शहर में हैजा फैल गया था। इसके कारण कई लोग मारे गए थे। इस बीमारी में उन्होंने अपनी जान की परवाह नहीं करते हुए रोगियों की सेवा की थी। बोस बचपन में अरविंद घोष व अन्य क्रांतिकारियों की बैठकों और योजनाओं में शामिल होते थे।

बंगाल के विभाजन में उनकी विचारधारा :-

सन 1905 में बंगाल का विभाजन हुआ था। बंगाल के विभाजन के दौरान आंदोलन चले थे। खुदीराम बोस भी इन आंदोलनों में शामिल हो गए थे। इसके साथ ही स्वदेशी आंदोलन में भी भाग लिया था। इस दौरान बोस ने अन्य अधिकारियों से बम बनाने की कला सीखी थी। बोस मेदनी और गैरीबाल्डी के विचारधारा से बहुत प्रभावित थे। बंगाल विभाजन के कारण खुदीराम बोस तथा अन्य क्रांतिकारियों ने रेल के एक डबे को उड़ाने की योजना बनाई थी क्योंकि इसमें गवर्नर मौजूदा था गवर्नर को मारना चाहते, क्योंकि बंगाल का विभाजन किया था। इस कारण से उस डिब्बे में बंम फेक दिया था। दुर्भाग्य से उस डिब्बे में गवर्नर मौजूद नहीं था। वह दूसरे डिब्बे में बैठ गया था।

किंग्ज फोर्ड की मृत्यु की योजना :-

किंग्ज फोर्ड एक अंग्रेजों का गुप्त आदमी था। वह हर गतिविधि की अंग्रेजों को सूचना देता था। इस कारण से वे क्रांतिकारियों की आंखों में खटक रहा था। इस कारण से खुदीराम बोस तथा उनके साथी ने बंम बनाकर किंग्ज फोर्ड की मृत्यु की योजना बनाई थी। 23 अप्रैल 1908 को किंग्ज फोर्ड की गाड़ी पर बंम फेक दिया गया था और उन्होंने समझा कि अगर किंग्ज फोर्ड गाड़ी के अंदर था तो उनका काम तमाम हो गया है। उस बंम की आवाज 3 मील तक सुनाई दी थी। चारों तरफ हल्ला मच गया था। बोस तथा उनका साथी दोनों अलग-अलग दिशा में भाग गए थे।

खुदीराम बोस की गिरफ्तारी :-

लगभग 36 किलोमीटर तक चलते रहने के बाद बन्नी रेलवे स्टेशन पर विश्राम किया था। वहां पर खुदीराम बोस को पता चला कि किंग्ज फोर्ड मरा नहीं है। यह बात सुनकर उनके मुंह से निकल गया। क्या!

उसी समय अंग्रेज के कुछ गुप्तचर सिपाई दुकान पर मौजुद थे। और बोस को पकड़ लिया गया था। उन्होंने भागने की कोशिश नहीं की थी। उनको बाद कोर्ट में पेश किया गया था। कोर्ट में एक वकील ने कहा, मैं आपकी पैरवी करूंगा। इस पर खुदीराम बोस ने कहा, मुझे पैरवी की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि मैं खुशी-खुशी से अपने देश की क्रांति के लिए फांसी पर चढ़ने के लिए तैयार हूं।

बम बनाने की कला :-

जब खुदीराम बोस को कोर्ट ने फांसी की सजा सुना दी थी तब उन्होंने कहा, जज साहब मैं कुछ कहना चाहता हूं। जज साहब ने कहा कि तुम इतने छोटे बच्चे हो तो भी तुमने बम कैसे बना लिया था। खुदीराम बोस ने कहा कि जज साहब मुझे दो-तीन दिन का समय दे दो तो मैं आपको बम बनाना सिखा सकता हूं। बोस ने बंम बनाने की कला  नौजवानों को बताने के लिए योजना बनाई थी। इस योजना को अंग्रेज जज समझ गए थे। उन्होंने बम बनाने की कला को बताने से मना कर दिया था।

खुदीराम बोस को फांसी की सजा :-

इसके बाद बोस को जेल भेज दिया गया था।

11 अगस्त 1908 में बोस को फांसी देने का आदेश दिया गया था।

खुदीराम बोस हंसते-हंसते उन्होंने फांसी के फंदे को चूम लिया था।

मात्र 18 वर्ष की कम उम्र में ही उन्होंने देश की क्रांति के लिए अपना बलिदान दे दिया था।

 

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