Ravindra Nath Tagore – रविंद्र नाथ टैगोर की जीवनी

इस पोस्ट में हमने रविंद्र नाथ टैगोर ( Ravindra Nath Tagore ) का जीवन परिचय का सम्पूर्ण उल्लेख किया है 

रविंद्र नाथ टैगोर का जीवन परिचय :-

  1. नाम :- रविंद्र नाथ टैगोर
  2. अन्य नाम :- रवि गुरुदेव, कवियों के कवि
  3. जन्म :- 7 मई 1861
  4. जन्म स्थान :- कोलकाता जोड़ा साँको की हवेली में हुआ था।
  5. माता का नाम :- शारदा देवी
  6. पिता का नाम :- देवेंद्र नाथ टैगोर उनके पिता ब्रह्मा समाज में एक वरिष्ठ नेता थे।
  7. पत्नी का नाम :- मृणालिनी देवी
  8. भाई और बहन :- द्विजेंद्र नाथ, ज्योतिरिद्र नाथ, सत्येंद्र नाथ, स्वर्ना कुमारी।
  9. बेटियाँ :- रेणुका टैगोर, मीरा टैगोर, शमिन्द्र नाथ टैगोर और मधुरिलाता टैगोर।
  10. शिक्षा :- प्रारंभिक शिक्षा सेंट जेवियर स्कूल में हुई थी।
सन 1871 में रविंद्र नाथ टैगोर के पिता जी ने इनका एडमिशन (दाखिला) लंदन के कानून महाविद्यालय में करवाया, परंतु साहित्य में रुचि होने के कारण 2 वर्ष बाद बिना डिग्री प्राप्त किये वे वापस आ गए थे।

Ravindra Nath Tagore का मुख्य योगदान :-

  1. राष्ट्रगान के रचयिता है।
  2. 2011 में हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस में विश्व-भारती विश्वविद्यालय के साथ अंग्रेजी में उपलब्ध Ravindra Nath Tagore के कार्यों की सबसे बड़ी संकलन “दा एसेंटियल टैगोर” का प्रकाशित करने के लिए सहयोग किया था। 1901 में सियासत छोड़कर आश्रम की स्थापना करने के लिए शांतिनिकेतन आ गए। एक पुस्तकालय के साथ शांति निकेतन की स्थापना की।
  3. रविंद्र नाथ टैगोर मे करीब 2230 गीतों की रचना की थी।
  4. अल्बर्ट आइंस्टीन रविंद्रनाथ टैगोर को रब्बी टैगोर कहां करते थे।
  5. रविंद्रनाथ टैगोर ज्यादातर अपनी कविताओं के लिए जाने जाते हे।

Ravindra Nath Tagore का अन्य योगदान :-

  1. Ravindra Nath Tagore ने अपने जीवनकाल में कई उपन्यास, निबंध, लघुकथाएं मात्रावृन्त, नाटक और हजारों गाने भी लिखे हैं।
  2. इनके गीत हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की ठुमरी शैली से प्रभावित है।
  3. Ravindra Nath Tagore ने गांधीजी को महात्मा का विशेषण दिया था।
  4. उस समय गांधीजी ने Ravindra Nath Tagore के शांतिनिकेतन को 60 हज़ार रुपये के अनुदान का चेक दिया था।
  5. जीवन के अंतिम समय में 7 अगस्त 1941 से कुछ समय पहले इलाज के लिए गए।
  6. गीतांजलि के लिए उन्हें सन 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला था।
  7. सन 1915 में उन्हें राजा जॉर्ज पंचम ने नाइट हुड की पदवी से सम्मानित किया था। जिसे उन्होंने सन् 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में वापस कर दिया था।
  8. गुरुदेव के नाम से रविंद्र नाथ टैगोर ने बंगला साहित्य को एक नई दिशा प्रदान की मात्र 8 वर्ष की आयु में पहले कविता और केवल 16 वर्ष की आयु में पहली लघु कथा प्रकाशित कर बंगला साहित्य में एक नए युग की शुरुआत की रूपरेखा तैयार की थी।
  9. रविंद्र नाथ टैगोर की कविताओं को सबसे पहले विलियम रोथेनस्टाइन ने पढ़ा था और ये रचनायें उन्हें इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने पश्चिमी जगत के लेखकों, कवियो, चित्रको से रविंद्र नाथ टैगोर का परिचय करवाया था।
  10. 16 अक्टूबर 1905 को Ravindra Nath Tagore के नेतृत्व में कोलकाता में मनाया गाय रक्षाबंधन उत्सव से बंग-भंग आंदोलन का आरंभ हुआ।
  11. इसी आंदोलन ने भारत में स्वदेशी आंदोलन का सूत्रपात किया था।

Ravindra Nath Tagore की मुख्य कविताएं :-

सोनार तरी (1894) , चित्रा (1896) , चेतापी, गितांजली (1910) , बलाका (1916) , पूरवी (1925) , मडूया , कल्पना (1900) , क्षणिका (1900) ,पुनश्च (1932) , पत्रपुट (1936) , सेंजुति (1938) , भग्न ह्रदय।

भ्रमण कथा :-

यूरोप प्रबासीर पत्र (1881), राशियार चिठि (1919), पारस्ये (1919), जापानी यात्री (193)
जीवनी :- जीवनीस्मृति (1912), चरित्रपूजा (1907)
पत्र साहित्य :- छिन्नपत्र

लघुकथाएँ :-

  1. घाटेर कथा
  2. राजपथेर कथा
  3. देना पाओना
  4. पोस्टमास्टर
  5. गिन्नि
  6. सुभा
  7. व्यवधान
  8. ताराप्रसन्नेर कीर्ति
  9. खोकाबाबुर
  10. प्रत्यबर्तन
  11. संपत्ति समर्पण
  12. दलिया
  13. कंकाल
  14. मुक्तिर उपाय
  15. त्याग
  16. एकरात्रि
  17. एकता आसाठे गल्प
  18. जीवन ओ मृत
  19. स्वर्णमृंग
  20. रीतिमत नभेल
  21. जयपराजय
  22. काबुलिओयाला
  23. महामाया
  24. रामकानाइयेर निर्बुद्धिता
  25. ठाकुर दा
  26. दानप्रतिदान
  27. सम्पादक
  28. मध्यबर्तनी
  29. असम्भव कथा
  30. शास्ति
  31. एकता क्षुद्र पुरातन गल्प
  32. समाप्ति
  33. समस्यापूर्ण
  34. खाता
  35. अनधिकार प्रबेंध
  36. मेघ ओ रोद्र
  37. प्रायच्चित
  38. विचारक
  39. निशीथे
  40. आपद
  41. दिदि ।

प्रमुख उपन्यास :-

राजर्षि, चोखेर वाली, नौकडूबि, प्रजापतिनिर्बन्ध,गोरा, घरे बाइरे, चतुरंग, योगयोग, शेषेर , कवितामालंच, चार अध्याय ।

मुख्य योगदान :-

रविंद्र नाथ टैगोर ने भारत के राष्ट्रगान “जन गण मन” की रचना की थी। उनके साथ उन्होंने बांग्लादेश का राष्ट्रगान आमार सोनार बांग्ला की रचना की थी। उन्हें जीवनी, इतिहास, खगोल विज्ञान, आधुनिक विज्ञान और संस्कृत भाषा का ज्ञान था।
रविंद्र नाथ टैगोर ब्रिटिश हुकुमत के विरोधी थे। रविंद्र नाथ टैगोर का मानना था कि भारतीयों को अपनी शिक्षा में सुधार करने की आवश्यकता है। वह मानते थे कि भारत जाति, धर्म, संप्रदाय में बंटा हुआ है जो ठीक नहीं है। 7 अगस्त 1941 को एक लंबी बीमारी के बाद 80 वर्ष की अवस्था में उनका निधन हो गया था। पर उनका वक्तित्व ऐसा था। कि वे मर कर भी अमर हो गए थे। “तोता कहानी” वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पर सर्वाधिक तीखा व्यंग्य है। सन 1921 से इसे ही विश्व भारती विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाने लगा। वर्तमान में विश्व भारती विश्वविधालय एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है।

विश्व भारती में अनेक विभाग है जिन्ह भवन कहा जाता है।

  1. पाठ भवन (हाई स्कूल की शिक्षा के लिए)
  2. शिक्षा भवन (इंटरमीडिया की शिक्षा के लिए)
  3. विद्या भवन (स्नातक)
  4. विजय भवन (शिक्षा स्नातक (B.Ed) डिप्लोमा)
  5. कलाभवन (शिल्पकला, संस्कृति)
  6. चीन भवन (चीनी सभ्येता व संस्कृति ज्ञान के लिए)
इसके अलावा और भी भवन है। जैसे हिंदी भवन, इस्लाम भवन आदि है।

शिक्षा दर्शन :-

  1. शिक्षा सम्बन्धी गुरुदेव के मूलविचार उनके प्रसिद्ध लेख तपोवन (1909) में देखे जा सकते हैं।
  2. उनके शिक्षा दर्शन का निर्माण मूलतः भारतीय दार्शनिक परंपरा विशेषतः उपनिषदो द्वारा हुआ था।
  3. उनके विचारों की झलक तपोवन, आश्रम, संगम, ब्रम्हचर्य जैसे महत्वपूर्ण शब्दों में के प्रयोग से मिलती है।
  4. इस प्रकार Ravindra Nath Tagore आर्दशवादी शिक्षा-शास्त्री भी थे।
  5. उनका मानना था कि ईश्वर ने अपनी योजना के तहत ही बच्चों के नेसर्गिक प्रतिभा प्रदान कर धरती पर भेजा है।
  6. वे बालको में उदात्त भावना को जागृत कर उन्हें आध्यात्मिक भूमि पर लाना चाहते थे।

Ravindra Nath Tagore के शिक्षा दर्शन के सिद्धांत :-

स्वतंत्रता, सर्जनात्मक एवं अभिव्यक्ति,प्रकृति ओर इंसानों के साथ सक्रिय सहभागिता।

Ravindra Nath Tagore का शिक्षा दर्शन संबंधित :-

प्रकृतिवाद, आर्दशवाद, मानवतावाद, प्रयोजन वाद
बच्चे की स्वतंत्रता :- गुरुदेव के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति का जन्म किसी न किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए होता है। प्रत्येक बालक अपने लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में बढ़ सके, इसलिए उसे योग्य बनाना शिक्षा का महत्वपूर्ण कार्य।
इन्होंने अपनी दो कविताएं :- पाँवर ऑफ अफेक्सन तथा बंगमाता में इस तथ्य को स्पष्ट किया है। इसके अनुसार हर बालक को विकसित होने के लिए पूर्ण स्वतंत्रता व अवसर देने चाहिए। इनकी दृष्टि से हर बालक स्वयं का, वसुधा का तथा सार्वभौम सत्ता(ईश्वर) का है। हर व्यक्ति का मानव होने का अत्यधिक लाभ उठाना चाहिए।

भारतीय शैक्षिक परंपरा का पक्षधर :-

  1. सन 1935 में उन्होंने लिखा कि जब भारत की संस्कृति अपनी सर्वोच्च अवस्था में भी वह कभी धन की कमी के कारण हतोत्साहित या शर्मिंदा नहीं थी।
  2. इसका कारण था कि उस संस्कृति का उद्देश्य अत्मिक जीवन का विकास करना था। भौतिक सम्प्रदा का संग्रहण नहीं।
  3. आधुनिक शिक्षा की मशीनों पर निर्भरता के कविवर विरोधी थे।वे इसे शिक्षा के लिए हानिप्रद मानते थे।
  4. उनका कहना था कि जीवित पांव किसी भी वाहन से अधिक महत्वपूर्ण है।
  5. शिक्षा ऐसी हो जो पांव यानी मानव को मजबूत बनाये, मशीन को नहीं।

अंतराष्ट्रीयता की भावना :-

यूरोप की अच्छाइयों को ग्रहण करने में उन्हें कोई हिचक नहीं थी। वे कहते थे कि हम लोग यह कहने के लिए व्यस्त हो जाते हैं कि हम सब कुछ जानते हैं जबकि हमें आत्मविश्वास के साथ कहना चाहिए कि हम सब कुछ कर सकते हैं। आज यूरोप का ही धर्म बन गया है। उनके आत्म विश्वास की कोई सीमा नहीं है। वे यूरोपीय सभ्यता के अंधभक्त भी नहीं थे, उनका मानना था कि सभी आधुनिक भौतिक साधनों के बावजूद बिना संस्कृति चेतना के मानव जीवन व्यर्थ है।

Ravindra Nath Tagore के शैक्षिक विचार :-

उच्चतम शिक्षा वह है जो हमारे जीवन को सभी प्रकार के अस्तित्व के साथ सामजस्य बनाती है। वस्तुओं की वास्तविक प्रकृति को जानना वास्तविक शिक्षा हे।

शिक्षा का उद्देश्य:-

शारीरिक विकास, मानसिक एवं बौद्धिक विकास, व्यक्तिगत व सामाजिक विकास, सांस्कृतिक विकास, नैतिक विकास, व्यावसयिक विकास, आध्यात्मिक विकास।

स्कूल :-

स्कूल प्रकृति की गोद में बसे और शहरों से दूर स्थित होना चाहिए।

अध्यापक :-

रविंद्र नाथ टैगोर मानते थे कि वही व्यक्ति बच्चों को सही ढंग से शिक्षा दे सकता है, जिसमें बालक के समान निश्छलता व मृदुलता रहती है। जिस अध्यापक के अंदर का बालक मर गया है, उसे बच्चों की जिम्मेदारी लेने का अधिकार नहीं है। अगर बच्चा से उसे अपनी तरह का एक सदस्य न मानकर प्रागैतिहासिक काल का अपरिचित विशाल जानवर मानता हो तो वह अपने कोमल हाथों को बिना भय के उसकी और नहीं बढ़ा सकता। अत: शिक्षक को सहनशील, प्रशिक्षित वे बच्चों के प्रति समर्पित होना चाहिए।

शिक्षा का पाठ्यक्रम :-

बच्चों की किताबें आसान व आकर्षक होनी चाहिए। विदेशी भाषा के बजाय संपूर्ण शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए। मातृभाषा, संस्कृत, अंग्रेजी, इतिहास, भूगोल, प्रकृति अध्ययन, विज्ञान कला, ललित कला होनी चाहिए।

गतिविधियाँ :-

बागवानी, कृषि, क्षेत्रीय अध्ययन, भ्रमण, विभिन्न लेखों का संग्रह, प्रयोगशाला कार्य, खेल, संगीत, नृत्य, रचनात्मक कार्य आदि।

शिक्षण विधियाँ :-

मौखिक विधि, प्रत्यक्ष विधि, प्रमाणीकरण विधि, प्रयोग विधि, क्रिया विधि, संश्लेषण-विश्लेषण विधि, स्व-अध्ययन।

अनुशासन :-

रविंद्र नाथ टैगोर आत्म अनुशासन पर विशेष बल दिया।

अन्य पहलू :-

सामूहिक शिक्षा, महिला शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा, धार्मिक शिक्षा, राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय शिक्षा ।

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