नमस्कार दोस्तों आज हम राजस्थान के लोक देवता कल्लाजी राठौड़ Kallaji rathore के जीवन के बारे में विस्तार से जानेगे
कल्लाजी राठौड़ का इतिहास हिंदी में Kallaji rathore history in hindi
- नाम –वीर कल्ला जी राठौड़ Kallaji rathore
- जन्म – वि.सं. 1601 (1544ई.) आशि्वन शुक्ला अष्टमी रविवार, मेड़ता में
- मृत्यु – 1624,चित्तौड़गढ़
- पिता- अचल सिंह ( मेड़ता के शासक रावदुदा के छोटे पुत्र )
- माता – श्वेत कुंवर
- विवाह – शिवगढ़ के राव कृष्णदास की पुत्री कृष्णा नामक कन्या से हुआ
- मेला – आश्विन शुक्ल नवमी
- गुरु – योगी भैरुनाथ
- कुल देवी – नागणेची
- जिला नागौर , राजस्थान
- इनकी बुआ मीराबाई थी
- बचपन से ही कल्लाजी अपनी कुलदेवी की भक्ति और अराधना करते थे !
कल्ला जी राठौड़ Kallaji rathore योगाभ्यास और झड़ी बूटी का बहुत ही अच्छा ज्ञान था ! लोक देवता कल्लाजी राठौड़ Kalla ji Rathore का रूण्डेला में उनका आदि स्थानक है ! यह आज भी अपने प्राचीन रूप में विद्यमान ! इस स्थानक के पास ही उनकी पत्नी महा सती कृष्णा जी का भी चबूतरा है ! बड़े बुजुर्गो और पुराने इतिहास का मानना है ! की की सर कट जाने के बावजूद भी कल्ला जी का शेष बचा शरीर मुगलों से लड़ता हुआ ! रूण्डेला जा पहुंचा और फिर रूढेला में कल्लाजी की मृत्यु हो गई थी !
चित्तौड़गढ में कल्लाजी राठौड़ और अकबर के बीच युद्ध War between Kallaji Rathod and Akbar in Chittorgarh
अकबर के चित्तौड़ घेरे (1562ई.) के दौरान राठौड़ शासक जयमल अकबर की गोली से घायल हो गया ! तो इसी कल्लाजी राठौड़ Kallaji rathore ने जयमल को अपने कंधो पर बैठा लिया और युद्ध किया था ! दोनों ही वीर इस युद्ध में शहीद हुए ! तो दो हाथों से जयमल द्वारा और दो हाथों से कल्लाजी द्वारा तलवार चलाकर युद्ध करने के कारण माना जाता है ! कि कल्लाजी चतुर्भुज रूप में प्रकट हुए इनकी पूजा नाग के रूप में होती है ! यह मान्यता है की वह शेषनाग के अवतार थे आज भी लोग इनका आह्वान कर सर्पदंश के इलाज को पाते हैं ! डूंगरपुर जिले के सामलिया क्षैत्र में कल्लाजी की काले पत्थर की मूर्ति की स्थापना की हुई है ! इस मुर्ति पर हरदिन केसर और अफीम चढाई जाती है !
शिवगढ़ में राजकुमारी कृष्णकांता ने अपनी घोर तपस्या और स्नेहाकर्षण शक्ति से यह ज्ञात किया ! की कल्लाजी Kallaji ने मेवाड़ की रक्षा करते हुए ! अपना जीवन बलिदान मातृभूमि को अर्पण कर दिया है ! और अपने दिए हुए वचन के को पूरा करने मुझसे मिलने के लिए आ रहे है ! तब श्रंगार करके शिवगढ़ से विदा लेकर राजकुमारी कृष्णकांता अपने प्रिय से मिलने को उंतावली दुल्हन के रूप में रूण्डेला जा पहुंची !
कल्लाजी राठौड़ की मृत्यु और सती कृष्णकांता Death of Kallaji Rathod and Sati Krishna Kanta
in hindi
रूण्डेला में कल्लाजी Kallaji rathore का कबंध नीले घोड़े पर सवार दो हाथों में तलवार लिए हुए आये थे ! वीर कल्लाजी राठौड़ ने राजकुमारी कृष्णकांता को दिए हुए वचन को पूरा करते हुए रूण्डेला की पावन धरती पर अपने प्राण त्याग दिए !
चन्दन की चिता तैयार की परम्परा के अनुसार कृष्णकांता सती होने के लिये कल्लाजी Kallaji rathore के कबंध को गोद में लेकर चिता पर बैठ गई ! कृष्णकांता ने हाथ जोड़ करके मन ही मन भगवान को याद किया मेरे स्वामी का सिर मुझे प्राप्त हो ! राजकुमारी कृष्णकांता के सतीत्व की शक्ति के कारण कल्लाजी का सिर भैरवनाथ और देवीय शक्ति की कृपा से उनकी गोद में आ गया ! कल्लाजी का सिर कबंध से जोड़ कर (26 फरवरी 1568ई.) में कल्लाजी के भाई तेजसिंह राठौड़ ने ईश्वर का स्मरण करके चिता में आग लगा दी ! इस कारण कल्लाजी राठौड़ और कृष्णकांता का प्रेम अमर हो गया !
कल्ला जी का मंदिर और चमत्कार Kallaji’s temple and miracle
Kallaji rathore temples कल्ला जी के मंदिरों ,गादियो और चौकियों पर श्रद्धालु हर रविवार को एकत्रित होते हैं ! श्रद्धालुओ का विश्वास है कल्लाजी की आत्मा मंदिर के मुख्य सेवक (किरण धारी ) के शरीर में प्रवेश कर लोगों के कष्टों को दूर करती है ! आंखों के रोगी ,बहरापन, कान के रोगी,पागलपन, मिर्गी और यहां तक की केंसर और ह्रदय के रोगी भी कल्लाजी की शरण में आते हुए देखे जा सकते हैं ! इसके अलावा दुष्ट आत्मा व अनिष्टकारी आत्मा परेशान, कुत्ते और जहरीले जीव जंतु, सांप बिच्छू आदि के द्वारा गए काटे गय रोगी भी इनके स्थानों पर पहुंचते है !
कल्लाजी की आत्मा धारण करने वाला सेवक समस्त रोगों के समस्याओं का उपचार तलवार की मदद से करता है ! और हर प्रकार का रोगी यहां पर कल्लाजी Kallaji rathore की कृपा से संताप से छुटकारा पा लेता है !
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