हेलो दोस्तों आज हम राजस्थान के राजसमंद जिले के कुंभलगढ़ दुर्ग के इतिहास के बारे में जानेगे
कुंभलगढ़ दुर्ग का परिचय (एस्टूकन), (गिरि दुर्ग) Kumbhalgarh Fort in hindi
दुर्ग का निर्माण करवाया | महाराणा कुम्भा ने |
निर्माण कब हुआ | 1443 से 1458 तक |
दिवार | 36 कि.मी. लम्बी /15 फ़ीट चौड़ी |
जिला | राजसमंद |
राज्य | राजस्थान ( भारत ) |
कुंभलगढ़ दुर्ग राजसमंद के प्राचीन भारतीय आदर्शों के अनुरूप निर्मित कुंभलगढ़ गिरि दुर्ग का उत्कृष्ट उदाहरण है ! मेवाड़ ओर मारवाड़ की सीमा कुंभलगढ़ दुर्ग राजस्थान का चित्तौड़गढ़ के बाद दूसरा सबसे महत्त्वपूर्ण दुर्ग है माना जाता है ! महाराणा कुम्भा द्वारा दुर्ग-स्थापत्य पर सादडी गाँव के समीप स्थित कुंभलगढ़ का सतत् युद्ध और संघर्ष के काल में विशेष सामरिक महत्व था ! अनेक दुर्गा लिए इस दुर्गम घाटियों से परिवेष्टित तथा सघन और बीहड़ वन से आवृत्तु कुम्भलगढ़ दुर्ग संकटकाल में मेवाड़ के राजपरिवार का आश्रय स्थल रहा है !
समुद्रतल से साढ़े तीन हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित होते हुए भी यह किला हरी भरी वादियों के कारण दूर से नजर नहीं आता ! यह अविजित दुर्गों की श्रेणी में आता है ! यह अरावली पर्वत की 13 ऊंची चोटियों से सुरक्षित घिरा हुआ है ! जो सैनिक उपयोगिता और निवास की आवश्यकता की पूर्ति करता था !
इस किले को प्राचीन किले के ध्वंसावशेषों पर 1448 ई. में बनवाना आरम्भ किया था ! जिसकी समाप्ति 1458 ई. में हो पायी थी ! इसका प्रमुख शिल्पी मण्डन था ! इसे ‘कुंभलमेर या कुंभलमेरु’ भी कहते हैं ! इस पर चढ़ने के लिये गोल घुमावदार रास्ता तय करना पड़ता है तथा एक-एक करके ओरट पोल, हल्ला पोल, हनुमान पोल, विजय पोल, भैरवपोल, नींबू पोल, चौगान पोल, पागडा पोल और गणेश पोल नामक कुल नौ द्वार पार करने पड़ते हैं !
कुंभलगढ़ दुर्ग की दीवार Kumbhalgarh Fort Wall –
कुंभलगढ़ दुर्ग 36 किलोमीटर लम्बे परकोटे से सुरक्षित घिरा हुआ है जो अन्तर्राष्ट्रीय रिकार्ड में दर्ज है ! यह चीन की महान् दीवार के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी महान् दीवार है ! इसलिए इसे ‘भारत की महान् दीवार‘ भी कहा जाता है ! इसलिए इसे ‘द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया’ के नाम से जाना चाहता है ! इसकी सुरक्षा दीवार इतनी चौड़ी है कि एक साथ आठ घुड़सवार चल सकते है !
कुंभलगढ़ दुर्ग कई छोटी-बड़ी पहाड़ियों को मिलाकर बनाया गया है ! कुंभलगढ़ प्रशस्ति में इन पहाड़ियों का नाम नील, श्वेत, हेमकूट, निषाद, हिमवत्,गन्धमादन आदि दिए गए हैं ! यह दुर्ग समुद्र की सतह से 3,568 फीट ऊँचे धरातल पर है। वैसे तो इस किले का व्यवस्थित रूप से निर्माण कुम्भा ने करवाया था !
दुर्ग में प्रसिद Kumbhalgarh durg hindi
कुंभलगढ़ दुर्ग के अन्दर की ओर 960 के लगभग मन्दिर बने हुए हैं ! दुर्ग के कैम्पस में झालीबाव बावड़ी, कुम्भस्वामी विष्णु मंदिर, झालीरानी का मालिया, मामादेव तालाब, उड़ना राजकुमार की छतरी (पृथ्वीराज राठौड़) आदि अन्य प्रसिद्ध स्मारक हैं ! पन्नाधाय ने अपने पुत्र चन्दन का बलिदान देकर अपने स्वामी उदयसिंह के प्राण इसी दुर्ग में बचाये ! यहीं उदयसिंह का राज्याभिषेक हुआ एवं राणा प्रताप का जन्म हुआ ! इसके ऊपरी छोर पर राणा कुंभा का निवास है, जिसे ‘कटारगढ़‘ कहते हैं !
यह ‘बादल महल’ (पैलेस ऑफ क्लाउड) के नाम से प्रसिद्ध है जो महान योद्धा महाराणा प्रताप का जन्म स्थल है ! अबुल फजल के अनुसार यदि कोई पगड़ीधारी पुरुष कटारगढ़ की ओर देखे तो उसकी पगड़ी गिर जाएगी ! कुंभलगढ़ दुर्ग मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी रहा है !
कुंभलगढ़ दुर्ग के पर्वतांचल से अनेक विकट पहाड़ी मार्ग या दर्रे मारवाड़, मेवाड़ तथा अन्य स्थानों की ओर गये हैं ! इनमें किले के उत्तर की तरफ पैदल रास्ता ढूंटया का होड़ा, पूर्व की तरफ हाथिया गुढ़ा की नाल में उतरने का रास्ता दाणीवटा कहलाता है ! यह नाल केलवाड़ा के उत्तर से मारवाड़ की ओर गयी है ! किले के पश्चिम की तरफ का रास्ता टीडाबारी कहलाता है !
राजस्थान की दुर्ग स्थापत्य कला Kumbhalgarh Fort rajasthan
मान्यतानुसार के अनुसार प्रारम्भ में एक जैन राजा सम्प्रति (तीसरी शताब्दी ईसा) ने इस दुर्ग को बनवाया था ! यहाँ के खण्डहरों से मिलने वाले मन्दिरों के अवशेष इसकी प्राचीनता प्रमाणित करते हैं ! कुंभलगढ़ दुर्ग में उल्लेखनीय प्रतीक ‘वेदी’ है। वेदी अपने आप में एक दुमंजिला भवन है !
जिसके ऊँचे गुम्बज के नीचे से धुआँ निकलने के लिए चारों ओर भाग है और साथ ही साथ होताओं (यज्ञ संपादकर्ताओं) तथा दर्शकों के बैठने की अच्छी व्यवस्था है ! राजस्थान में इस प्रकार की वेदी कुंभलगढ़ दुर्ग में प्राचीन यज्ञ स्मृति के अवशेष के रूप में बची है ! कर्नल टॉड ने कुंभलगढ़ की तुलना सुदृढ़ प्राचीरों, बुर्जा, कँगूरों के विचारों से “एस्टूकन’ से की है और उसका अच्छा वर्णन दिया है !
People Also Ask About कुंभलगढ़ दुर्ग
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कुंभलगढ़ का दुर्ग कौन से पठार पर स्थित है?
समुद्रतल से साढ़े तीन हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित होते हुए भी यह किला हरी भरी वादियों के कारण दूर से नजर नहीं आता! यह अविजित दुर्गों की श्रेणी में आता है! यह अरावली पर्वत की 13 ऊंची चोटियों से सुरक्षित घिरा हुआ है! जो सैनिक उपयोगिता और निवास की आवश्यकता की पूर्ति करता था!
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कुंभलगढ़ का शिल्पकार कौन था?
मंडन
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कुंभलगढ़ का युद्ध कब हुआ?
15 ओक्टूबर, 1577 ई. में हुआ था!
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कुंभलगढ़ दुर्ग में कितने प्रवेश द्वार है?
Kumbhalgarh durg पर चढ़ने के लिये गोल घुमावदार रास्ता तय करना पड़ता है तथा एक-एक करके ओरट पोल, हल्ला पोल, हनुमान पोल, विजय पोल, भैरवपोल, नींबू पोल, चौगान पोल, पागडा पोल और गणेश पोल नामक कुल नौ द्वार पार करने पड़ते हैं !
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कुंभलगढ़ दुर्ग का निर्माण कब करवाया था?
Kumbhalgarh durg का निर्माण महाराणा सांगा द्वारा 1443 से 1458 तक के समयावधि में कराया गया था!
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अच्छी जानकारी दी है