जांभोजी के जीवन की पूरी जानकारी

साथियों आज हम आपको बताएंगे कि बिश्नोई समाज के विश्व प्रसिद्ध संत जांभोजी के बारे में जो कि एक पर्यावरण प्रेमी संत थे ! जीवो की रक्षा करना अपने जीवन का एक ही लक्ष्य रखते थे वह की जीवो की रक्षा करो फोन पर दया का भाव रखो ! तो चलो दोस्तों आज हम आपको बताएंगे जांभोजी महाराज के बारे में रोचक जानकारियां ! आज की विश्नोई समाज जामोजी के बताए हुए 29 धर्मों की पालना करते हैं ! इन धर्मों को 20+9 भी कहा जाता है तो बात करते हैं जांभोजी महाराज की आई है आगे चलते हैं !

जांभोजी का जीवन परिचय (biography of jambhoji in hindi)

संत जांभोजी (मूल नाम ‘धनराज’) जांभोजी का जन्म 1451 ई. (विक्रम संवत् 1508) ‘पीपासर’ (नागौर) में ! भाद्रपद कृष्ण अष्टमी (जन्माष्टमी) के दिन पँवार वंशीय राजपूत परिवार में हुआ ! माता का नाम ‘हंसा देवी’ तथा पिता का नाम ‘लोहट’ था !

जांभोजी बाल्यावस्था से ही मननशील थे तथा कम बोलने के कारण इन्हें ‘गहला गूंगा’ तथा प्रकृति प्रेमी होने के कारण  ! जाम्भोंजी को ‘विश्व पर्यावरण आंदोलन का प्रथम प्रणेता’ व पर्यावरण वैज्ञानिक’ ! इनका जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी (जन्माष्टमी) को होने के कारण कृष्ण का अवतार’ तथा विश्नोई संप्रदाय में विष्णु का अवतार’ मानते हैं !
और जाम्भोंजी के गुरु का नाम गोरखनाथ था जांभोज़ी ने विष्णु की निगुर्ण निराकार ब्रह्मा के उपासना पर बल दिया ! और जाम्भोंजी ने 1485 ई. में संभराथल (बीकानेर) में कार्तिक कृष्ण अष्टमी को ऊँचे टीले ‘धोक धोरे’ पर बैठकर विश्नोई संप्रदाय की स्थापना की ! विश्नोई संप्रदाय में 29 प्रकार की शिक्षाएँ (नियम) होती हैं इन शिक्षाओं का पालन करने वाला व्यक्ति विश्नोई (20 + 9) कहलाता है ! वह जांभोजी ने अपने समस्त उपदेश मरुभाषा में दिए ! इनके प्रमुख ग्रंथ जंभ सागर, जंभ संहिता, विश्नोई धर्म प्रकाश एवं 120 शब्द वाणियाँ प्रसिद्ध हैं !
  • जांभोजी का मूल मंत्र-‘हृदय से विष्णु का नाम जपो और हाथ से कार्य करो !

गुरु जम्भेश्वर भगवान के उपदेश (जांभोजी के उपदेश ) Guru Jambheshwar Lord’s teachings –

जांभोजी के उपदेश स्थल ‘साथरी’, जांभोजी के मुख से उच्चारित वाणी को ‘शब्द वाणी/जंभ वाणी/गुरु वाणी’ कहा जाता है ! गुरु जांभोजी के प्रति अगाध आस्था होने के कारण ! बीकानेर के राजाओं ने अपनी राजकीय झंडे में खेजड़ी के वृक्ष को राजकीय चिह्न के रूप में अंकित करवाया ! जिसे ‘माटो’ कहा जाता है ! जांभोजी द्वारा तैयार अभिमंत्रित मंत्र (पाहल) जिसे पिलाकर जांभोजी ने अज्ञानुवर्ती समुदाय को विश्नोई पंथ में दीक्षित किया, ! जिसे ‘पाहल’ कहते हैं, तो जांभोजी ने इस संसार को मिथ्या व नाशवान बताया ! तथा इस संसार को ‘गोवलवास’ (अस्थाई निवास) कहा है !

जांभोजी के प्रमुख धार्मिक स्थल मुक्तिधाम ‘मुकाम’ (Jambhoji’s main religious place Muktidham ‘Mukam’)

पीपासर में जांभोजी का जन्म पीपासर (नागौर) में हुआ था जहाँ उनके पुराने घर की जगह पर मंदिर बना दिया गया है ! जिसमें उनके खड़ाऊ आज भी रखे गए हैं !
मुक्तिधाम ‘मुकाम’- जांभोजी ने 1526 ई. में ‘मुकाम’ नोखा (बीकानेर) में समाधि (मुख्य मंदिर) ली ! जहाँ प्रतिवर्ष फाल्गुन व आश्विन माह की अमावस्या को मेला लगता है ! रामड़ावास-पीपाड़ (जोधपुर) के निकट ‘रामड़ावास’ व ‘लोहावट’ में इन्होंने उपदेश दिए ! जांभा-जोधपुर जिले की फलौदी तहसील के जांभा गाँव में जांभेश्वरजी के कहने पर जैसलमेर के राजा जैतसिंह ने यहाँ तालाब बनवाया था ! जो विश्नोई समाज के लिए पुष्कर के समान पावन तीर्थ है ! यहाँ प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या तथा भाद्रपद पूर्णिमा को मेला लगता है !
  • रोटू-नागौर जिले के रोटू गाँव में इस संप्रदाय का धार्मिक स्थल है !
  • जांगलू-बीकानेर की नोखा तहसील के जांगलू गाँव में प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या व भाद्रपद अमावस्या को जाम्भोंजी का मेला लगता है !
  • लोदीपुर-मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश) में जांभोजी भ्रमण पर गए थे !
‘कथा जैसलमेर की’ की रचना संत कवि वील्होजी ने की ! जिसमें उनके समकालीन 6 राजा, जो इनकी शरण में आए ! दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोदी (जांभोजी के प्रभाव से सिकंदर लोदी ने गौहत्या पर प्रतिबंध लगाया था ! ), नागौर का नवा मुहम्मद खाँ नागौरी, मेड़ता का राव दूदा, जैसलमेर का राव जैतसी, जोधपुर के राठौड़ सातल देव और मेवाड़ का महाराणा साँगा !

विश्नोई समाज के 29 नियम (29 rules of Vishnoi society)

जांभोजी द्वारा बोले गए प्रथम शब्द’गुरु चिन्हों गुरु चिह्न पिरोहित, गुरु मुख धर्म बखाणी !
विश्नोई संप्रदाय भेड़ पालना पसंद नहीं करते, क्योंकि भेड़ नव अंकुरित पौधों को खा जाती हैं !
जांभोजी
1.तीस दिन सूतक रखना।
2 .पांच दिन का रजस्वला रखना।
3. प्रातः काल स्नान करना।
4. शील , सन्तोष व शुद्धि रखना।
5. प्रातः सायं सन्ध्या करना।
6. सांझ आरती, विष्णु गुन गाना।
7. प्रातः काल हवन करना।
8. पानी छानकर पीयें व वाणी षुद्ध बोलें।
9. ईंधन बीनकर व दूध छानकर लें।
10. क्षमा – सहनषीलता रखें।
11.दया – नम्रभाव से रहें।
12.चोरी नहीं करनी।
13. निन्दा नहीं करनी।
14.झूठ नहीं बोलना।
15 वाद-विवाद नहीं करना।
16. अमावस्या का व्रत रखना।
17.भजन विष्णु का करना।
18.प्राणी मात्र पर दया रखना।
19.हरे वृक्ष नहीं काटना।
20.अजर को जरना।
21.अपने हाथ से रसोई पकाना।
22.थाट अमर रखना।
23.बैल को बधिया न करना।
24.अमल नहीं खाना।
25.तंमाखू नहीं खाना व पीना।
26.भांग नहीं पीना।
27.मद्यपान नहीं करना।
28.माँस नहीं खाना।
29.नीले रंग का वस्त्र नहीं पहनना

वृक्ष बचाओ आंदोलन विश्नोई समाज

1604 ई. में वृक्ष बचाओ आंदोलन में कर्मागोरा विश्नोई संप्रदाय की प्रथम महिलाएँ थीं ! 1730 ई. में खेजड़ली गाँव (जोधपुर) का वृक्ष बचाओ आंदोलन इसी संप्रदाय से संबंधित है ! जिसमें अमृता देवी की दो पुत्रियाँ व उसका पति ‘रामो’ सहित यह सिलसिला 363 व्यक्तियों (69 स्त्रियाँ, 294 पुरुष) के आत्म बलिदान तक चलता रहा ! यह समाज भगवान जांभोजी को ईस्ट देव मानते है !
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